गुजरात चुनाव 2017

गुजरात में आरक्षित सीटों पर मुश्किल में बीजेपी, वसावा ने कहा, आदिवासी विरोधी हैं संघ-बीजेपी

गुजरात विधानसभा चुनाव में सिर्फ पटेल ही नहीं आदिवासी भी बीजेपी से नाराज हैं। आदिवासी नेता छोटू भाई वसावा ने ऐलान किया है कि इस बार बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेकेंगे।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया गुजरात के कद्दावर आदिवासी नेता छोटू भाई वसावा

गुजरात में पटेल समुदाय के बाद अगर बीजेपी को किसी दूसरे तबके की भारी नाराजगी झेलनी पड़ रही है तो वह हैं आदिवासी। इसका सीधा सा कारण है कि आदिवासी केंद्र की मोदी सरकार से लेकर राज्य की बीजेपी सरकार तक को आदिवासी विरोधी औऱ आदिवासियों के बुनियादी सवालों की अनदेखी करने वाली पार्टी के तौर पर देखते हैं।

गुजरात में आदिवासी बहुल इलाके पूरे गुजरात में हैं, और विधानसभा चुनाव के दोनों ही दौर में उनकी मौजूदगी है। पहले दौर में जहां आदिवासियों के लिए आरक्षित डांग जैसे संवेदनशील इलाके थे, जहां नदियों को जोड़ने वाली परियोजना के खिलाफ आक्रोश दिखा, तो वहीं नर्मदा जिले के डाडियापाडा में आदिवासियों का सम्मान और जमीन पर कब्जा एक अहम मुद्दे के तौर पर सामने आया। वहीं, वडोदरा, दाहोद, छोटा उदयपुर, पंचमहल, भीलोड़ा, बनासकांठा, खेदब्रह्मा जैसी जगहों में बीजेपी द्वारा जल-जंगल-जमीन पर अमीर घरानों को कब्जा देने को लेकर गहरा क्षोभ है। इन तमाम इलाकों में बीजेपी द्वारा राबराई, भारवाड और चरन जैसे चरवाह समुदायों को आदिवासियों की आरक्षित सूची में शामिल करने को लेकर भी बहुत गुस्सा है। इसका वे लंबे समय से विरोध करते रहे हैं और उन्हें नाराजगी इस बात की भी है कि बीजेपी सरकार में शामिल उनके समुदाय के मंत्री गनपत ने भी इसका विरोध नहीं किया।

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फोटो : भाषा सिंह

गुजरात में आदिवासी समुदाय के सबसे कद्दावर और रॉबिन हुड स्टाइल नेता छोटू भाई वसावा ने बीजेपी सरकार को आदिवासी विरोधी करार देते हुए इसे सत्ता से उखाड़ फेंकने का प्रण किया है, जिसने बीजेपी की नींद उड़ा दी है। वसावा ने भीलिस्तान टाइगर सेना और चुनाव लड़ने के लिए भारतीय ट्राइबल पार्टी का गठन किया है और वह पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के सहयोग से चुनाव लड़ रहे हैं। अभी तक वह जनता दल (यूनाइटेड) के साथ थे और राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के अहमद पटेल को वोट देकर उन्होंने नीतीश कुमार की पार्टी से रिश्ता तोड़ दिया। छोटू भाई वसावा आदिवासी समाज में तकरीबन एक किवदंति की तरह मशहूर हैं,और पिछले छह बार से वह छागड़िया विधानसभा से भारी मतों से जीतते रहे हैं।

नवजीवन से बातचीत के दौरान छोटूभाई वसावा ने बताया, “मोदी-अमितशाह, बीजेपी और संघ गरीब विरोधी हैं, आदिवासी विरोधी हैं। ये संविधान बदलना चाहते हैं, ताकि हमें जो अधिकार मिला हुआ है, वह भी ये छीन लें। ऐसा हम होने नहीं देंगे। मैंने प्रण लिया है कि इस सरकार को उखाड़ फैंकना है, यह सबको धोखा देने वाले लोग हैं।

वसावा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि मोदी और बीजेपी ने उन्हें खरीदने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने यह कोशिश नाकाम कर दी। वसावा खुद को और अपने समुदाय को सिर्फ वनवासी कहा जाना भी पसंद नहीं करते हैं। उनका कहना है कि, “ मैंने अपनी पूरी उम्र अपने लोगों के लिए लड़ते-भिड़ते बिताई है, साहूकार से लड़ा, अधिकारियों से लड़ा, हमारी बच्चियों के साथ बलात्कार करने वालों से लड़ा और अब आदिवासी सम्मान के लिए लड़ रहा हूं। मोदी ऐसा प्रधानमंत्री है जो हर मिनट झूठ बोलता है। गरीब, पटेल, दलित, हीरा –कपड़ा मजदूर-व्यापारी को डूबो देता है, हमें मारता है, हमें खरीदने की, धमकाने की कोशिश करता है, ये तो हम होने न देंगे।

छोटू भाई वसावा ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अमित शाह साजिश के तहत आदिवासियों का आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि, “वह कौन होता है हमारा आरक्षण खत्म करने वाला। यह अधिकार उसे किसने दिया?”

उन्होंने कहा कि आरएसएस इस बार के चुनावों में उनके समुदाय को बरगलाने की कोशिश कर रही है। वे कहते हैं कि, “ हम इस चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बता देंगे कि हम हिंदू नहीं हैं, हम मूल निवासी हैं। हम उनकी चालाकी भरी बातों का जाल समझते हैं। वे हमें वनवासी कहते हैं, लेकिन हमें यह मजूंर नहीं। हम जो जंगल या वन में नहीं रहते, वे सब भी आदिवासी हैं। ये सारी साजिशों को हम वोट दे कर खत्म करेंगे।’

छोटू भाई वसावा से नवजीवन की बातचीत इस वीडियो में भी देखें:

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गौरतलब है कि पिछले दो विधानसभा चुनावों (2007 औऱ 2012) में भी आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस के पास ज्यादा सीटें रही हैं। वर्ष 2007 में कांग्रेस ने 20 आरक्षित सीटों में 11 और 2012 में 26 आरक्षित सीटों में से 15 पर कब्जा जमाया था। इस बार यह संख्या 20 से अधिक रहने के कयास लगाए जा रहे हैं। और इसका सीधा कारण है कि इस बार जिस आदिवासी समुदाय ने अपनी नाराजगी को खुलकर व्यक्त किया है।

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