खड़िया-जमालपुर – गुजरात की यह विधानसभा सीट ऐसी है जहां 65 फीसदी आबादी मुस्लिम है। यहां के वोटर इस बार कांग्रेस को जिताने के पक्ष में हैं। बंटवारे की राजनीति से उकता चुके यहां न सिर्फ मुस्लिम बल्कि हिंदू वोटर भी कांग्रेस की हवा के बारे में ही बात कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि खड़िया-जमालपुर का माहौल पूरे गुजरात की तस्वीर पेश करता है।
किसी भी चुनाव में प्रचार के चरम पर किसी राजनीतिक दल का दफ्तर बंद होना एक दुर्लभ दृश्य है। लेकिन बीजेपी के पुराने गढ़ अहमदाबाद के कई इलाकों में बीजेपी के दफ्तरों में सन्नाटा है। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि बीजेपी दिक्कत में है। खड़िया के मुख्य बाजार में बीजेपी दफ्तर में कोई हलचल नहीं है, एक आदमी भी नजर नहीं आता। हां दफ्तर के सामने एक दो लोग उकताए से बैठे नजर आते हैं।
चुनावी राज्य में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर खबरों की तलाश कर रहे पत्रकारों के लिए यह एक नया नजारा होता है जब उसे सत्तारूढ़ दल बीजेपी के न तो झंडे बैनर दिखते हैं और न ही बीजेपी के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई पोस्टर, वह ऐसे इलाकों में जहां हिंदू आबादी ठीक-ठाक है।
इसका सबब पूछने पर कुछ उम्रदराज लोग तर्क देते हैं कि वर्तमान विधायक बीजेपी के भूषण भट्ट प्रचार पर निकले हुए हैं, इसीलिए कुछ सन्नाटा सा है। लेकिन वे यह नहीं बता पाए कि विधायक जी किस इलाके में प्रचार के लिए गए हैं। ऐसा नहीं नजारा पूरे खड़िया में नजर आता है। जितने भी लोगों से मैंने बात करने की कोशिश की, उसमें से ज्यादातर ने चुनाव के बारे में बात करने से ही इनकार कर दिया।
Published: 12 Dec 2017, 11:01 AM IST
लेकिन खड़िया के दूसरी तरफ, इसी सीट के जमालपुर इलाके में माहौल एकदम अलग है। छिपा समुदाय की घनी आबादी वाले इस इलाके में चुनाव की खूब गहमा-गहमी है। यहां व्यापारी से लेकर दुकानदार तक, और दर्जी से लेकर कसाई तक, सब के सब चुनाव के बारे में बात करने को लालायित हैं। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार युसुफ भाई खेडावाला के पोस्टर, कांग्रेस के झंडे और बैनर हर तरफ नजर आ रहे हैं। माहौल अपनी मूड खुद बता रहा है। नए और पुराने शहर को साबरमती नदी पर बने पुल से जोड़ने वाला यह इलाका गुजरात की मुस्लिम आबादी वाली बस्तियों की एक जगह सिमटने की नजीर पेश करता है। बीजेपी के दशकों के शासन के दौरान पूरे गुजरात में मुस्लिम आबादी वाले इलाकों की लगभग यही स्थिति है।
Published: 12 Dec 2017, 11:01 AM IST
इस निर्वाचन क्षेत्र की मुस्लिम आबादी जमालपुर में तो हिंदू आबादी खड़िया में बसती है। परंपरागत तौर पर यह इलाका कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन 2012 के चुनाव में यहां से बीजेपी के भूषण भट्ट की जीत ने सबको चौंका दिया था। 2012 के त्रिकोणीय मुकाबले में भट्ट ने कांग्रेस के समीर सिपाई को 42000 वोटों से हराया था, जबकि एक अन्य उम्मीदवार साबिरभाई काबलीवाला को 30,000 वोट मिले थे।
भूषण भट्ट की खास पहचान उनकी आरएसएस की पृष्ठभूमि है। स्थानीय लोग बताते हैं कि भूषण भट्ट के पिता अशोक भी बीजेपी विधायक रह चुके हैं। और उससे पहले उनकी दादी शारदा बेन भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं। लेकिन इस बार बीजेपी की राह आसान नहीं है, क्योंकि इस बार यहां से सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में है।
इलाके में गारमेंट फैक्टरी चलाने वाले फिराक बताते हैं कि “पिछली बार मुसलमानों का वोट बंट गया था, लेकिन इस बार हम एकजुट हैं। यहां छिपा समुदाय का वर्चस्व है और हमने तय किया है कि बीजेपी का 22 साल का शासन अब खत्म होना चाहिए।” उनका दावा है कि यहां की 65 फीसदी आबादी मुस्लिम है और ऐसे में कांग्रेस आसानी से यह सीट जीतेगी।
कपड़ा उत्पादक जमाल भी ऐसा ही सोचते हैं। उनका एकमात्र मकसद है, बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकना। वे कहते हैं कि, “लोगों का बीजेपी से विमुख होने का सबसे बड़ा कारण जीएसटी है। समय से रिटर्न भरने के बावजूद हमें रिफंड नहीं मिल रहे हैं। 18 फीसदी टैक्स ने हमारी कमर तोड़ दी है। ऐसे में क्या मुस्लिम और क्या हिंदू, बीजेपी को कोई वोट क्यों देगा?” जमाल की बात की तस्दीक जयेंद्र भाई शाह भी करते हैं। यूं तो वह पेशे से सेल्समैन जयेंद्र भाई हैं, लेकिन खुद का परिचय एक जागरूक नागरिक के तौर पर देना पसंद करते हैं। जयेंद्र भाई खड़िया बाजार इलाके में बीजेपी विधायक भूषण भट्ट के पड़ोसी हैं, लेकिन क्षेत्र के विकास पर पैनी नजर रखते हैं।
हमारी बातचीत को इमरान गौर से सुनते हैं, और बीच में ही बोल उठते हैं, “इस बार सब कांग्रेस को वोट देंगे।“ यूं तो जयेंद्र भाई शाह उसी समुदाय के हैं, जिससे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आते हैं, लेकिन जयेंद्र भाई, अमित शाह को असली जैन नहीं मानते। उनको लगता है कि 2002 के नरसंहार में नरोडा पाटिया में जो कुछ हुआ उसके पीछे अमित शाह का हाथ था। इस कांड के लिए बीजेपी नेता और मोदी सरकार में मंत्री रही माया कोडनानी मुख्य आरोपी हैं।
जयेंद्र भाई बताते हैं कि, “जैनियों में किसी दूसरे को अपराध के लिए उकसाना भी बहुत बड़ा पाप माना जाता है। आखिर अमित शाह ने 15 साल तक अपना बयान दर्ज क्यों नहीं कराया? क्या अमित साह इंतजार कर रहे थे कि जब केंद्र में उनकी सरकार होगी, तभी बयान दर्ज कराएंगे?” जयेंद्र भाई के सवाल यहीं खत्म नहीं होते। वे आगे पूछते हैं, “नरेंद्र मोदी को बीजेपी में बढ़ती वंशवाद की राजनीति क्यों नजर नहीं आती? क्यों खड़िया-जमालपुर से सिवाय एक परिवार के किसी और को बीजेपी टिकट नहीं मिलता?”
Published: 12 Dec 2017, 11:01 AM IST
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Published: 12 Dec 2017, 11:01 AM IST