साल 2014 में बीजेपी महिला सुरक्षा का वादा कर सत्ता में आई थी, जिसका जिक्र पार्टी के घोषणापत्र में भी है, लेकिन क्या कठुआ, उन्नाव और शिमला जैसे दुष्कर्म के मामलों को देखकर क्या लगता है कि सरकार इन चार वर्षो में अपने उन वादों पर खरी उतरी है। या फिर महिला सुरक्षा मोदी सरकार के लिए जी का जंजाल बनी हुई है? इस मुद्दे पर विशेषज्ञों और समाजसेवियों की राय बहुत बंटी हुई है। कुछ लोग मानते हैं कि सरकार के महिला सुरक्षा के दावे सिर्फ फाइलों तक ही सिमटे रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि इन वर्षो में सरकार महिलाओं के लिए कुछ काम कर पाई है।
साल 2012 में निर्भया कांड के बाद से महिलाओं की सुरक्षा को लेकर देश में जो माहौल बना, उसे बीजेपी सरकार ने 2014 में आगे बढ़ाने का दावा किया था। निर्भया कांड के बाद सरकार की ओर से दुष्कर्म पीड़िताओं की मदद के बड़े-बड़े दावे किये गये थे, लेकिन महिला हिंसा के खिलाफ काम करने वाली संस्था 'सखी' की कार्यकर्ता मालती सिंह कहती हैं, “निर्भया फंड से किन-किन राज्यों में कितनी राशि पीड़िताओं को दी गई, इसका ब्योरा देखकर तय करना चाहिए कि असल में पीड़िताओं को कितनी मदद पहुंचाई गई है। ऐसे हवा-हवाई बातें करने से कोई फायदा नहीं।”
हाल के वर्षो में नाबालिगों से दुष्कर्म के मामले बढ़े हैं। शिमला दुष्कर्म मामला, दिल्ली में आठ महीने की बच्ची से दुष्कर्म, उन्नाव में बीजेपी विधायक द्वारा कथित दुष्कर्म और कठुआ में 8 साल की बच्ची से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या जैसे मामलों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। ऐसे में सवाल उठते हैं कि सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
इसका जवाब ये है कि इस दौरान 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' यानी पोक्सो कानून में जरूरी संशोधन किये गए, जिस पर राष्ट्रपति ने 24 घंटों के भीतर मुहर लगा दी। सरकार के इस कदम से 12 साल तक की मासूमों से दुष्कर्म के दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा कहती हैं, सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ कानून बना देने तक सीमित नहीं है। सरकार की ओर से देर हुई है, लेकिन अच्छी बात यह है कि सरकार दबाव में ही सही, कदम तो उठा रही है।"
सिलसिलेवार ढंग से देखें तो महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं के लिए राष्ट्रीय महिला नीति का मसौदा मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया है, जिससे अकेले जीवनयापन करने वाली महिलाओं को सुरक्षा के साथ ही लाभ भी पहुंचेगा। सरकार की 'वन स्टॉप सेंटर' योजना को भी अमलीजामा पहनाया गया, जिसके तहत किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार पीड़िताओं को सहायता मुहैया कराई जा रही है। सरकार ने तीन तलाक जैसे विवादित मसले के खिलाफ मोर्चा खोलकर मुस्लिम महिलाओं को भी साधने की कोशिश की, लेकिन मुस्लिमों से जुड़े बाकी मामलों पर कन्नी काट गई।
राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेश पंत कहते हैं, "2014 में जब चुनाव हुए थे तो उस समय महिला सुरक्षा अहम मुद्दा था। 2012 में निर्भया कांड हुआ तो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जनाक्रोश भड़का हुआ था। मोदी सरकार इसे भांपकर सत्ता तक पहुंच गई, लेकिन अब महिला सुरक्षा को लेकर स्थितियां और भी बिगड़ गई हैं। सच कहें तो सरकार के लिए महिला सुरक्षा जी का जंजाल बन गई है।"
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हालांकि, सरकार की ऐसी कई योजनाएं हैं, जो महिलाओं के लिए मददगार हो सकती हैं। इनमें से एक 'वर्किंग वुमेन हॉस्टल' योजना है, जो कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास उपलब्ध कराती है। दूसरी, महिला शक्ति केंद्र योजना, महिलाओं के संरक्षण और सशक्तीकरण के लिए 2017 में शुरू की गई थी। इस योजना के जरिये ग्रामीण महिलाओं को सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से सशक्त बनाने का काम किया जा सकता है। इन योजनाओं के जरिये सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह महिला सुरक्षा और महिला कल्याण की योजनाओं को लेकर काफी सजग है, लेकिन संशय का विषय यही है कि क्या सरकार के ये आंकड़ें विश्वास करने योग्य हैं?
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