वृंदावन में आरएसएस के कार्यालय केशव धाम में पूर्वोत्तर भारत के 52 बच्चों के लिए छात्रावास चलाया जा रहा है। ये बच्चे संघ संचालित सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकंडरी स्कूल में पढ़ते हैं, जहां उन्हें अंग्रजी माध्यम में शिक्षा दी जाती है। साथ ही उन्हें संस्कृत भी पढ़ाया जाता है। हिंदी में बातचीत करने में भी अक्षम इन बच्चों को सारे निर्देश संस्कृत में दिए जा रहे है।
Published: 08 Sep 2017, 12:29 PM IST
नवजीवन के पत्रकार विश्वदीपक ने इनमें से कुछ बच्चों से उस समय बात की जब वे एक मैदान में आरएसएस का झंडा लगा रहे थे।
असम के अंगुबे ने कहा, ‘हम यहां इसलिए आए हैं कि भारत के अच्छे नागरिक बन सकें और अच्छे संस्कार सीख सकें।’
मेघालय के 12 वर्षीय करण ने कहा, ‘हम यहां हिंदू बन रहे हैं।’
त्रिपुरा के जितुश का कहना था, ‘हमारे गांव में पढ़ाई का सही इंतजाम नहीं है। यहां मुझे मुफ्त में शिक्षा मिल रही है। साथ ही मेरे रहने और खाने की भी मुफ्त व्यवस्था है।’
यह इस बात का उदाहरण है कि आरएसएस किस तरह से इन युवा और आसानी से प्रभावित हो जाने वाले दिमागों को अपनी संस्कृति में ढालने की कोशिश कर रहा है। जबकि वे एक ऐसी संस्कृति से ताल्लुक रखते हैं जो हिंदी पट्टी की संस्कृति से पूरी तरह अलग है।
Published: 08 Sep 2017, 12:29 PM IST
दिलचस्प बात है कि 1 सितंबर, 2010 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 'अनाथ आश्रमों में बच्चों के शोषण के मामले में तमिलनाडु बनाम भारत संघ और अन्य’ के बीच चल रहे मुकदमे की सुनवाई के दौरान बच्चों को एक राज्य से दूसरे राज्य ले जाने पर चिंता जताते हुए कहा था, ‘मणिपुर और असम को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि राज्य के 12 साल से कम उम्र के या प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चों को पढ़ाई के लिए कोर्ट के अगले आदेश तक राज्य के बाहर नहीं भेजा जाए।’
Published: 08 Sep 2017, 12:29 PM IST
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Published: 08 Sep 2017, 12:29 PM IST