ढिंढोरा पीटने का पहला नियम यह है कि कभी भी अपना ढिंढोरा खुद न पीटो। दूसरा नियम है कि ढिंढोरा पीटने से पहले यह सुनिश्चित कर लो कि आपके पास जो तथ्य हैं, वे सारे सही हैं। ‘वहां’ पहुंचने वाला पहला व्यक्ति बनने के लिए किए गए प्रयास में और तो छोड़ो, मौलिक खोजबीन की भी कमी है...‘वहां’ से आप मेरा तात्पर्य समझ गए होंगे। गूगल के शीर्ष पर।
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लेकिन वहां पहुंचने के लिए आपको ईमानदार और मेहनती होना चाहिए। इसलिए मेरा तर्क है कि जहां एक तरफ मैं रिज अहमद के ऑस्कर पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में नामांकित होने के लिए उनका अभिनंदन करता हूं और वह इसके कितने हकदार हैं यह तो हम जल्द ही जान जाएंगे, वहीं मुझे तुरंत आपके सामने इस बात को भी रखना चाहिए कि ऐसा सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले मुस्लिम अभिनेता नहीं हैं।
मिस्र के मुस्लिम अभिनेता उमर शरीफ के बारे में आप क्या कहेंगे। उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार के रूप में ऑस्कर पुरस्कार के लिए न केवल नामांकित किया गया था बल्कि उन्होंने उसे जीता भी। उन्हें ऑस्कर पुरस्कार डेविड लीन की फिल्म ‘लॉरेंस ऑफ अरबिया’ में शानदार अभिनय के लिए मिला था। ऑस्कर जीतने वाले उमर पहले मुसलमान और पहले एशियाई कलाकार थे। वास्तव में ‘लॉरेंस ऑफ अरबिया’ में भूमिका के लिए भारत के सर्वेश्रेष्ठ और महान अभिनेता दिलीप कुमार को प्रस्ताव दिया गया था।
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एक बार मैंने युसूफ साहब (दिलीप कुमार) से पूछा था कि उन्होंने ‘लॉरेंस ऑफ अरबिया’ में काम करने के लिए क्यों इनकार किया। उन्होंने बहुत ही सौम्यता से जवाब दिया, “डेविड लीन का मैं बहुत सम्मान करता हूं। लेकिन न केवल उस समय बल्कि कभी भी मेरी पश्चिम के सिनेमा में काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैं भारतीय सिनेमा में जो काम करना पसंद करता था, उसे करने में व्यस्तथा। मुझे अपने क्षितिज का विस्तार करने की आवश्यकता नहीं थी।”
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अनिल कपूर और प्रियंका चोपड़ा की तरफ से एक ताजा बदलाव आया है। ये दोनों कलाकार हॉलीवुड की फिल्म में कोई भी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। रिज अहमद पश्चिम में दमदार भूमिकाएं निभा रहे हैं, यह एक अनूठी उपलब्धि है। कुछ वर्षों पहले तक भारतीय और पाकिस्तानी कलाकारों को अधिकतर एशियाई टैक्सी ड्राइवर की भूमिकाएं मिलती थीं। सिवाय तब जब आप विशेषतौर पर भारतीय/पाकिस्तानी किरदार निभा रहे हों। जैसा कि ओम पुरी ने ‘माई सन द फनैटिक’ या इरफान खान ने ‘द नेमसेक’ में निभाई थीं। अब जाहिर है कि भारतीय और एशियाई कलाकार अमेरिकी फिल्मों में कलर-ब्लाइन्ड भूमिकाएं निभा रहे हैं। गेराल्डिन विश्वनाथन ने ‘द ब्रोकन हार्ट्सगैलरी’ में ‘लुसी’ की भूमिका निभाई।
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रिज अहमद ने ‘द साउंड ऑफ मेटल’ फिल्म में रूबेन स्टोन का किरदार निभाया है। कहानी में कहीं भी उनकी ब्राउन (भूरी त्वचा) पृष्ठ भूमि का जिक्र नहीं है। उनके किरदार में उनके एशियाई होने का भी इशारा नहीं किया गया है। तो ऐसे में, हम उनके ऑस्कर के नामांकन का एशियाई/इस्लामी विजय के रूप में क्यों उत्सव मना रहे हैं?
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