दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में कलाकार उन भूमिकाओं के बारे में बात नहीं करते हैं जिनको उन्होंने निभाया नहीं है। कल्पना कीजिए कि वॉरेन बेट्टी ने डींग मारते हुए कहा होता कि उन्होंने ‘द गॉडफादर’ फिल्म को ठुकरा दिया था। लेकिन बॉलीबुड में कलाकार उन भूमिकाओं के बारे में लगातार बातें करते रहते हैं जिनको उन्होंने ठुकरा दिया था। कुछ दावे तो बहुत ही खोखले लगते हैं। मुझे एक बात का तो पूरा विश्वास है कि देव आनंद ने ‘गाइड’ फिल्म में रोजी का अमर किरदार निभाने की पेशकश कभी भी जाहिदा से नहीं की होगी। अगर कभी ऐसा प्रस्ताव किया भी होगा तो मुझे यकीन है कि वह गंभीरता के साथ नहीं किया होगा। ‘गाइड’- जैसी फिल्म के प्रतिष्ठित किरदारों को लेकर ऐसे दावे बहुत ही सावधानी से किए जाने चाहिए।
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वर्तमान पीढ़ी को शायद मालूम न हो। जाहिदा चरित्र अभिनेता अनवर हुसैन की बेटी और अपने समय की मशहूर अभिनेत्री नरगिस दत्त की भांजी हैं। उन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत असित सेन की फिल्म ‘अनोखी रात’ से की। देव आनंद ने उनको अपनी दो फिल्मों ‘प्रेम पजुारी’ और ‘दे ग्रेट गैम्बलर’ में अभिनय का मौका दिया। लेकिन जहां तक ‘गाइड’ का सवाल है, उसके किरदार के लिए नृत्य में निपुण एक कलाकार की आवश्यकता थी।
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मैं पूरे सम्मान के साथ कहना चाहूंगा कि मैंने जाहिदा जी का नृत्य ‘प्रभात’ फिल्म में देखा है। मदन मोहन के संगीत से रचे और लता मंगेशकर के स्वर में गाए गए गीत ‘साकिया करीब आ’ पर उन्हें नृत्य करना था। वह एक भी कदम सही ढंग से नहीं रख पा रही थीं। अंततः निर्देशक को दो नृत्यांगनाओं को उनके दोनों तरफ खड़ा करके नचाना पड़ा। और जाहिदा जी उनके बीच में बैठकर बस गाने की तर्ज पर होंठ हिला रही थीं। कल्पना कीजिए की जाहिदा जी ने ‘पिया तोसे नैना लागे रे’ और ‘मोसे छल किए जा’-जैसे गानों का क्या हाल किया होता। इसमें प्रसिद्ध सर्प नृत्य का तो उल्लेख न ही किया जाए तो अच्छा है। कुछ वर्ष पहले मुझे दिए गए एक साक्षात्कार में सायरा बानू ने दावा किया था कि उन्हें भी विजय आनंद की ‘गाइड’ में अविस्मरणीय रोजी के किरादार को निभाने की पेशकश की गई थी। आकर्षक व्यक्तित्व की धनी वहीदा रहमान ने जब यह पढ़ा तो उन्हें बहुत दुःख पहुंचा। उन्होंने अपने एक करीबी मित्र से कहा, “लेकिन यह (सायरा बानू) इतने वर्षों बाद इस विषय पर बात क्यों कर रही हैं। इससे इन्हें क्या लाभ होगा।”
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यही असली बात है। इससे क्या फर्क पड़ता है अगर वहीदा रहमान यह दावा करें कि उन्हें श्याम बेनेगल की ‘अंकुर’ फिल्म में काम करने की पेशकश शबाना आजमी से पहले की गई थी। जबकि सच में उन्हें इस फिल्म की पेशकश पहले की गई थी।
सच तो यह है कि ‘गाइड’ फिल्म की पेशकश वास्तव में केवल दो ही अभिनेत्रियों को की गई थी- वैजयंती माला और वहीदा रहमान। निर्देशक विजय आनंद वैजयंती माला को ‘गाइड’ फिल्म में लेना चाहते थे जबकि फिल्म के निर्माता और मुख्य कलाकार देव आनंद वहीदा रहमान को। यह किसी के लिए भी विश्वास करना मुश्किल होगा कि विजय आनंद की इस क्लासिक फिल्म में चंचल रोजी का यादगार किरदार निभाने वाली वहीदा रहमान ने इसमें काम करने का प्रस्ताव लगभग ठुकरा ही दिया था। विजय आनंद की ‘गाइड’ भारतीय गृहणियों की मुक्ति का एक क्लासिक अध्ययन है।
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वहीदा जी ने इस रहस्योद्घाटन से मुझको चौंका दिया। उन्होंने बताया, “गाइड मात्र मेरी सबसे प्रतिष्ठित फिल्म ही नहीं, यह देव जी का सबसे बेहतरीन काम भी है। आपको यह बात सुनकर हैरानी तो होगी लेकिन सच तो यह कि मैंने ‘गाइड’ को लगभग ठुकरा ही दिया था। हुआ यूं कि शुरू में गाइड का निर्देशन राज खोसला करने वाले थे। राज खोसला और मेरे बीच में पूर्व में एक फिल्म को लेकर विचारों में कुछ मतभेद हो गया था। मैंने उसके बाद उनके साथ कभी किसी फिल्म में काम नहीं किया। और मैं अपना यह इरादा ‘गाइड’ के लिए या किसी अन्य फिल्म के लिए नहीं बदलना चाहती थी।”
वहीदा जी ने बताया, “आप तो जानते ही हैं कि देव कितने जिद्दी थे। उन्होंने मुझे फोन किया और कहा कि वहीदा जो गुजर गया, उसे गुजरने दो। हर कोई गलतियां करता है लेकिन मैं टस-से-मस नहीं हुई। मैंने देव से पूछा कि आपके भाई गोल्डी (विजय आनंद) फिल्म का निर्देशन क्यों नहीं कर रहे हैं। लेकिन तब गोल्डी ‘तेरे घर के सामने’ के निर्देशन में व्यस्त थे। आखिरकार राज खोसला की जगह चेतन आनंद आए लेकिन वह मेरे साथ काम नहीं करना चाहते थे। मुझे इस बात पर हंसी आ गई। यह तो अच्छा हुआ। एक निर्देशक के साथ मैं काम नहीं करना चाहती थी और दूसरा निर्देशक मुझे नहीं चाहता था। शायद चेतन साहब प्रिया राजवंश जी को लेना चाहते थे। लेकिन देव अड़े हुए थे। उनको एक नृत्यांगना की जरूरत थी। अंततः गोल्डी ने ‘गाइड’ का निर्देशन किया और इस तरह मैंने यह फिल्म की। बाकी सब तो आपको मालूम ही है। यह एक ऐसी फिल्म है जिस पर मुझे बहुत गर्व है।”
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वहीदा जी ने देव आनंद के साथ सात फिल्मों में अभिनय किया जिनमें ‘सोलहवां साल’, ‘काला बाजार’ और उनकी पहली निर्देशित फिल्म ‘प्रेम पजुारी’ शामिल हैं।
वहीदा रहमान कहती हैं, “तो आप कल्पना कर सकते हैं हम एक-दूसरे के साथ कितने सहज थे। बल्कि मेरी पहली हिंदी फिल्म ‘सीआईडी’ भी देव आनंद के साथ ही थी। मैं देव आनंद और मधुबाला की बहुत बड़ी प्रशंसक थी। क्या आप अंदाजा भी लगा पा रहे हैं कि उनके साथ फिल्म में काम करते समय मुझे उत्साह के साथ-साथ कितनी घबराहट होती होगी। सेट पर पहले ही दिन जब मैंने उन्हें देव साहब पुकारा तो उन्होंने पलटकर कहा – नहीं, मुझे देव कहो। मैं पहले नाम से उन्हें पुकार नहीं पाती थी क्योंकि मेरा पालन-पोषण ऐसा नहीं था। तो मैंने उन्हें एक सुझाव दिया कि क्या मैं उन्हें आनंद जी पुकार सकती हूं। उन्होंने घूरा और कहा – क्या मैं तुम्हें स्कूल टीचर लगता हूं। अगले दिन जब मैंने उन्हें देव साहब कहकर पुकारा तो वह इधर-उधर ऐसे देखने लगे जैसे उन्हें पता ही नहीं हो कि मैं किसे पुकार रही हूं। अंततः मुझे उन्हें देव ही कहना पड़ा। और वह अपने अंत तक देव ही रहे।”
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