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बॉलीवुड बॉयकॉट का ट्रेंड बना अच्छी फिल्मों का काल, बिना फिल्म देखे गिराने की कोशिशों पर लगाम जरूरी

कुल मिलाकर फिल्म रक्षा बंधन और डार्लिंग्स को एक बार जरूर देखा जाना चाहिए, फिर अगर वे उम्मीदों और मुद्दों पर खरा ना उतरे तो बॉयकॉट का फैसला लेना चाहिए। वक्त आ गया है कि आजकल चलन में आ गए इस ट्रेंड पर फैसला लेना होगा।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

बॉलीवुड का बॉयकॉट नया ट्रेंड बन गया है, किसी नई फिल्म का बहिष्कार करने के लिए हैशटैग बना सोशल मीडिया पर उसे ट्रेंड करवाया जाता है। बहुत से दर्शक बिना फिल्म देखे ही इस बॉयकॉट ट्रेंड का हिस्सा बन जाते हैं। बॉयकॉट ट्रेंड की इस आंधी में आमिर खान की 'लाल सिंह चड्डा' उड़ गई तो महिलाओं से संबंधित विषय पर आई 'रक्षाबंधन' और 'डार्लिंगस' भी इससे अछूती नहीं रही। नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म 'डार्लिंगस' के बॉयकॉट की अपील करते हुए यह कहा गया कि यह फिल्म पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे रही है।

असल में कैसी है फिल्म डार्लिंगस

हम बचपन से अपनी बेटियों को पितृसत्तात्मक समाज में संघर्ष करके हिम्मत से खड़ा रहना तो सिखाते हैं पर फिर भी शादी के बाद हमारी बेटियां इसमें असफल हो जाती हैं। फिल्म 'डार्लिंगस' भी एक ऐसी ही बेटी की कहानी है। पहली बार हाथ उठाने पर ही कदम उठा लेना चाहिए था जैसे सन्देश के साथ फिल्म में हिंसा का जवाब हिंसा को ही दिखाया गया है। इसे सही तो नहीं कहा जा सकता पर महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा का समाधान खोजने की शुरुआत करने में यह फिल्म सहायक हो सकती है।

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निर्देशक का कमाल

फिल्म की शुरुआत में आलिया भट्ट, विजय वर्मा के कंधों का सहारा लिए एक टांग मोड़ कर खड़ी दिखती है। कई सालों से कैमरे के सामने प्रेमियों की यह फेवरेट पोज रही है और निर्देशक जसमीत के रीन ने इस दृश्य को खूबसूरती के साथ फिल्माया है। निर्देशक यहीं प्रभावित करना नहीं छोड़तीं और टेडी बीयर को एक जगह रखने भर से ही उन्होंने टेडी को कहानी का हिस्सा बना दिया है।

पति के खाने में पत्थर आने पर आज भी न जाने कितनी पत्नियां उसके झूठे को अपने हाथ पर रख कर फेंक आती हैं, इसी हकीकत को दिखाते फिल्म की कहानी बुनी गई है। पति से पिटते हुए भी पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली स्त्री के रूप में आलिया भट्ट का अभिनय देखने लायक है। कुछ ही सालों में वो अपने इसी दमदार अभिनय की वजह से बॉलीवुड की टॉप अभिनेत्रियों में शामिल हो गई हैं। 'हाईवे' और 'उड़ता पंजाब' में आलिया का अभिनय याद करने लायक रहा तो एक घरेलू भारतीय पत्नी की तरह कपड़े पहने दिखी आलिया इस फिल्म से भी सालों साल तक दर्शकों की यादों में ताजा रहेंगी।

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वास्तविकता के करीब संवाद

वास्तविक जीवन में महिलाओं पर अपना अधिकार जताते, बहुत से पुरुष फिल्म का संवाद 'पॉनी खोलो न डार्लिंगस' बोलते दिख जाते हैं। इसी तरह महिलाओं का गला पकड़ने, उनके साथ घरेलू हिंसा करने के बाद फिल्म के संवाद 'छोड़ो न डार्लिंगस कल रात थोड़ा ज्यादा हो गई' की तरह ही पुरुषों द्वारा अपने किए पर पर्दा डालना आम बात है।

महिलाओं पर हिंसा करने वाले पुरुषों में आज की पीढ़ी के युवा भी हैं, जिनकी हल्की हल्की मूंछे होती हैं। नशे में डूबकर रहने वाले इन युवाओं पर काम का दबाव बढ़ता ही जाता है और इस दबाव का गुस्सा वह घर आकर अपनी पत्नी पर निकालते हैं। निर्देशक ने अपनी फिल्म के लिए ठीक ऐसे ही दिखने वाले युवा की तलाश अभिनेता विजय वर्मा पर जाकर खत्म की। नेटफ्लिक्स के एक एड में पप्पू पॉकेटमार बन विजय वर्मा ने जो धमाल मचाया था, उसके सबूत आज भी यूट्यूब पर मौजूद हैं। विजय वर्मा 'पिंक' में तापसी पन्नू पर तो 'गली ब्वॉय' में रणवीर पर भी भारी पड़ते नजर आए थे। इस फिल्म में उन्होंने धमाल काम किया है।

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शैफाली शाह की होगी तारीफ

शैफाली शाह फिल्म की शुरुआत में तो ढीली नजर आती हैं पर हाफटाइम के बाद उनके मुंह से निकले संवाद एक मां का दर्द दर्शकों तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं। बॉलीवुड की बहुत सी अदाकारा 49 की उम्र तक आते-आते खुद को एक ऐसी मां के किरदार में बांध लेना सही समझती हैं, जो बस फिल्म में जगह भर रही हों पर फिल्म में रोशन मैथ्यू के साथ किस सीन करने वाली शैफाली के इस किरदार में बहुत रंग हैं। शैफाली इस फिल्म में मुस्लिम महिलाओं के आधुनिक रूप का प्रतिनिधित्व भी करती हैं, यह वह रूप है जो घर की चारदीवारी से निकल अब स्वरोजगार के जरिए अपनी जमीन तलाश कर रहा है।

फिल्म का गीत-संगीत

गाना 'लाइलाज' सुनने में बड़ा प्यारा है और यूट्यूब पर इसे अब तक एक करोड़ से ज्यादा बार देखा गया है। फिल्म का पार्श्वसंगीत एक तरफ मां-बेटी के रिश्ते को मजबूत करता है तो दूसरी तरफ पति से डरती एक पत्नी का खौफ हमारे सामने लाता है। टिफिन के सीढ़ी से टकराने की आवाज से फिल्म में आलिया तो खौफ खाने लगती हैं पर इस काम से निर्देशक दर्शकों के दिल में जगह बनाने में कामयाब हो जाती हैं।

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'रक्षाबंधन' भी हुई #boycottBollywood ट्रेंड की शिकार

फिल्म रक्षाबंधन के बारे में बात की जाए तो आज के दौर में समाज के अंदर व्याप्त कुप्रथाओं पर बहुत कम फिल्में बन रही हैं। दहेज रूपी दानव हमारे समाज में आज भी पल बढ़ रहा है और निर्देशक आंनद एल राय ने इसी विषय पर हल्की-फुल्की कॉमेडी के साथ फिल्म रक्षाबंधन बनाई है। दर्शकों को किस तरह हंसाया और रुलाया जाता है, ये कला आंनद एल राय को अच्छी तरह से आती है। रक्षाबंधन से पहले वह इस काम को 'तनु वेड्स मनु' और 'अतरंगी रे' फिल्मों में कर चुके हैं।

अक्षय कुमार के दम पर टिकी फिल्म

अक्षय कुमार के अभिनय का ही कमाल है कि फिल्म अपनी शुरुआत से ही दर्शकों को खुद से जोड़ लेती है। अक्षय कुमार द्वारा बोला गया संवाद 'सारा पैसा जो मैंने तुम्हारे दहेज के लिए जोड़ रखा है, वो मैं तुमपे लगाऊंगा। तुम्हें इस काबिल बनाऊंगा कि तुम खड़े होके उल्टा दहेज मांग सको' भारत के हर माता-पिता, भाई द्वारा अपनी बेटियों और बहनों से बोला जाना चाहिए।

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भूमि पेडनेकर का बॉलीवुड में अब तक का सफर किसी परी कथा से कम नही है। इस फिल्म में वह अक्षय कुमार की प्रेमिका बनी नजर आई हैं और जितनी बार भी स्क्रीन पर दिखती हैं, प्रभावित ही करती हैं। वेब सीरीज गिल्टी माइंड्स में दिख चुके अभिनेता अरुण कालरा इस फिल्म में एक दहेजलोभी पिता बने हैं, वह अपनी संवाद अदाएगी से प्रभावित करते हैं। उम्मीद है कि अब उन्हें स्क्रीन पर अधिक समय मिलने लगेगा।

इंटरवल तक फिल्म की कहानी बिखरी हुई सी लगती है पर इसके बाद फिल्म अपने मुख्य विषय पर ही चलती है। 'कंगन रूबी' गीत इस सीजन की शादी बारातों में खूब बजता सुनाई देगा। फिल्म का पार्श्व संगीत भी सही काम कर गया है।

दिल्ली में दहेज की बात होगी तो सुनाई देगी ही

'रक्षाबंधन' में एक बात बार-बार अखरती है कि इसके सेट को कुछ ज्यादा ही चहल पहल वाला बना दिया गया है। निर्देशक ने फिल्म की कहानी का केंद्र दिल्ली को चुनकर बहुत अच्छा किया, एक जगह बैकग्राउंड में लाल किला भी दिखता है। दहेज प्रथा रोकने का सन्देश देने के लिए दिल्ली से बेहतर जगह कोई और हो ही नहीं सकती थी। इससे दर्शकों तक यह सन्देश जाता है कि अगर हमारी राजधानी जैसी जगह में भी दहेज प्रथा चल रही है तो बाकी जगह का क्या हाल होगा।

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महिलाओं का रंग और साइज जरूरी नही

दहेज प्रथा निभाने के साथ-साथ हमारे समाज में महिलाओं के लिए कई मापदंड भी बनाए गए हैं, जिनमें उनका खरा उतरना जरूरी होता है। महिलाओं के रंग और साइज के अनुसार ही समाज में उनको जाना जाता है। फिल्म में इस विषय पर भी बड़ी बारीकी से काम हुआ है।

कुल मिलाकर फिल्म रक्षा बंधन और डार्लिंग्स को एक बार जरूर देखा जाना चाहिए, फिर अगर उम्मीदों और मुद्दों पर खरा ना उतरे तो बॉयकॉट का फैसला लेना चाहिए। वक्त आ गया है कि आजकल चलन में आ गए इस ट्रेंड पर फैसला लेना होगा। रचनात्मकता का सम्मान जरूरी है।

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