मनोरंजन

'निर्मल पाठक की घर वापसी' नहीं है पंचायत 3, गंवई पृष्ठभूमि पर आधारित सीरीज पैदा करती है नई संभावना

निर्मल पाठक एक ऐसा इंसान है जिसने अब तक का जीवन दिल्ली के एक कुलीन, खासे पढ़े-लिखे सामाजिक ताने-बाने के बीच बिताया है। वह अपनी जड़ों की तलाश में, कुछ बदलने की मंशा लिए गांव लौटता है और स्वाभाविक रूप से वहां ऐसी घटनाएं होती हैं जो उसकी कल्पना में नहीं थीं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

चालीस की उम्र से पहले जो कम्युनिस्ट न हुआ, उसके पास दिल नहीं होता और चालीस के बाद भी अगर जो कम्युनिस्ट रह गया, उसके पास दिमाग नहीं होता।’ सुनने में हल्का-फुल्का लेकिन दर्ज हो जाने वाला यह संवाद जिस तरह अपने प्रोमो में ही दिमाग पर चढ़ता है, आप खुद-ब-खुद इसे देखने चले आते हैं। यह ओटीटी सोनी लिव पर शुरू हुई नवीनतम वेब सीरीज ‘निर्मल पाठक की घर वापसी’ का संवाद है जो पर्दे पर नेताजी, यानी विनीत कुमार के श्रीमुख से निकलता है।ऐसे वक्त में जब पंचायत वेब सीरीज का दूसरा सीजन भी आकर छोटे पर्दे पर धूम मचा चुका हो, गंवई पृष्ठभूमि पर आधारित इस सीरीज को लांच करना चुनौती भी थी, एक नई संभावना भी।

हल्के-फुल्के सामाजिक नाटकनुमा इस वेब सीरीज में वैभव तत्ववदी मुख्य भूमिका में हैं। इसकी सफलता के प्रति आश्वस्त वैभव मानते हैं कि यह सीरीज हर मायने में ‘अभूतपूर्व’ होने जा रही है। उत्साह से लबरेज वैभव कहते हैं- ‘स्क्रिप्ट अभूतपूर्व, लेखन, पटकथा सब कुछ अभूतपूर्व था।’ यह जोड़ने से बाज नहीं आते कि ‘इसका हर चरित्र न सिर्फ आपको छुएगा बल्कि आपके दिल में अपने लिए एक स्थायी घर भी बना लेगा।’ उनका मानना है कि कोई कलाकार सिर्फ एक ही दृश्य में क्यों न हो, उसका लहजा, उसकी संवाद आदायगी आपके जहन में दर्ज हो जाएगी।

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तीस की वय वाला निर्मल पाठक (वैभव तत्ववादी) एक ऐसा इंसान है जिसने अपना अब तक का पूरा जीवन दिल्ली के एक कुलीन, खासे पढ़़े-लिखे सामाजिक ताने-बाने के बीच बिताया है। वही निर्मल अपनी जड़ों की तलाश में, कुछ बदलने की मंशा लिए अपने गांव लौटता है। और स्वाभाविक रूप से वहां कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जो उसकी कल्पना में नहीं थीं।

लेकिन शो में अन्य पात्रों के विपरीत नेताजी (विनीत कुमार) भी हैं जो मानने को तैयार ही नहीं कि वह (निर्मल) गांव में कुछ बदलने की कोशिश भी कर रहा है। विनीत बताते हैं- ‘निर्मल की अपनी सोच और अपनी विचारधारा है। इसीलिए जब वह गांव वापस आता है, उसका उन लोगों से खासा मतभेद हो जाता है जो उसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं। उन्हें लगता है कि जैसे कोई उन्हें बदलने की कोशिश कर रहा है या उपदेश दे रहा है। मतलब ‘सिखा’ रहा है।’

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शो में अलग-अलग शेड्स के साथ आने वाले राजनीतिक मुद्दों को रेखांकित करते हुए विनीत बड़े रोचक अंदाज में बताते हैं कि किस तरह उनके नेताजी (उनका खुद का चरित्र) आज के तथाकथित कम्युनिस्टों और वामपंथियों की पोल-पट्टी खोलते हैं जिनकी कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है। जो कहते कुछ हैं, करते कुछ और हैं। विनीत बताते हैं कि यह शो इस मायने में हल्का-फुल्का है कि यहां दर्शक पात्र की भूमिका, उसके किए पर हंसते हैं लेकिन पात्रों के लिए वह सब गंभीर मुद्दे हैं। दर्शक उन्हें भले ही हल्के में ले, वे इसे हल्के में नहीं लेते हैं।

विनीत ट्रेलर से चर्चा में आए उस संवाद की याद दिलाते हैं जो कहता है- ‘जो चालीस की उम्र तक कम्युनिस्ट नहीं है, उसके पास दिल नहीं है। और जो चालीस के बाद भी कम्युनिस्ट बना रहता है, उसके पास दिमाग नहीं होता। एक और संवाद है जिसमें नेताजी जेएनयू पर सवाल उठाते हैं।’ विनीत कहते हैं- ‘दरअसल यह सब हमारे समय और समाज की विडंबना है। ये बयान सुनने में राजनीतिक लग सकते हैं लेकिन इनका उद्देश्य महज हास्य पैदा करना और लोगों को हंसाना है।’

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कुमार कहते हैं- ‘निर्मल में हर उस चीज का विस्तार है जो उसकी मां में है।’ सीरीज में वैभव तत्ववादी, यानी निर्मल की मां (संतोषी) की भूमिका निभाने वाली अलका अमीन अपने सह-अभिनेता से पूरी तरह सहमत दिखती हैं। कहती हैं- ‘संतोषी ऐसी महिला है जो ज्यादा बात नहीं करती। शांत रहती है। चेहरे पर हमेशा मंद-मंद मुस्कान लिए हुए लेकिन वह बहुत मजबूत महिला है। हर बात सोच समझकर कहने वाली। जब भी कुछ कहती है, उसमें वजन होता है।’ हालांकि अमीन के सामने यह चरित्र निभाते हुए कई चुनौतियां थीं। भाषाई चुनौती सबसे बड़़ी थी क्योंकि पहली बार ‘बिहारन’ का चरित्र निभाने जा रही थीं। स्थानीय बोली-भाषा से एकदम अनजान। बोलना तो दूर, कभी किसी को इस बोली-बानी में बोलते सुना तक नहीं था। ऐसे में इसे सीखना बड़़ी चुनौती थी। लेकिन वह आश्वस्त हैं कि उन्होंने चरित्र के साथ न्याय किया है।

वैभव के लिए सर्दियों में शूटिंग करते हए अपने निर्देशक को संतुष्ट करने की दोहरी चुनौती थी। लेकिन इससे भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण था ‘निर्मल की भावनाओं को बारीकियों से समझना, उसके करीब पहुंचना। यह इसलिए भी मुश्किल था कि निर्मल बोलता भले ही बहत कम है लेकिन उसके अंदर भावनाओं का बवंडर हिलोरें मारता रहता है।’

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क्या ‘नेताजी’ के सामने भी ऐसा कुछ चुनौतीपूर्ण था, विनीत कहते हैं- “मेरे लिए तो सेट पर मौजूद हर चरित्र और हर स्थिति, यानी सबकुछ ही एक चुनौती बन गया था। वह कोई वस्तु हो, प्रकाश हो, सह-अभिनेताओं की लाइंस (संवाद) हों या उनके कहने का तरीका। जब तक आप हर चीज को चुनौती के तौर पर नहीं देखते, तब तक आप शो को अपना नहीं बना सकते। यही वह दर्शन है जो एक अभिनेता को अभिनेता बनाता है।”

लेकिन चुनौतियां दरकिनार, ये कलाकार अपने पात्रों को जीकर खुश हैं। मानते हैं कि सेट पर बीता वक्त अद्भुत था। वैभव कहते हैं- ‘हमारे निर्देशक राहुल पांडेय की समझ एकदम साफ थी कि वह क्या चाहते हैं और दर्शकों को कहानी कैसे दिखानी है। इसलिए अभिनेता के तौर पर हमारे लिए सबकुछ बहुत आसान हो गया।’ उनका मानना है कि इस शो के बाद वह एक बेहतर अभिनेता और बेहतर इंसान बनकर उभरे हैं क्योंकि यह एक ऐसा शो है जिसे सफल बनाने में सबने अपना दिल और अपनी आत्मा लगा दी है। यह एक सपने के सच होने जैसा था।

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