बॉबी रिलीज हुई तो मैं स्कूल में थी। यह ऐसी बड़ी हिट थी कि बॉबी ड्रेसेज, बॉबी शूज, यहां तक कि बॉबी हेयर क्लिप तक बाजार में छा गए। मैं भी बालों में बॉबी क्लिप लगाकर स्कूल जाती। (हंसते हुए) ऋषि कपूर से मेरा यही परिचय था। सोचा भी नहीं था कि कभी उनके साथ इतनी सारी फिल्में करूंगी। यहां तक कि उनकी अंतिम फिल्म (शर्माजी नमकीन) में भी हम साथ हैं, यह मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है। कुछ ही दिन पहले मुझे लग गया था कि अब मैं चिंटू जी (ऋषि कपूर) के साथ फिर कभी सेट पर न लौट पाऊंगी। यह मेरे लिए किसी त्रासदी से कम नहीं, क्योंकि वह मेरे सबसे मजेदार सह-कलाकारों में से थे।
यह ‘कयामत से कयामत तक’ का म्यूजिक लांच था। वह मुख्य अतिथि थे, बड़े सितारे थे जबकि आमिर (खान) और मैं उस वक्त क्या थे? सो, हम उनके पास जाकर खड़े हो गए। (हंसते हुए) यही एकमात्र तरीका था जिससे हम भी फ्रेम में आते और अखबारों में छपते।
हां, एक तो लोग चिंटूजी के लिए देख रहे हैं, दूसरे शर्माजी का चरित्र भी सीधे कनेक्ट करता है। पहले ऐसी फिल्में खूब बनती थीं और लोग छोटे-छोटे लम्हों को दर्ज करने के लिए उन्हें याद भी करते हैं लेकिन इधर हमने ऐसा नहीं देखा। सच कहूं, तो मैं भी हैरान हूं क्योंकि यकीन नहीं था कि लोग परेश रावल और ऋषि कपूर को एक ही भूमिका में कैसे स्वीकार करेंगे। यह किसी दैवीय हस्तक्षेप जैसा है, मानो चिंटूजी ऊपर से हमारे लिए यह सब मैनेज कर रहे हों।
Published: undefined
यह सब किसी एडवेंचर से कम नहीं था। हम बच्चों के साथ स्कीइंग की छुट्टियों पर आस्ट्रिया में थे। लाउंज में बैठे बेटी की फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे कि पता चला नॉन अमेरिकन छात्रों को महामारी के कारण यात्रा की अनुमति नहीं मिली है। चिंता स्वाभाविक थी। लॉकडाउन जैसी चीज तो कभी कल्पना में ही नहीं थी। आस्ट्रिया में तीन-चार दिन बाद बताया गया कि तुरंत नहीं लौटे तो चौदह दिन वहीं रहना होगा। हमने झटपट पैकिंग की और वापसी की फ्लाइट पकड़ने स्विटजरलैंड रवाना हो गए। वहां सुबह इस सूचना से हुई कि स्विटजरलैंड भी अपनी सीमाएं बंद करने जा रहा है। अच्छा हुआ कि हमलोग ठीक समय पर वहां से निकलने में सफल रहे लेकिन लंदन पहुंचने पर भारत सरकार की घोषणा सामने आई कि स्वदेश वापसी के इच्छुक लोग तत्काल लौटें, वरना ब्रिटेन भी लॉकडाउन करने जा रहा है। हमने आनन-फानन दूतावास से कागजात लिए और आखिरी फ्लाइट पकड़कर लौटने में कामयाब रहे।
Published: undefined
शुरुआती चिंता और घबराहट तो थी ही। मैंने इसके बारे में पढ़ना शुरू किया। कहते हैं न कि ज्ञान रिलीफ देता है! मेरी समझ में आया कि विटामिन, प्राणायाम, प्राकृतिक चिकित्सा की दैनिक खुराक से आप खुद को मजबूत बना सकते हैं। जाह्नवी पांच-छह महीने मेरी ससुराल में रही। बेटा अर्जुन साथ था। उसे स्कूल नहीं जाना था और हमें काम की भागदौड़ नहीं थी, सो हमने अच्छा वक्त साथ गुजारा। यह अहसास और भी सुखद था कि हम वास्तव में कितने कम में काम चला सकते हैं। शांति से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं। मैं अब वह जूही नहीं रह गई थी जो पहले हुआ करती थी।
मैंने बहुत कुछ चीजों में कटौती की है जो लंबे समय से फिजूल में हमारे साथ थीं। जीवन में उतने भी उलझाव नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि मैंने पहले इतना सब कब किया था। आज मैं सबकी उम्मीदों पर खरी भले न उतरूं लेकिन मेरे अपने भीतर की शांति तो मेरे साथ है न।
Published: undefined
आर्यकन्या गुरुकुल की स्थापना पोरबंदर में मेरे पति (जय मेहता) के दादा (नानजी कालिदास मेहता) ने 1936 में की थी। ससुराल वालों अब इसके संचालन की निगरानी अपनी 2000 छात्राओं के साथ हमें सौंप दी है। शिक्षा ऐसी ही होनी चाहिए। यहां विषयों को इतिहास, भूगोल और गणित में बांटा नहीं जाता जो किताबी ज्ञान कहता है। ज्ञान तो संपूर्णता में दिया जाना चाहिए, तभी वह दिमाग को खोल पाएगा। लड़कियों को यहां छोटे-छोटे डब्बों में कैद नहीं करते जिन्हें क्लासरूम कहते हैं। वे खेतों के आसपास घूम सकती हैं, नौका विहार के साथ तीरंदाजी व अन्य खेल सीख सकती हैं। जीवन को जीते हुए ज्यादा व्यापक शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं। आप सबसे अच्छा प्रकृति से सीखते हैं लेकिन जैसा कि सदगुरुजी कहते हैं- हमारे ग्रह की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम प्रकृति का बेहतर उपयोग करने के बजाय उसकी हत्या कर रहे हैं। हमारी मिट्टी का क्षरण हो रहा है। जलीय जीव, नदियां, पौधे नष्ट हो रहे हैं। और यह सारी हाराकीरी करने वाले पढ़े-लिखे लोग हैं। मतलब यह कि हमारी शिक्षा में ही कुछ गड़बड़ है। हमें और गुरुकुल और शांतिनिकेतनों की जरूरत है। पूर्व और पश्चिम के सर्वश्रेष्ठ को साथ लेकर चलने की जरूरत है। डिजिटलीकरण के साथ-साथ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत अपनाने की जरूरत है, तभी ये उज्जवल दिमाग दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकेंगे।
Published: undefined
(हंसते हुए) वे पहले ही ‘मशाल’ संभाल चुके हैं। मैं खुद को धन्य मानती हूं कि कभी उन्हें हांकना नहीं पड़ा। शायद लंबे समय से हमें यह सब करते देखने का अनुभव है कि उनमें स्वाभाविक दिलचस्पी जाग गई। जाह्नवी खुद क्रिकेट की शौकीन है और पिछले साल इस नक्शे में आई। उसके अगले साल आर्यन और इस साल सुहाना भी आ गई। नीलामी में हर साल एक नए बच्चे की एंट्री और अब तीनों को एक साथ शामिल होते देखना वाकई सुखद है।
मैंने पहले ही कहा, हम कभी उन्हें पुश नहीं करते। फैसला उन्हें ही करना है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined