यह तो सब मान रहे हैं कि पांच में से चार राज्यों में बीजेपी की सत्ता में वापसी की वजह हिन्दुत्व की लहर और फ्री राशन योजना रही। लेकिन कम से कम यूपी में कुछ और योजनाओं ने भी उसकी मदद की। मसलन, ई-श्रम, स्कूल ड्रेस और मिड-डे मील योजनाओं के नाम पर करोड़ों लाभार्थियों के खाते में भेजे गए अरबों रुपये। अब लगता है कि बीजेपी को इस किस्म की योजनाओं के बल पर जीत के खून का स्वाद लग गया है। उसने उत्तर प्रदेश में एमएलसी की 36 सीट पर होने वाले चुनाव से ऐन पहले यही फॉर्मूला अपनाया है। वैसे, इसके साथ दबंगई भी एक फैक्टर तो है ही।
एमएलसी के लिए 36 क्षेत्रों में चुनाव हो रहे हैं। इनमें से आठ पर बीजेपी प्रत्याशी पहले निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। अब शेष बची 28 सीटों के लिए 9 अप्रैल को वोटिंग होनी है। इनके भाग्य का फैसला 1.40 लाख वोटर करेंगे। एलएलसी चुनाव में जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, बीडीसी मेंबर, पार्षद, जिला पंचायत सदस्यों को वोट देना होता है।
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हालांकि कोई सीधे नहीं कह रहा, पर वोटरों को सीधा लाभ देने के मकसद से ही ग्राम पंचायतों को 500 करोड़ भेजे जा चुके हैं। योगी सरकार ने विधानसभा चुनाव से ऐन पहले 15 दिसंबर को ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख से लेकर जिला पंचायत सदस्यों के मानदेय बढ़ोतरी की घोषणा की थी। विधानसभा चुनाव के समय खाते में रकम नहीं डाली गई लेकिन उनमें उम्मीद तो बंध ही गई और इस वजह से तब भी बीजेपी को वोटों का फायदा मिला। अब एमएलसी चुनाव से ठीक पहले बढ़े मानदेय के साथ ही एरियर का भी तोहफा दिया गया है।
नए शासनादेश के बाद ग्राम प्रधानों का मानदेय 3,500 से बढ़ाकर 5,000, ब्लॉक प्रमुख का 9,800 की जगह 11,300, जिला पंचायत अध्यक्ष का मानदेय 14 हजार से बढ़ा कर 15,500 रुपये कर दिया गया है। वहीं ग्राम पंचायत सदस्य को साल भर में 1,200 रुपये मिले, इसका भी इंतजाम कर दिया गया है। क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) को भी प्रति बैठक अब 500 रुपये की जगह 1,000 रुपये मिलेंगे। एक साल में 6 बैठकों की अनिवार्यता से साल भर में 6,000 रुपये मिलना सुनिश्चित हो गया है।
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इतना ही नहीं, सरकार ने हर ग्राम पंचायत में कोष का गठन भी किया है। इसमें आकस्मिक दुर्घटना का शिकार होने पर ग्राम प्रधान के परिजनों को 10 लाख, जिला पंचायत सदस्य को 5 लाख, क्षेत्र पंचायत सदस्य को 3 लाख और ग्राम पंचायत सदस्य के परिजनों को 2 लाख की सहायता मिलेगी। सरकार के इस फरमान से प्रदेश के 58 हजार से अधिक ग्राम प्रधानों और 75 हजार से अधिक बीडीसी मेंबर को सीधा लाभ हुआ है। इसी तरह 75 जिलों के 3,051 जिला पंचायत सदस्यों की भी बल्ले-बल्ले है। प्रतिनिधियों को मानदेय 15वें वित्त से दिया जाना है। जिन ग्राम सभाओं में जनसंख्या कम होने से बजट का टोटा है, उन्हें बड़ी ग्राम सभाओं का फंड काटकर दिया जाएगा।
जौनपुर के एक गांव के प्रधान का कहना है कि ‘ग्राम प्रधान को शौचालय के केयर टेकर को भी मानदेय विकास के काम के लिए आए फंड से देना है। वोट की खातिर फंड बांटने की नीति से गांव में विकास कार्य बाधित होंगे।’ वैसे, उत्तर प्रदेश किसान कांग्रेस के उपाध्यक्ष श्रीप्रकाश सिंह का कहना है कि ‘ग्राम पंचायतों को अधिकार देना हो या फिर प्रधानों समेत अन्य सदस्यों को मानदेय, इसे गलत नहीं कहा जा रहा है। सवाल टाइमिंग और विकास के बजट की कटौती का है। सरकार को मानदेय के लिए अलग से बजट का प्रावधान करना चाहिए। चुनाव से पहले ई-श्रम योजना के लाभार्थियों के खाते में 1,000-1,000 रुपये भेजे गए। प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के खाते में स्कूल ड्रेस से लेकर मिड-डे मील के नाम पर रुपये ट्रांसफर हुए। सवाल यह है कि चुनाव खत्म होते ही अभिभावकों से लेकर श्रमिकों के खाते में रुपये क्यों नहीं आ रहे हैं?’
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बहुमत होना तय
100 सीटों वाली विधान परिषद में बीजेपी के 35, सपा के 17, बीएसपी के 4 सदस्य हैं। वहीं कांग्रेस, अपना दल और निषाद पार्टी के एक-एक सदस्य हैं। विधान परिषद में बहुमत के लिए बीजेपी को सिर्फ 16 सीटों की दरकार है। अब जो स्थिति बन रही है, उसमें बीजेपी आश्वस्त है कि उसे विधान परिषद में दो-तिहाई बहुमत मिल जाएगा। इस बार 36 सीटों पर हो रहे चुनाव में बीजेपी को 8 पर निर्विरोध जीत मिल चुकी है। एटा-मैनपुरी-मथुरा से दो सदस्य निर्वाचित होते हैं। यहां से बीजेपी के आशीष यादव और ओम प्रकाश सिंह निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। वहीं लखीमपुम से अनूप कुमार गुप्ता, बांदा-हमीरपुर से जितेंद्र सेंगर, बुलंदशहर से नरेन्द्र भाटी, अलीगढ़ से ऋषिपाल, हरदोई से अशोक अग्रवाल को जीत मिली है। मिर्जापुर-सोनभद्र से बाहुबली श्याम नारायण सिंह उर्फ विनीत सिंह और बदायूं से बागीश पाठक को जीत मिली है।
हालांकि विधान परिषद चुनावों में सत्ताधारी पार्टी के दबदबे का इतिहास रहा है। 2004 में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। तब एसपी ने 36 में से 24 सीटें जीती थीं। 2010 में मायावती मुख्यमंत्री थीं। तब बीएसपी ने 36 में से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2016 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह का रिकॉर्ड तोड़ा था। उस वक्त एसपी को आठ सीटों पर निर्विरोध जीत मिली थी और वह 36 में से 31 सीटों पर विजयी रही थी।
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