अगर आप उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से संबंधित आंकड़े देखें, तो आप विचलित करने वाला एक ट्रेन्ड पाएंगे। राज्य की राजधानी का हृदय कहे जाने वाले लखनऊ मध्य चुनाव क्षेत्र से कभी कोई महिला प्रत्याशी नहीं जीत सकी है। 2017 में हुए चुनावों में यहां 17 उम्मीदवार थे जिनमें एक ही महिला थी। उन्हें सिर्फ 104 वोट मिले।
इस बार यहां से सदफ जाफर कांग्रेस उम्मीदवार हैं और उनका कहना है कि हालात बदल रहे हैं। जाफर यहां सीएए विरोधी आंदोलन की चेहरा बन गई थीं। वह बताती हैं कि वह जब प्रचार के लिए निकलती हैं, तो देखती हैं कि लोग वर्तमान भाजपा शासन से कितने नाखुश हैं। वह कहती हैं, ‘मैं सीएए विरोधी आंदोलन के समय घंटा घर पर महिलाओं के साथ बैठी थी। आज जब वे मुझे देखती हैं, तो मुझे गले लगा लेती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि हमें किस दौर से गुजरना पड़ा और हम सबने मिलकर किस तरह उसे झेला।’ जाफर को यकीन है कि चूंकि उन्होंने सरकार का कोप झेला, वह जानती हैं कि आम जनता का क्या कुछ दांव पर लगा हुआ है। वास्तव में, जुल्म की इंतहा कहीं रुक नहीं रही।
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जाफर से जब पूछा कि उनके इलाके में लोगों के लिए मुद्दे क्या हैं, तो उनके पास पूरी सूची हाजिर थी। यहां साफ पेयजल, सीवर नहीं हैं; कूड़ा नहीं उठवाया जाता; कुछ ही सरकारी स्कूल और मोहल्ला क्लीनिक हैं; अस्पतालों में डॉक्टर-कर्मचारी कम हैं; स्ट्रीट लाइट नदारद हैं; महिलाएं असुरक्षित हैं; पुलिस अधिकारियों का कोई उत्तरदायित्व नहीं हैं; ‘बदला लेंगे’, ‘ठोको’, ‘ठांय-ठांय’ की मानसिकता है। लेकिन इन सबमें सबसे बड़ी है- अनियोजित विकास।
जाफर कहती हैं कि अनियोजित विकास तब होता है जब निर्वाचित जनप्रतिनिधि लोगों की जरूरतों को समझने के लिए अपना वक्त नहीं निकाल पाते। वह कहती हैं, ‘उदाहरण के लिए, आप भले ही सार्वजनिक स्कूल चाहते हों, पर मैं फ्लाईओवर के निर्माण का निर्णय करूं क्योंकि वह कुछ ऐसा है जिसमें भ्रष्टाचार के जरिये मेरा परोक्ष लाभ भी होगा। नियोजित विकास मुश्किल भी नहीं है। आपको सिर्फ जनता दरबार लगाना होगा और उन लोगों के मुद्दों पर ध्यान देना होगा जिन्होंने आपको चुना है।’
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बातचीत के क्रम में हिजाब का मुद्दा आया, तो जाफर ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किस तरह उन लड़कियों को स्कूलों से दूर किया जा रहा है जिनकी शिक्षा के लिए अनगिनत संघर्ष किए गए हैं, अनगिनत बलिदान किए गए हैं। वह कहती हैं, ‘शिक्षा का अधिकार किसी भी व्यक्ति के लिए शिक्षा का अधिकार है। आज आपको हिजाब के साथ दिक्कत है, कल पगड़ी के साथ समस्या होगी, परसों हम लोगों के स्कूल-कॉलेज जाने पर होगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी महिला आत्मनिर्भर होने में सक्षम है। कोई क्या पहनती है, यह किसी भी अन्य की चिंता का विषय नहीं होना चाहिए।’
जाफर को यह बात क्षुब्ध करती है कि सरकार की गलतियों को छिपाने के लिए किस तरह ध्रुवीकरण, हिन्दू-मुस्लिम तर्क दिए जा रहे हैं। उन्हें लगता है कि यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि इन बातों को छिपाया जा सके कि जब महामारी में लोगों की जान जा रही थी, सरकार ने आपकी मदद नहीं की जबकि वैसे अजनबियों ने मदद की जिनके धर्म, जिनकी जाति भी आप नहीं जानते थे। यह बात भी उन्हें चिंता में डालती है कि शांतिभंग करने वाला नैरेटिव बनाया जा रहा है।
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वह कहती हैं, ‘हर सुबह जब आप जगते हैं, तो आपके पास एक नया वाट्सएप फॉरवर्ड आ जाता है जो बताता है कि एक समुदाय का पुरुष 15 महिलाओं से शादियां कर रहा है, 20 बच्चों को जन्म दे रहा है, और कुछ ही दिनों में ऐसा समय आएगा जब सरकार, सांसद, विधायक- सब उसके समुदाय के ही होंगे। लेकिन 20 बच्चों का लालन-पालन, पोषण करने के लिए किसके पास पैसा है? उसके लिए किसके पास पर्याप्त खाना-पीना है? अर्थव्यवस्था तो खराब है।’
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