यूपी चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम पर आरोप लग रहा है कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की 'बी' टीम बनकर काम किया है। कई सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवार ने वोट अपने खाते में जमकर डलवाए हैं। अगर यही वोट सपा-रालोद गठबंधन में जोड़े जाते, तो बीजेपी की हार सुनिश्चित हो जाती।
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यूपी चुनाव में बीजेपी 7 सीटें 200 वोटों से, 23 सीटों पर 500 वोटों से, 49 सीटों को 1000 वोटों से, 86 सीटों पर 2000 वोटों से जीती है। इन सभी सीटों पर ओवैसी ने उदारता से गोल किया है और विपक्षी वोटों को बांटकर बीजेपी की मदद की है। मसलन, बिजनौर में सपा-रालोद को 95,720 जबकि एआईएमआईएम को 2,290 वोट मिले। बीजेपी ने 97,165 वोट पाकर यह सीट जीती जो सपा-रालोद से मात्र 1,445 ज्यादा है।
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इसी तरह नकुर में बीजेपी को 1,03,771 वोट मिले जबकि सपा को 1,03,616 वोट मिले। एआईएमआईएम को 3,591 वोट मिले जिससे बीजेपी को यह सीट मिली। इसी तरह बाराबंकी की कुर्सी सीट पर बीजेपी को 1,18,614 वोट मिले, जबकि एसपी को 1,18,094 और एआईएमआईएम को 8,541 वोट मिले।
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वहीं, सुल्तानपुर में बीजेपी को 92,245 और सपा को 90,857 वोट मिले थे। एआईएमआईएम को यहां 5,251 वोट मिले। औराई विधानसभा सीट पर, एआईएमआईएम ने 2,190 वोट ले लिए, जिससे बीजेपी को 93,691 वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी को 92,044 वोट मिले।
शाहगंज में बीजेपी 76,035 मतों से जीती और सपा 70,370 मतों के साथ पिछड़ गई। यहां एआईएमआईएम को 7,070 वोट मिले थे। फिरोजाबाद में बीजेपी 1,12,509 और समाजवादी पार्टी को 79,554 जबकि एआईएमआईएम को 18,898 वोट मिले।
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उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक निश्चित लक्ष्य के साथ कदम रखा था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गैर-भाजपा वोट एक स्थान पर एकजुट न हों। चुनाव नतीजों में यह लक्ष्य सफल होता साफ दिखता है। इसके बाद एआईएमआईएम पर बीजेपी की बी टीम होने का लगने वाला आरोप और पुख्ता साबित होता है।
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