यूपी में पहले फेज की वोटिंग ने सभी पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों का टोन एक किस्म से तय कर दिया है। यह ठीक है कि इस पहले फेज की 58 सीटों में मतदान एकतरफा नहीं हुआ है लेकिन यह भी बिल्कुल साफ है कि मुसलमानों के भारी संख्या में वोट करने का जाना-माना प्रचार कर भ्रमित करने और इस बहाने दूसरे वर्गों को बीजेपी की तरफ धकेलने की कोशिश इस बार सफल होती नहीं दिखी। वोटिंग जाति-धर्म से ऊपर उठकर लगभग उसी तरह हुई है जैसी पहले से अपेक्षा थी। ऐन मतदान के बीच आई इस खबर ने आग में घी का काम किया कि केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है। आशीष के वाहन से ही 3 अक्तूबर को लखीमपुर खीरी में चार किसानों की कुचलकर हत्या कर दी गई थी।
दरअसल, गांवों की आबोहवा अब भी मुश्किल बनी हुई है। लोग हवा की बात कर ही नहीं रहे, न अपने पत्ते दिखा रहे। जिससे भी बात करो, वह इस बार मुद्दे जरूर गिनाता है। इसलिए साफ है कि पब्लिक इस बार ज्यादा गुमराह नहीं है। पहले फेज में ग्रामीण इलाकों में जिस तरह लोग घरों से बाहर निकले, उसने बीजेपी की पेशानी पर इसीलिए बल ला दिए हैं।
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14 फरवरी को उत्तराखंड और गोवा में भी मतदान है जबकि यूपी में दूसरे फेज की वोटिंग है। शहरी इलाकों से इतर उत्तराखंड के पहाड़ और यूपी के ग्रामीण इलाकों में अधिकतर लोग खेती-किसानी की बदहाली, फसलों का सही मूल्य न मिलना और छुट्टा जानवरों की विकराल समस्या पर ही बात करने लगते हैं। इस दौरान कोई ऐसा मुद्दा निकलकर नहीं आता जो केन्द्रीय राजनीति से जुड़ा हो।
रूहेलखंड मंडल के जिले शाहजहांपुर में पुवायां के बरगदिया गांव के रहने वाले संतोष कुमार मिश्र पेशे से निजी स्कूल में शिक्षक हैं। खेती में गन्ना उगाते हैं। उनका कहना है, अगर मेरे पास एक नौकरी न होती तो खेती से रोजी-रोटी चलाना मुश्किल है। इस बार धान 1,100 रुपये क्विंटल बिका है। अगर लागत निकाली जाए तो किसानों को अपनी जेब से देना पड़ा। लगभग सभी ने ब्याज पर पैसा लेकर लगाया जो सभी डूब गया।
पीलीभीत जिले के गांव जगतपुर के रहने वाले अनिल अवस्थी बताते हैं कि इस बार चुनाव में स्थानीय मुद्दे प्रमुखता से रखे जा रहे हैं। गांव में आकर अगर आप वोट मांगेंगे तो किसानों की समस्या सिर्फ सुननी ही नहीं होगी बल्कि उसका समाधान भी करना होगा। पिछले पांच साल में एक भी विधायक ने किसानों के साथ जाकर उनकी समस्याएं दूर कराने में मदद की हो तो बताएं। ऊपर से लखीमपुर खीरी में जो कुछ हुआ, वह सब जानते ही हैं। अनिल कहते हैं, दुष्प्रचार या फिर अति का प्रचार लोगों को पसंद नहीं आ रहा। अब लोग इसका अर्थ समझने लगे हैं।
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बदायूं जिले के समरेर गांव के रहने वाले आशु मिश्र फ्री राशन, किसान सम्मान निधि पर भी बात करते हैं। वह कहते हैं कि हमारी फसलें सांड खा रहे हैं और आप हमें ही अनाज बांट रहे हैं। और जो पैसे सरकार दे रही है, उससे ज्यादा तो सांड खा जा रहे हैं। गन्ने की कीमत पांच साल में सिर्फ 25 रुपये क्विंटल बढ़ाकर उसे प्रचारित ज्यादा किया गया। किसानों के पास गन्ने के नए बीज की कमी है। इसे उपलब्ध ही नहीं कराया जा रहा।
शाहजहांपुर के हरदुआ गांव के अभिषेक कुमार भी कहते हैं कि इस बार गेहूं की बुवाई में डीएपी तक नहीं मिली। काम के समय रोज दुकानों के चक्कर काटते रहे। बाद में बिना खाद के गेहूं की बुवाई करनी पड़ी। आप ही बताइए, ऐसे में हम किसान सम्मान निधि लेकर क्या करेंगे? क्या इससे हमारे परिवार का पेट भर जाएगा? यह भी देखना चाहिए कि सम्मान निधि का इंतजार करने वाले लोग किसान नहीं है। उनलोगों ने खेती किसी को दे रखी है। इसलिए यह उनकी ऊपरी कमाई है।
दोनों ही पक्षों की मुरादाबाद मंडल के मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, संभल और बिजनौर की कुल 27 सीटों पर नजर है। यहां भी दूसरे फेज में वोटिंग है। पिछली बार 14 सीटें बीजेपी के पक्ष में गई थीं जबकि बसपा का पूरी तरह सफाया हुआ था। मुजफ्फरनगर दंगे की वजह से पूरे पश्चिमी यूपी में पिछली बार जाटों और मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ गई थी लेकिन इस बार बीजेपी के लिए मुश्किल यह है कि अधिकांशतः जाटों और मुसलमानों में एकता दिख रही है। किसान नेता संजीव गांधी कहते भी हैं कि किसान आंदोलन में शहीद साथियों को लोग इन चुनावों में भुला नहीं सकते।
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रामपुर के पुराना शहर के मोहम्मद फहीम भी कहते हैं कि योगी शासन के दौरान मुसलमानों पर जुल्म की कई घटनाएं हुई हैं और यह सबकी आंखों के सामने है। मंत्री रहते हुए आजम खान ने मुसलमानों के लिए काम किया इसलिए उन्हें ही नहीं, उनके पूरे परिवार को इस सरकार ने झूठे मामले बनाकर जेल में ठूंस दिया। इसे भुलाया नहीं जा सकता। बिजनौर जिले के नगीना के मुहम्मद असलम कहते हैं कि यह सरकार नहीं चाहती कि मुसलमान पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस और आईपीएस बनें और अपने हक लें। यह मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाए रखना चाहती है।
दोनों ही फेज के लोगों से बातचीत में यह तो समझ में आता है कि शहरी लोगों के बीच बीजेपी ने अपनी पैठ बनाने की ठीकठाक कोशिश की है लेकिन ग्रामीण इलाके उस जाल में नहीं फंसे हैं। अब जैसे, इंजीनियरिंग कर रहे महेंद्र कुमार चौधरी सपा-रालोद गठबंधन से खुश नहीं दिखते और अपनी जाति के सभी लोगों के बीजेपी-विरोधी होने की बात से इनकार करते हैं। चौधरी विजयपाल सिंह और चौधरी रुमाल सिंह भी कहते हैं कि किसान आंदोलन के दौरान लोगों में सरकार से गहरी नाराजगी थी। अब हम अच्छे-बुरे का आकलन कर रहे हैं।
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इन चुनावों में बसपा प्रमुख मायावती के कोर वोटर पर सबकी निगाह है। बीजेपी यह प्रचारित कर रही है कि इसका अधिकांश हिस्सा उसकी तरफ आ रहा है। लेकिन इस वर्ग के लोगों की बातचीत से लगता है कि वे अंतिम समय तक सोच-विचार कर रहे हैं कि किधर रहना, जाना उचित होगा। संभल के सरायतरीन में जूते गांठने वाले राम पाल सिंह जाटव अपने बेटा-बेटी को किसी तरह से पढ़ा रहे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रयागराज में सफाईकर्मियों के पैर धोने से बेहद प्रभावित हैं लेकिन दलितों के घर योगी के खाना खाने को दिखावा मानते हैं। बहन जी हमारी हैं, यह सबको मालूम है लेकिन इस बार हम देख रहे हैं। अमरोहा के दिव्यांग हरपाल सिंह भी जाटव हैं। वह कहते हैं कि राजनीति में उचित भागीदारी भी होनी चाहिए जैसी बहन मायावती ने समाज को दी थी।
यह स्थिति ही बीजेपी की चिंता का सबब है।
(आस मोहम्मद कैफ/ पंकज मिश्र/ उमेश लव के इनपुट के साथ)
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