भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गुरुवार को नई मॉनिटरी पॉलिसी का ऐलान किया है, जिसमें रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। नई पॉलिसी में भी रेपो रेट को चार प्रतिशत पर रखा गया है और अन्य प्रमुख दरों में भी कोई बदलाव नहीं हुआ है। लेकिन इसके बावजूद आम लोगों के ऊपर बोझ बढ़ने जा रहा है।
दरअसल कोरोना वायरस संकट से बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में काम-धाम और कारोबार ठप होने पर सरकार ने जो मार्च में सभी टर्म लोन्स की ईएमआई पर मॉरेटोरियम की घोषणा करते हुए किस्त चुकाने पर छूट दी थी, वह अगस्त में खत्म हो जाएगी। अब सितंबर से ग्राहकों को हर लोन पर बिना किसी छूट के किस्त चुकाना होगा। ऐसा नहीं करने पर क्रेडिट स्कोर पर असर पड़ सकता है।
गुरुवार को मॉनिटरी पॉलिसी के ऐलान में पहले दो बार बढ़ाई गई मॉरेटोरियम को फिर से बढ़ाने की कोई घोषणा नहीं की गई है। यानी अगस्त में मॉरेटोरियम अवधि खत्म हो जाएगी। इसका सीधा मतलब है कि सितंबर से लोगों को अपने होम लोन, गाड़ी के लोन और पर्सनल लोन पर लॉकडाउन से पहले की तरह किस्तें चुकानी होंगी। और अगर ऐसा नहीं करते हैं तो क्रेडिट स्कोर प्रभावित होगा।
हालांकि, आरबीआई ने बैंकों को लोन रिस्ट्रक्चरिंग की अनुमति दी है। बैंक भी लोन रिस्ट्रक्चर करने की अनुमति चाह रहे थे। अब, बैंक अपने कर्जदारों के लोन वापसी का शेड्यूल फिर से तय कर सकते हैं। इसके तहत बैंक लोन चुकाने का पीरियड बढ़ा सकते हैं या पेमेंट हॉलीडे भी दे सकते हैं। हालांकि इसके लिए आपको बैंक या वित्तीय संस्थान से संपर्क करना होगा।, क्योंकि लोन रिस्ट्रक्चरिंग का आधार बैंकों के पास ही होगा।
हालांकि इसमें भी एक पेंच है। आरबीआई ने बैंकों को लोन रिस्ट्रक्चर करने की अनुमति तो दे दी है, लेकिन इसका लाभ किसे और कैसे मिलेगा, यह नहीं बताया। फिलहाल आरबीआई ने सिर्फ वैसे कर्जदारों की लोन रिस्ट्रक्चरिंग की अनुमति दी है, जिनका 1 मार्च, 2020 तक 30 दिन से ज्यादा का डिफॉल्ट नहीं था। इससे पुराने डिफॉल्टर इस स्कीम में एडजस्ट नहीं हो सकेंगे।
लोन रिस्ट्रक्चरिंग को भी पूरी तरह समझना होगा। ईएमआई मॉरेटोरियम के तहत किस्त चुकाने पर छूट थी। इस दौरान जो भी ब्याज बनता, वह बैंक आपके मूल धन में जोड़ देते। यानी मॉरेटोरियम अवधि के ब्याज पर भी ब्याज लगता। लेकिन लोन का रिस्ट्रक्चरिंग इससे अलग है। यहां बैंक तय कर सकेंगे कि ईएमआई को घटाना है, लोन का पीरियड बढ़ाना है, या सिर्फ ब्याज वसूलना है, या ब्याज फिर दर एडजस्ट करना है।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस संकट की वजह से अर्थव्यवस्था में गहरी मंदी छाई है। ऐसे में लोगों के काम-धाम बंद हैं और तमाम कारोबार लंबे समय तक ठप रहे। ऐसे में बैंकों ने जो लोगों को लोन दिए, उनकी रिकवरी करना मुश्किल हो गया है। बैंकों के कई कर्जदार चाहकर भी समय पर लोन की किस्तों नहीं चुका पा रहे थे। ऐसे में उनके साथ-साथ बैंकों को भी राहत चाहिए थी, जो लोन रिस्ट्रक्चरिंग से मिलने की उम्मीद है।
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