अर्थतंत्र

थिएटर डायरेक्टर और एक्टिविस्ट प्रसन्ना 2 अक्टूबर से अर्थव्यवस्था के लिए करेंगे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल

थिएटर डायरेक्टर और एक्टिविस्ट प्रसन्ना 2 अक्टूबर से बेंगलुरु में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने जा रहे हैं। प्रसन्ना अर्थव्यवस्था के लिए यह भूख हड़ताल करने वाले हैं। प्रसन्ना के मुताबिक वो पवित्र अर्थव्यवस्था के लिए भूख हड़ताल करने जा रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

थिएटर डायरेक्टर और एक्टिविस्ट प्रसन्ना 2 अक्टूबर से बेंगलुरु में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने जा रहे हैं। प्रसन्ना अर्थव्यवस्था के लिए यह भूख हड़ताल करने वाले हैं। प्रसन्ना के मुताबिक वो ‘पवित्र अर्थव्यवस्था’ के लिए भूख हड़ताल करने जा रहे हैं। उनके मुताबिक ‘पवित्र अर्थव्यवस्था’ उसे कहते हैं, जिसमें सारा काम श्रमिकों के जरिए किया जाता है और इसमें उत्पाद को हाथों के इस्तेमाल से बनाया जाता है।

Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

प्रसन्ना का यह सत्याग्रह 5 अक्टूबर तक एक रिले सत्याग्रह होगा जहां कई लोग एक या दो दिन के लिए शामिल होंगे, लेकिन इसके बाद प्रसन्ना अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे।

प्रसन्ना कहते हैं, “दो साल पहले, जब हम सत्याग्रह पर बैठे थे, तो हाथ से बने उत्पादों पर जीएसटी को वापस लेने की मांग की गई थी। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वादा किया था कि सरकार हस्तनिर्मित उत्पादों पर करों को हटा देगी। लेकिन, आज तक ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने जीएसटी काम किया लेकिन खत्म नहीं किया। अब स्थिति बेहद खराब हो गई है। देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है और नौकरियों पर गंभीर संकट है। इसका असर अब दूसरे सेक्टरों पर भी पड़ा है। छोटे निर्माता, छोटे व्यापारी, गार्नेट क्षेत्र और सेवा क्षेत्र सभी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।”

Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

प्रसन्ना आगे कहते हैं, “हम चाहते हैं कि सरकार पवित्र अर्थव्यवस्था से उत्पादों पर कर हटाए। सभी लाभ जो सरकार दे सकती है, उसे इस श्रम प्रधान क्षेत्र को दिया जाना चाहिए न कि बड़े क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को।”

प्रसन्ना पवित्र अर्थव्यवस्था के बारे में बताते हुए आगे कहते हैं, “जो श्रम प्रधान है और प्रकृति के पास है वो पवित्र अर्थव्यवस्था है।“ प्रसन्ना कहते हैं, "हमने एक विभाजन रेखा के बजाय एक पैमाने बनाया है, जहां पैमाने का एक छोर स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए पूरा हाथ से तैयार किया गया सामान है और दूसरी तरफ मशीनों से बनाया हुआ।”

Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

इनमें से कई प्रक्रियाएं आज अर्थव्यवस्था और प्रकृति को हानि पहुंचा रही हैं। प्रसन्ना कहते हैं, “हम नौकरी जाने को जलवायु संकट से जोड़ रहे हैं। जब तक हम आर्थिक व्यवस्था को नहीं बदलते, हम संकटों को कम नहीं कर सकते। यह मानव के जीवित रहने के लिए एकमात्र रास्ता बचा है। हम आज करो या मरो की स्थिति में पहुंच गए हैं।”

Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

प्रसन्ना जोर देते हुए कहते हैं, “हमें वर्तमान संकटों से निपटने के तरीके को बदलना होगा। वर्तमान आर्थिक प्रणाली मार रही है और इसने बहुत गुस्से वाली एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली बना दी है। हमें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो प्रकृति और उद्यमशीलता के बीच संतुलन बनाए। हमें पहले हमे लोगों को सावधान करना चाहिए। हमारी मांग रोजगार देने और प्रकृति को हरा-भरा रखने वाली नौकरियों को बढ़ावा देने की है। यह लंबे समय से चली आ रही लड़ाई है और मुझे झूठ की वाहवाही में कोई दिलचस्पी नहीं है।

Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

प्रसन्ना जोर देते हुए कहते हैं, “हमें वर्तमान संकटों से निपटने के तरीके को बदलना होगा। हमें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो प्रकृति और उद्यमशीलता के बीच संतुलन बनाए। हमें पहले हमे लोगों को सावधान करना चाहिए। हमारी मांग रोजगार देने और प्रकृति को हरा-भरा रखने वाली नौकरियों को बढ़ावा देने की है। यह लंबे समय से चली आ रही लड़ाई है और मुझे झूठ की वाहवाही में कोई दिलचस्पी नहीं है।”

Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

इस सत्याग्रह से ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने के लिए बेंगलुरू में कई कार्यक्रम आयोजित किेए गए। आज (मंगलवार) इसके बारे में बोलने के लिए एक सार्वजनिक कार्यशाला का आयोजन किया गया। वहीं 3 अक्टूबर को वंदना शिवा, कर्नाटक औद्योगिक और अन्य प्रतिष्ठानों के कर्मचारी संघ के लोग इस उद्योग के श्रमिकों के साथ एक बैठक भी करेंगे।

Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

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Published: 01 Oct 2019, 8:30 PM IST

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