आरबीआई के सरप्लस कैश (अधिशेष पूंजी) को लेकर मोदी सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच जारी तनातनी को सुलझाने के लिए गठित जालान समिति ने अपने रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है। खबरों के अनुसार जालान समिति ने आरबीआई के सरप्लस कैश के मोदी सरकार को हस्तांतरण का रास्ता साफ कर दिया है। खबर है कि सरकार को केंद्रीय बैंक के सरप्लस कैश (अधिशेष पूंजी) का हस्तांतरण तीन से पांच साल में किया जा सकता है।
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सरप्लस कैश के लिए मोदी सरकार द्वारा आरबीआई पर लगातार दबाव बनाए जाने से खड़े हुए विवाद की खबरों के बाद दिसंबर 2018 में इस मसले को सुलझाने के लिए पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अगुवाई में एक छह सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। आरबीआई की ओर से बताया गया था कि आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव राकेश मोहन इस इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क समिति के उपाध्यक्ष होंगे। जबकि आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग, डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन, निदेशक भारत दोषी और सुधीर मांकड़ समिति के सदस्य होंगे।
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समिति को पहली बैठक के 90 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी। इसी रिपोर्ट से ये तय होना था कि आरबीआई के लाभांश में से कितना सरकार को दिया जा सकता है और कितनी रकम आरबीआई के पास सुरक्षित रहेगी। खबरों के अनुसार समिति ने अपनी रिपोर्ट में आरबीआई को अपना सरप्लस कैश तीन से पांच साल में सरकार को देने की सिफारिश की है।
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बीते दिनों सरप्लस राशि को लेकर मोदी सरकार द्वारा लगातार आरबीआई पर दबाव बनाए जाने की खबरें आती रही हैं। इस मुद्दे को लेकर आरबीआई के कई वरिष्ठ अधिकारियों की नाराजगी की खबरें भी सामने आ चुकी हैं। आरबीआई गवर्नर रहे रघुराम राजन और उनके बाद उर्जित पटेल और अभी हाल ही में डिप्टी गवर्नर विमल आचार्या के कार्यकाल खत्म होने से पहले पद से इस्तीफा देने के पीछे के कारणों में ये भी एक वजह बताई जाती रही है।
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गौरतलब है कि लंबे विवाद और दबाव के बाद इसी साल फरवरी में आरबीआई ने अंतरिम लाभांश के तौर पर केंद्र सरकार को 28,000 करोड़ रुपये दिया था। इससे पहले भी इसी वित्त वर्ष में आरबीआई ने सरकार को 40,000 करोड़ रुपये का अंतरिम लाभांश हस्तांतरित किया था। अंतरिम लाभांश में से इस रकम के बाद चालू वित्त वर्ष में सरकार को आरबीआई से कुल 68,000 करोड़ रुपये मिल चुके हैं।
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