प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम के शोध-पत्र को खारिज कर दिया। शोध-पत्र में दावा किया गया है कि 2011-12 के बाद की जीडीपी विकास दर के आंकड़ों को ज्यादा करके आंका गया है। बिबेक देबराय की अध्यक्षता में पीएमईएसी ने सुब्रह्मण्यम के शोध-पत्र में कई खामियां बताईं।
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पीएमईएसी ने सुब्रमण्यन पर यह आरोप भी लगाया कि उन्होंने निजी एजेंसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों पर आंख मूंदकर भरोसा किया और सरकारी संस्थान केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों पर विश्वास नहीं किया। सीएमआईई एक प्राइवेट एजेंसी है और वह प्राथमिक स्रोतों की सूचना नहीं है क्योंकि इस विभिन्न स्रोतों से आंकड़ों का संग्रह करता है।
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पीएमईएसी ने कहा, “उन्होंने न तो सहसंबंध की शक्ति का जिक्र किया है और न ही यह स्पष्ट किया है कि क्या अन्य संकेतक भी है जो इन दोनों अवधियों के जीडीपी से मजबूती के साथ सहसंबद्ध है।”
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सुब्रमण्यन ने शोध पत्र में कहा था कि जीडीपी आकलन के तरीकों में बदलाव के कारण साल 2011-12 और 2016-17 के बीच भारत की आर्थिक वृद्धि दर करीब 2.5 फीसदी अधिक दिखने लगी।
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गौरतलब है कि सुब्रह्मण्यम ने अपने शोध-पत्र ‘इंडियाज जीडीपी मिस-एस्टिमेशन : लाइकलीहुड, मैग्निट्यूड्स, मेकेनिज्म्स एंड इंप्लीकेशंस’ में दावा किया है कि 2011-12 से लेकर 2016-17 के बीच भारत की जीडीपी विकास दर का आंकलन सालाना 2.5 फीसदी अधिक किया गया है।
सुब्रमण्यन का हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिश पेपर तब सामने आया, जब आर्थिक विकास के आधिकारिक आंकड़ों पर सवाल उठ रहे हैं। सुब्रमण्यन अक्टूबर, 2014 से लगभग चार साल तक वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे।
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