अर्थतंत्र

पहले सरकार ने कहा था, आरबीआई से नहीं चाहिए एक भी पैसा, अब घाटा कम करने के लिए फैलाया हाथ

केंद्र की मोदी सरकार अपना राजकोषीय घाटा कम करने के लिए आरबीआई पर दबाव डाल रही है। सरकार ने आरबीआई के अंतरिम लाभांश में से 23,100 करोड़ रुपये देने की मांग की है। इससे पहले भी बीते साल आरबीआई ने अपने अंतरिम लाभांश में से सरकार को 10,000 करोड़ रुपये दिए थे।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

नोटबंदी और जीएसटी के बाद आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह से जूझ रही मोदी सरकार अपना घाटा कम करने के लिए आरबीआई की जमा-पूंजी का इस्तेमाल करना चाहती है। मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक से उसके आकस्मिक आरक्षित फंड में से 10,000 करोड़ रुपए देने की मांग की है। इससे पहले भी बीते साल 27 मार्च को आरबीआई ने अपने अंतरिम लाभांश में से सरकार को 10,000 करोड़ रुपये दिए थे। बता दें कि इससे पहले पिछले ही महीने वित्तीय मामलों के सचिव सुभाष गर्ग ने सार्वजनित रूप से आरबीआई से आकस्मिक आरक्षित फंड में से 13,100 करोड़ रुपए देने की मांग की थी।

बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक से जो 23,100 करोड़ रुपए की मांग की है, उनमें सुभाष गर्ग द्वारा मांगी गई 13,100 करोड़ रुपए की राशि भी शामिल है। सरकार ने केंद्रीय बैंक से यह राशि 31 मार्च से पहले देने को कहा है। रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को कुल अर्थव्यवस्था का 3.3 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा था, यानि 6.24 ट्रिलियन रुपये तक सीमित करने का तय किया था, लेकिन अप्रैल-नवंबर तक ही राजकोषीय घाटा बढ़कर 7.17 ट्रिलियन रुपये हो गया है। ऐसे में सरकार को अपने लक्ष्य को पाने के लिए करीब 1 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है। ।

स्पष्ट है कि आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह विफल हो चुकी मोदी सरकार की नजर अब आरबीआई की जमा पूंजी पर है। हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस बात के संकेत स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार को आरबीआई की मदद की जरुरत पड़ेगी। वहीं इस मुद्दे पर आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर शक्तिकांत दास ने गोलमोल जवाब देते हुए कहा है कि जब आरबीआई इस पर कोई फैसला कले लेगा, तब उसकी जानकारी दे दी जाएगी।

बता दें कि यह लगातार दूसरा साल होगा, जब आरबीआई अगस्त में दिए सामान्य भुगतान के अलावा मोदी सरकार को अंतरिम लाभांश में से भी भुगतान देगा। इससे पहले पिछले साल यह 10,000 करोड़ था।

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