मोदी सरकार में भारतीय अर्थव्यवस्था को झटके पर झटके लग रहे हैं। जीडीपी में भारी गिरावट और मंदी की मार के बाद अर्थ जगत से एक और झटका देने वाली खबर आई है। देश के ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में पिछले चार दशकों की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। इसके बाद ऐसा कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार आने में काफी वक्त लग सकता है और यह सुधार तभी संभव है जब उन पर अच्छे तरीके से काम किया जाए।
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़े से स्पष्ट होता है कि भारतवासी के महीने के औसतन खर्च में 3.7 प्रतिशत गिरावट आई है। उन्होंने कहा की ग्रामीण इलाकों में हालात और भी खराब हैं। पवन खेड़ा ने कहा कि 2011-12 में जो व्यक्ति महीने का 1501 रुपये औसतन खर्च करता था वो 2017-18 आते आते 1446 रुपये ही खर्च कर रहा है।
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
कांग्रेस ने नोटबंदी और जीएसटी को लेकर भी मोदी सरकार पर हमला बोला। पवन खेड़ा ने कहा कि नोटबंदी की वजह से लोगों का रोजगार चला गया और ये आंकड़े उसी दौर के हैं। जिससे पता चलता है कि मोदी सरकार के नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले गलत थे।
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
बता दें कि एनएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गांवों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में 8.8 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। वित्त वर्ष 2017-18 में उपभोक्ता खर्च में 3.7 फीसदी की कमी दर्ज की गई। यह इसलिए बड़ी बात है, क्योंकि बीते चार दशक में पहली बार यह कमी देखने को मिली है। सर्वेक्षण के मुताबिक, उपभोगव्यय में कमी से संकेत मिलते हैं कि देश में गरीबी से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ रही है।
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
एनएसओ के व्यय सर्वेक्षण में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि ग्रामीण इलाकों में मांग में कमी कुछ ज्यादा है। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया, ‘2017-18 में प्रति व्यक्ति खर्च घटकर 1,446 रुपये प्रति महीना रह गया, जबकि 2011-12 में यह 1,501 रुपये था।’
सर्वेक्षण के मुताबिक, ‘प्रति महीना खपत व्यय (एमपीसीई) के ये आंकड़े रियल टर्म में हैं, जिसका मतलब है कि इन्हें 2009-10 को आधार वर्ष मानते हुए मुद्रास्फीति के साथ समायोजित किया गया है। वर्ष 2011-12 में दो साल की अवधि के दौरान वास्तविक एमपीसीई 13 फीसदी बढ़ी थी।’
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
इसकी खास बात यह है कि यह गांवों में उपभोक्ता व्यय में भारी गिरावट का उल्लेख करता है, जिसमें वर्ष 2017-18 में 8.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि शहरों में छह साल के दौरान 2 फीसदी की बढ़ोतरी रही।
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
इससे पहले एनएसओ ने 1972-73 में उपभोग व्यय में भारी कमी के आंकड़े जारी किए थे। उस समय खपत में गिरावट के लिए वैश्विक तेल संकट को जिम्मेदार ठहराया गया था। रिपोर्ट में कहा गया, ‘एनएसओ रिपोर्ट इस साल जून में जारी होनी थी, जिसे नकारात्मक निष्कर्षों के चलते रोक दिया गया था। यह सर्वेक्षण जुलाई, 2017 और जून, 2018 के बीच कराया गया था। यह वही समय है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया था।’
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
आर्थिक मामलों के एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘कम से कम बीते पांच दशक के दौरान ऐसा कभी नहीं हुआ, जब एक अवधि के दरान रियल टर्म में उपभोक्ता व्यय में कमी दर्ज की गई हो। ये डाटा संकेत करते हैं कि देश में गरीबी के स्तर में खासा इजाफा हुआ है। इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि गरीबी में कम से कम 10 फीसदी अंकों का इजाफा हुआ है।’
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
विशेषज्ञों के मुताबिक, एक चिंता की बड़ी बात यह भी है कि एनएसओ के सर्वेक्षण में पहली बार एक दशक में खाद्य पदार्थों की खपत में गिरावट दर्ज की गई है, जो देश में कुपोषण बढ़ने की ओर भी इशारा करती है।
सर्वे के मुताबिक, 2017-18 के दौरान गांवों में खाने पर प्रति व्यक्ति खर्च महज 580 रुपए प्रति महीना रहा, जो 2011-12 (रियल टर्म में) के 643 रुपे की तुलना में 10 फीसदी कम था। वहीं शहरी इलाकों में 2017-18 में प्रति व्यक्ति खर्च 946 रुपए महीना रहा। इस प्रकार शहरी इलाकों में वृद्धि स्थिर बनी हुई है।
Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST
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Published: 15 Nov 2019, 6:00 PM IST