सरकारों की मैक्रोइकॉनोमिक नीतियां आमतौर पर विकास को अधिकतम करने और बेरोजगारी को कम करने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं, लेकिन एक प्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री के अनुसार, मोदी सरकार की नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर मंदी और चार दशक की उच्च बेरोजगारी ला दी है।
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ऑक्सफोर्ड से शिक्षित अर्थशास्त्री पुलापरे बालाकृष्णन ने एक हालिया शोधपत्र में कहा कि साल 2014 से ही मैक्रोइकॉनमिक नीतियां अर्थव्यवस्था को सिकुड़ाने वाली रही है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में मांग कम हो गई है।
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बालाकृष्णन ने इकॉनमिक और पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) में प्रकाशित 'अनमूव्ड बाई स्टैबिलिटी' शीर्षक शोध पत्र में लिखा, "मैक्रोइकॉनमिक नीतियां साल 2014 से ही अर्थव्यवस्था को कमजोर करनेवाली रही है। सरकार ने अपनी दोनों ही भुजाओं- एक मौद्रिक नीति और दूसरी राजकोषीय नीति का प्रयोग अर्थव्यवस्था में मांग को घटाने के लिए किया। इससे निवेश भी प्रभावित हुआ।" उन्होंने कहा कि मोदी सरकार अपनी मैक्रोइकॉनमिक नीतियों के असर का अंदाजा नहीं लगा पाई।
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उन्होंने कहा, "इसके साथ ही इसमें सरकार की तरफ से चूक भी शामिल है। सरकार ने अवसंरचना और नौकरियां दोनों को बढ़ाने का वादा किया था, जिसे सरकार द्वारा व्यय बढ़ाने से ही पूरा होता। इससे निजी निवेश में बढ़ोतरी होती। लेकिन व्यवस्थित रूप से यह प्रयास नहीं किया गया।"
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सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए बालाकृष्णन ने लिखा, "यह विश्वास करने के कई कारण मौजूद है कि 2014 से ही देश में पैसों की तंगी हो गई।" मोदी सरकार के विवादास्पद नोटबंदी के कदम के बारे में बालाकृष्णन ने कहा कि नोटबंदी के बाद निजी निवेश में गिरावट नहीं दिख रही थी, लेकिन "इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि इसके कारण निवेश की दर में जितनी तेजी आ सकती थी, उतनी नहीं आई।"
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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