दुनिया भर के देशों की रेटिंग करने वाली एजेंसियों का कहना है कि नोटबंदी और जीएसटी से भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा असर अभी जारी रहेगा। इन एजेंसियों का यह भी कहना है कि इन दो कदमों का असर कब तक रहेगा, यह अभी निश्चित नहीं है।
Published: 03 Nov 2017, 2:16 PM IST
हालांकि कुछ एजेंसिया मानती हैं कि यह असर अल्पकालिक है। लेकिन घरेलू और विदेशी एजेंसियां यह मानती हैं कि मौजूदा मंदी का कारण नोटबंदी और जीएसटी ही है। रेटिंग एजेंसियां वह संस्थाएं हैं जिनकी दी गई रैंकिंग और रेटिंग के आधार पर दूसरे देशों के निवेशक किसी देश में पैसा लगाते हैं या वहां कारोबार करते हैं।
Published: 03 Nov 2017, 2:16 PM IST
फिच रेटिंग के डायरेक्टर (सॉवरिन एंड सप्रैशनल्स ग्रुप) थॉमस रूकमाकेर का कहना है, “नोटबंदी का मकसद काले धन पर काबू पाना था। लेकिन नकदी की कमी के कारण इससे जीडीपी नीचे गिर गई।” उनका कहना है, “तथ्य यह है कि 99 फीसदी बैंक नोट आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) के पास वापस आ गए, जिससे यह पता चलता है कि काले धन को मिटाने में नोटबंदी प्रभावी साबित नहीं हुई है और इससे असंगठित क्षेत्र का कारोबार प्रभावित हुआ।”
वहीं केयर रेटिंग्स की वरिष्ठ अर्थशास्त्री कविता चाको ने बताया कि, "नोटबंदी एक प्रमुख संरचनात्मक बदलाव है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था गुजरी है। इसके कारण मांग और आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा और समूची अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।" चाको ने कहा कि वित्त वर्ष 2016-17 के जीडीपी के तिमाही आंकड़ों (अक्टूबर-दिसंबर) में तेज गिरावट दर्ज की गई।
चाको का कहना है कि यह महत्वपूर्ण है कि, "वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर साल-दर-साल आधार पर 7 फीसदी से घटकर 6.1 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही में इसमें और गिरावट दर्ज की गई और यह 5.7 फीसदी पर आ गई, जो पिछले पांच सालों की सबसे बड़ी गिरावट है।"
Published: 03 Nov 2017, 2:16 PM IST
लेकिन चाको मानती है कि, "जीएसटी को लागू करने से असंगठित व्यापार को संगठित क्षेत्र से जोड़ने में मदद मिलेगी, क्योंकि यह छोटे उद्योगों को भी कर के दायरे में लाएगा।"
दूसरी तरफ स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) ग्लोबल रेटिंग्स के डायरेक्टर (कॉरपोरेट रेटिंग समूह) अभिषेक डांगरा का कहना है कि, "हम मानते हैं कि रियल एस्टेट और रत्न व आभूषण क्षेत्र को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में नोटबंदी का स्थायी प्रभाव नहीं है।"
लेकिन फिच के डायरेक्टर (वित्तीय संस्थान) सास्वत गुहा ने कहा कि बैंकों ने तरलता (नगदी जमा होने से) में बढ़ोतरी का पूरा फायदा नहीं उठाया। गुहा ने कहा कि, "नोटबंदी से बैंकों की नकदी बढ़ी, लेकिन कर्ज देने का कारोबार कमजोर है, इसलिए इसका बैकों को लाभ नहीं मिल रहा।"
Published: 03 Nov 2017, 2:16 PM IST
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 03 Nov 2017, 2:16 PM IST