साल 2019 की शुरुआत में लग रहा था कि इस साल आर्थिक परिदृश्य खुशगवार रहेगा। पर जुलाई आते-आते बिगड़ते आर्थिक परिदृश्य ने आर्थिक जगत में बेचैनी पैदा कर दी। पर साल के अंत तक सबसे बुरी खबर जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) को ले कर आई है जिसे लेकर केंद्र और राज्यों के बीच तकरार की स्थिति बन गई है। जीएसटी को भारतीय टैक्स इतिहास का सबसे बड़ा रिफॉर्म बताया गया था। मध्यरात्रि को संसद के संयुक्त अधिवेशन में जीएसटी लागू करने की घोषणा करते हुए जून, 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि “जीएसटी सहकारी संघवाद का एक उज्जवल उदाहरण है। यह एक टैक्स रिफॉर्म ही नहीं, आर्थिक सुधार के साथ सामाजिक सुधार का प्लेटफॉर्म है, जो समावेशी विकास में सहायक है। जीएसटी का मतलब है गुड्स एंड सिंपल टैक्स।” लेकिन ढाई साल में ही यह टैक्स सहकारी संघवाद के लिए तनाव का सबब बनता जा रहा है और कारोबारियों के लिए, खासकर छोटे कारोबारियों के लिए यह सिंपल टैक्स के बजाय नया सिरदर्द बन गया है।
अब जीएसटी क्षतिपूर्ति के भुगतान में विलंब केंद्र और राज्य सरकारों के बीच का टकराव का कारण बन गया है। केरल ने तो क्षतिपूर्ति भुगतान के विलंब के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की चेतावनी भी दे दी। गनीमत है की जीएसटी काउंसिल की 18 दिसंबर की बैठक से दो दिन पहले ही, केंद्र सरकार ने अगस्त-सितंबर अवधि की देय क्षतिपूर्ति का भुगतान दो महीने की देरी के बाद कर दिया जिससे कई गैर बीजेपी राज्य सरकारों का गुस्सा कुछ शांत हो गया, पर आने वाले समय में यह विवाद गहरा सकता है। अक्टूबर-नवंबर का 10 दिसंबर को के देय जीएसटी क्षतिपूर्ति का भुगतान कर दिया गया है, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं है।
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इसमें कोई संशय नहीं कि अगस्त से राज्यों को केंद्र सरकार से मिलने वाले जीएसटी क्षतिपूर्ति भुगतान में विलंब रहा है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद माना है कि जीएसटी संग्रह कम रहने से राज्यों को क्षतिपूर्ति भुगतान में देरी हो रही है। पर जीएसटी संग्रह कम क्यों हो रहा है, इस बारे में वित्तमंत्री ने मुंह खोलना मुनासिब नहीं समझा जो अन्य विषयों पर काफी मुखर रहती हैं। सब जानते हैं कि जीएसटी संग्रह में आई कमी की वजह आर्थिक मंदी है जिससे उपभोग वृद्धि दर में गिरावट आई है। जीएसटी ऐसा कर है जो उपभोग पर लगता है, विनिर्माण पर नहीं और जो गरीब को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, साथ ही आय वितरण को अधिक विषम करता है, जो विकास में सबसे बड़ी बाधा है।
बिस्कुट से लेकर वाहन तक की मांग वृद्धि दर में अरसे से गिरावट है और बेकाबू खाद्य महंगाई से जीएसटी संग्रह में और कमी का खतरा अभी बना रहेगा क्योंकि महंगाई से अधिसंख्य आबादी की क्रय शक्ति कम हो गई है। जीएसटी लागू करते समय आम सहमति बनी थी कि राज्य सरकारें सेल्स टैक्स/वैट, मनोरंजन कर, लग्जरी टैक्स आदि को जीएसटी में समाहित कर देंगी और इससे राजस्व संग्रह में जो कमी होगी, उसकी भरपाई केंद्र सरकार इस टैक्स के लागू होने के साल 2017 से अगले पांच साल तक यानी 2022 तक करेगी। जीएसटी (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम के प्रावधान के अनुसार 2017 के आधार वर्ष में कुल राजस्व के 14 फीसदी सालाना वार्षिक वृद्धि दर के अनुसार यह क्षतिपूर्ति राशि तय होगी। इस क्षतिपूर्ति के लिए फंड बनाया था जिसके लिए तंबाकू उत्पादों, सिगरेट, एरेटेड पेय, ऑटोमोबाइल्स और कोयले पर लगी जीएसटी दर पर उपकर (सेस) लगाया गया। इस सेस से एकत्रित कर संग्रह से क्षतिपूर्ति का भुगतान हर दो महीने में केंद्र सरकार को करना होता है लेकिन अगस्त से सरकार इस क्षतिपूर्ति के भुगतान की कानूनी बाध्यता को पूरा करने में विफल रही जिससे राज्यों विशेषकर गैरबीजेपी राज्यों का रोष खुलकर सामने आ रहा है, जो अकारण नहीं।
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देश की ख्यात निवेश सूचना और रेटिंग एजेंसी इकरा ने बताया है कि एस जीएसटी (राज्य जीएसटी) में संग्रह कम होने के कारण क्षतिपूर्ति की मात्रा बढ़ सकती है। इस एजेंसी ने नौ राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, पं. बंगाल की राजस्व स्थिति का आकलन कर बताया है कि इन राज्यों को क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए 60-70 हजार करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी, जो एक गंभीर वित्तीय संकट पैदा कर सकती है। देश के सभी 28 राज्य और 9 केंद्रशासित प्रदेशों को इस क्षतिपूर्ति के भुगतान के लिए और अधिक राशि की जरूरत हो सकती है जिससे केंद्र का हिसाब गड़बड़ा सकता है। आर्थिक मंदी को दूर करने के लिए कॉरपोरेट टैक्स में भारी राहत और अन्य प्रोत्साहन देने के कारण केंद्र सरकार के राजस्व संग्रह में 3.5 लाख करोड़ रुपये जुलाई 2019 में पेश बजट अनुमानों से कम हो सकता है। इससे राज्यों को मिलने वाले हिस्से में 2.2 लाख करोड़ रुपये की कमी आएगी।
एजेंसी ने कहा है कि क्षतिपूर्ति भुगतान समय से नहीं होने से राज्यों के लिए नकदी प्रवाह का गंभीर संकट हो सकता है। नवंबर में पंजाब के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने बताया था कि उनके राज्य की वित्तीय हालत यह है कि जेलों में सिर्फ दो दिन का राशन बचा है, कर्मचारियों को वेतन देने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम के तहत निजी अस्पतालों का करोड़ों रुपया केंद्र पर बकाया है। अब ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन ने इस स्कीम के तहत कैशलेस इलाज बंद करने की धमकी दी है। यह तथ्य चौंका सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरे का करोड़ रुपये का भुगतान एयर इंडिया को नहीं किया गया है। इसे लेकर कभी बीजेपी की जिगरी रही शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में तीखा हमला किया है।
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18 दिसंबर को हुई जीएसटी काउंसिल की 38वीं बैठक में गैरबीजेपी राज्यों ने जीएसटी व्यवस्था के तहत राजस्व क्षतिपूर्ति बकाये को लेकर शंका जताई कि केंद्र सरकार डिफॉल्ट की राह पर है, क्योंकि उसने जीएसटी के बकायों को समय पर देने की कोई गारंटी नहीं दी है जिसके लिए वह संवैधानिक रूप से बाध्य है। गौरतलब है कि जीएसटी काउंसिल में सहमति से निर्णय लेने की परंपरा इस बैठक में टूट गई है। बैठक में पंजाब और केरल के वित्त मंत्रियों ने कहा कि केंद्रीय वित्तमंत्री यह भरोसा दिलाने में विफल रही हैं कि जीएसटी मुआवजे का भुगतान समय से किया जाएगा। राजस्व की स्थिति अच्छी नहीं है, इसका भान था। लेकिन स्थिति इतनी खराब है, इसका अंदाज नहीं था।
जीएसटी काउंसिल के अपने एक अध्ययन के मुताबिक इस वित्त वर्ष 2019-20 में क्षतिपूर्ति फंड में 97 हजार करोड़ रुपये जमा होने का अनुमान है, जबकि राज्यों को कुल क्षतिपूर्ति भुगतान का अनुमान 1.6 लाख करोड़ रुपये का है। यानी इस कोष में 63 हजार करोड़ का टोटा रहेगा। इस वित्त वर्ष के चार महीनों में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में क्षतिपूर्ति फंड में आधी राशि कम हुई है। इस पेपर में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले दो सालों में क्षतिपूर्ति भुगतान और क्षतिपूर्ति फंड में जमा राशि का अंतर बढ़ सकता है। अनुमान है कि 2020-21 में क्षतिपूर्ति भुगतान के लिए 1.01 लाख करोड़ और 2021-22 में 1.06 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त राशि की आवश्यकता केंद्र सरकार को होगी। यह आकलन जीएसटी में सालाना 5 फीसदी वृद्धि के लिहाज से किया गया है। पर यह साफ नहीं कि यह पेपर हाल में काउंसिल की बैठक के दौरान राज्यों के प्रतिनिधियों को दिखाया गया है या नहीं। पर कई राज्यों के प्रतिनिधियों के वक्तव्य से लगता है कि यह पेपर उनके संज्ञान में नहीं है।
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राज्यों की वित्तीय स्थिति यदि खराब होती है, तो इससे विकास दर और नीचे जा सकती है, जो पहले ही 4.5 फीसदी हो चुकी है। इसकी वजह यह है कि राज्यों का पूंजी खर्च केंद्र से ज्यादा होता है और शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी योजनाओं में उनकी हिस्सेदारी ज्यादा होती है। औसतन राज्यों को 47.5 फीसदी राजस्व केंद्र सरकार को देना होता है। पर केंद्र की राजस्व संग्रह दर लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है। यदि केंद्र से राज्यों को मिलने वाली इस राशि में कमी आती है तो उसका असर राज्यों के खर्चों पर पड़ता है और उन्हें उधार लेकर अपने खर्च पूरे करने पड़ते हैं। अगर राज्य अधिक उधार लेंगे तो सरकारी घाटा बढ़ेगा जिससे महंगाई दर तेज होने का खतरा बढ़ जाएगा। यदि राज्यों को पूंजी व्यय कम करना पड़ता है, तो उससे विकास दर प्रभावित होती है जो नए साल के शुरुआत के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। नए साल में महंगाई, बेरोजगारी, सरकारी घाटा या विकास दर की चुनौतियां देश के सामने रहेंगी।
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