लगातार घाटे में चल रहीं सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल और एमटीएनएल के कर्मचारियों पर अब अनिवार्य रिटायरमेंट की तलवार लटक गई है। दरअसल मोदी सरकार इन सरकारी कंपनियों को उबारने के लिए आर्थिक मदद देने की बजाय बंद करने या बेचने के पक्ष में है। वित्त मंत्रालय ने इन कंपनियों में निवेश के प्रस्ताव को ठुकराते हुए दोनों को बंद करने की सलाह दी है।
केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशंस (डीओटी) ने घाटे से बदहाल बीएसएनएल और एमटीएनएल को फिर से उबारने के लिए सरकार को कंपनियों में 74,000 करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव दिया था, जिसे केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने ठुकरा दिया है। इतना ही नहीं मोदी सरकार के वित्त मंत्रावलय ने इन दोनों सरकारी कंपनियों को बंद करने की सलाह दी है। कहा जा रहा हैं कि इन कंपनियों को बंद करने की बात इसलिए की जा रही है क्योंकि अभी टेलीकॉम इंडस्ट्री में जारी आर्थिक संकट के दौर में शायद ही कोई कंपनी इन कंपनियों में निवेश करे।
खबर के अनुसार दोनों सार्वजनिक इकाई को बंद करने की स्थिति में 95,000 करोड़ रुपए का खर्च आने का अनुमान लगायया जा रहा है, जो कि इन दोनों कंपनियों के करीब 1.65 लाख कर्मचारियों को जबरन रिटटायरमेंट देने पर आकर्षक रिटायरमेंट प्लान देने और कंपनियों के कर्ज लौटाने पर आएगा। हालांकि सरकार इस स्थिति में भ कर्मचारियों की देनदारी से बचने का जुगाड़ लगा रही है।
दरअसल दोनों सरकारी कंपनियों- बीएसएनएल और एमटीएनएल में तीन प्रकार के कर्मचारी हैं। पहला प्रकार वैसे कर्मचारियों कां हैं, जो इन कंपनियों द्वारा सीधे तौर पर नियुक्त किए गए हैं। दूसरे कर्मचारी वो हैं, जो दूसरी सार्वजनिक इकाइयों या सरकारी विभागों से इन कंपनियों में आए हैं। वहीं तीसरे प्रकार में इंडियन टेलीकम्यूनिकेशंस सर्विस के अधिकारी आते हैं।
अब सरकार का मानना है कि कंपनियों को बंद करने की स्थिति में इन आईटीएस अधिकारियों को अन्य सरकारी कंपनियों में तैनात किया जा सकता है। वहीं, इसके बाद बारी आती है बीएसएनएल और एमटीएनएल द्वारा सीधे नियुक्त किए गए कर्मचारियों की। चूंकि ये जूनियर स्तर के कर्मचारी हैं और उनकी संख्या महज 10 प्रतिशत है और वेतन भी कम है, तो माना जा रहा है कि सरकार ऐसे कर्मचारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट देने का विचार कर रही है।
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