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महिंद्रा एंड महिंद्रा के डायरेक्टर पवन गोयनका ने इस बात से इनकार किया है कि कार्पोरेट टैक्स दरों में कटौती का फायदा उपभोक्ताओं को मिल सकता है। यानी महिंद्रा एंड महिंद्रा की गाड़ियों की कीमतों में कोई कमी नहीं आने वाली है। एक टीवी चैनल से बात करते हुए गोयनका का कहना है कि, “कार्पोरेट टैक्स की दरों में कटौती के ऐलान के बाद से ही चर्चा है कि अब ऑटो कंपनियां अपनी गाड़ियों की कीमतें घटाने की स्थिति में है या ऐसा करना चाहती हैं, यह एक गलत धारणा है।”
उन्होंने कहा कि, “सरकार ने जो भी फैसला लिया है वह तुरत-फुरत कोई राहत देने वाला नहीं है, बल्कि इससे कार्पोरेट घरानों के हाथ में कुछ पैसा बचेगा जिसे वह आने वाले दिनों में निवेश कर सकते हैं और इससे पहिया चलता रहेगा। इससे उद्योगों को क्षमता बढ़ाने का मौका मिलेगा, जिससे रोजगार पैदा होंगे, कोई तुरत समाधान मौजूदा हालात से निपटने का इसे नहीं माना जा सकता।” गोयनका ने बताया कि, “टैक्स कटौती से जितना भी पैसा बचता है उसे पूरा का पूरा वाहनों की कीमत घटाने पर खर्च कर दें तो भी गाड़ियों की कीमत में आधे फीसदी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। यानी कोई कार अगर 8 लाख रुपए की है तो उसकी कीमत में महज 3000 रुपए की कमी आएगी।”
उन्होंने कहा कि, “कार्पोरेट टैक्स कटौती से मांग नहीं बढ़ने वाली, वैसे भी महिंद्रा समेत तमाम ऑटो कंपियां पहले ही त्योहारों को ध्यान में रखते हुए तीन से 7 फीसदी तक का प्रोत्साहन दे रही हैं। ऐसे में किसी और कटौती की कोई गुंजाइश नहीं बचती।”
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गोयनका की इस साफगोई से स्पष्ट है कि टैक्स कटौती का फायदा उपभोक्ताओं को नहीं मिलने वाला और इससे होने वाली सारी बचत को उद्योग अपने पास ही रखने वाले हैं।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकि के चेयरमैन आर सी भार्गव का भी कहना है कि टैक्स कटौती बेहद मामूली है इससे मारुति की कारों की कीमत में कोई कमी नहीं होने वाली।
बजाज ऑटो के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव बजाज भी भार्गव और गोयनका की बात का समर्थन करते हैं कि आने वाले दिनों में किसी गाड़ी का दाम कम होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा, “वित्त मंत्री ने हमें सिर्फ वह पैसा लौटाया है जो हम पहले ही त्योहारी पेशकश और प्रचार पर खर्च कर चुके हैं। और यह भी बहुत ज्यादा नहीं है।”
तो फिर टैक्स कटौती से होने वाली बचत को उद्योग कहां खर्च करेंगे? क्या इस पैसे को नए प्लांट लगाने या निवेश बढ़ाने में खर्च किया जाएगा? इसके जवाब में न तो भार्गव और न ही गोयनका कोई वादा करते हैं। गौरतलब है कि ऑटो उद्योग पहले ही अपने प्लांट्स में हर महीने कुछेक दिनों के लिए काम बंद कर रहा है क्योंकि बाजार में मांग है ही नहीं। लेकिन राजीव बजाज संकेत देते हैं कि उनकी कंपनी टैक्स कटौती से होने वाली बचत को इलेक्ट्रिक वाहन बनाने के लिए नई तकनीक पर खर्च कर सकती है।
तो एक बात तो साफ है कि ऑटो इंडस्ट्री इस बचत का फायदा न तो कंज्यूमर को देगी और न ही हाल फिलहाल नए निवेश करने में खर्च करेगी। यानी इस बचत को इंडस्ट्री दबाकर रखेगी और किसी और वक्त इस्तेमाल करेगी।
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टाटा स्टील ने इस टैक्स कटौती पर जो प्रतिक्रिया दी है उससे संकेत मिलता है कि धातु उद्योग इस बचत का इस्तेमाल अपनी खाते सुधारने और बैलेंस शीट को काबू में करने में इस्तेमाल करने वाला है। टाटा स्टील के ग्लोबल सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर टी वी नरेंद्रन का कहना है कि उनकी कंपनी इस पैसे को अपनी बैलेंस शीट बेहतर करने में इस्तेमाल करेगी।
ध्यान रहे कि भले ही देश की सभी बड़ी धातु कंपनियां फायदे में दिखती हों, लेकिन उनकी बैलेंस शीट में भारी भरकम कर्ज भी शामिल होता है। ऐसे में ये कंपनियां इस बचत को वहीं इस्तेमाल करने वाली हैं। वैसे भी मेटल प्राइस इन दिनों पहले ही कमजोर हैं और टैक्स से बचा पैसा कीमत कम करने पर लगाए जाने की कोई संभावना नहीं दिखती।
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उधर फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स यानी एफएमसीजी क्षेत्र की 4 बड़ी कंपनियां टैक्स कटौती से बचे पैसे को विज्ञापन पर खर्च करने की तैयारी में हैं ताकि बिक्री बढ़ सके। ध्यान रहे कि हाल के दिनों में एफएमसीजी कंपनियों ने विज्ञापनों पर खर्च में कटौती की है। लेकिन किसी भी कंपनी ने इस बचत का फायदा कंज्यूमर देने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। एक बात और, ज्यादातर एफएमसीजी कंपनियां कर्जमुक्त हैं, ऐसे में वे इस बचत को अपने शेयर होल्डर में डिविडेंड के तौर पर भी बांट सकती हैं।
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एल एंड टी के सीईओ और एमडी एस एन सुब्रह्मण्यन ने एक टीवी चैनल से बातचीत में इस टैक्स कटौती को एक बड़ा टैक्स सुधार करार दिया। उन्होंने कहा कि बीते तीन-चार साल से निजी क्षेत्र का निवेश काफी कम हुआ था, ऐसे में इससे उसे प्रोत्साहन मिलेगा।
इसके अलावा सेबी ने शेयर बाय बैक के नियमों में संशोधन किया है, ऐसे में एल एंड टी जैसी कंपनियां शेयर बाय बैक में इसका इस्तेमाल कर सकती हैं। सुब्रह्मण्यन कहते हैं कि, “बाय बैक हमेशा एक अच्छा विकल्प होता है क्योंकि हम हमेशा अपने निवेशक और उसके फायदे का ध्यान रखते हैं। हमने पहले इसकी कोशिश की थी, लेकिन किसी कारण ऐसा नहीं कर पाए।“
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कार्पोरेट टैक्स कटौती पर औद्योगिक जगत की प्रतिक्रिया के बाद साफ लगता है कि यह कटौती से न तो बाजार में मांग बढ़ने वाली है और न ही कंपनियां अपना उत्पादन बढ़ाकर सप्लाई बढ़ाने वाली हैं। वैसे इस समय सप्लाई का कोई संकट तो है भी नहीं। ऐसे में मेक इन इंडिया के लिए अगर विदेश कंपनियों को आकर्षित करने की बात है तो सिर्फ नई कंपनियों को ही टैक्स में राहत दी जा सकती थी। इससे यही आभास होता है कि यह टैक्स कटौती सिर्फ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए है ताकि विदेशी निवेशक इन कंपनियों से अपना निवेश वापस न ले लें।
(वी वेंकटेश्वर राव फ्रीलांस लेखक और रिटायर्ड फाइनेंस प्रोफेशनल हैं।)
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