एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में कौशिक बसु ने कहा कि देश की तरक्की की रफ्तार तीन साल के निचले स्तर पर पहुंचना चिंता पैदा करता है। भारत की विकास दर अप्रैल-जून तिमाही में 5.7 फीसदी पर पहुंच गयी। इसका कारण नोटबंदी के बाद मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में आया धीमापन माना जा रहा है।
Published: 01 Sep 2017, 5:45 PM IST
बसु ने कहा कि "गिरावट का रुख बेहद चिंताजनक है। मुझे आभास था कि ये 6 फीसदी के नीचे जाएगी, क्योंकि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था एक बहुत बड़ा निगेटिव झटका दिया था। लेकिन 5.7 फीसदी की दर मेरी आशंकाओं से भी नीचे है।"
बसु ने कहा कि 2003 से 2001 के बीच भारत में विकास दर औसतन 8 फीसदी सालाना रही। 2008 के वैश्विक मंदी के साल में भी कुछ समय के लिए ही ये दर 6.8 फीसदी पर पहुंची थी। लेकिन, “तेल की कीमतों में गिरावट और चीन की सुस्ती के बाद हमारे लिए खाली हुयी जगह से हमारी रफ्तार 8 फीसदी के आसपास होनी चाहिए थी। लेकिन 5.7 फीसदी की दर का अर्थ है कि 2.3 फीसदी की रफ्तार नोटबंदी के कारण कम हुयी है। नोटबंदी की यह बहुत बड़ी कीमत है।"
उन्होंने कहा कि नोटबंदी की गलती और निर्यात क्षेत्र का प्रदर्शन काफी निराशाजनक है। इन गलतियों को तुरंत दुरुस्त करने की जरूरत है।
Published: 01 Sep 2017, 5:45 PM IST
बसु ने कहा कि , “सबसे परेशान करने वाली आरबीआई की सालाना रिपोर्ट है जिससे पता चलता है कि 99 फीसदी अमान्य नोट वापस आ गए। इससे आभास होता है कि धनी लोगों ने अपने पैसे को बदलने का काम बखूबी अंजाम दिया।” बसु के मुताबिक छोटे व्यापारियों, अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र और गरीबों को नोटबंदी से सबसे ज्यादा तकलीफ हुयी।
बसु का मानना है कि अगले जो तिमाही में भी विकास दर में कोई खास सुधार होने की संभावना नजर नहीं आती और अक्टूबर-दिसंबर में तो सुस्ती ही देखने को मिल सकती है, क्योंकि आम लोगों की खरीदने की क्षमता का असर किसानों की आमदनी पर भी पड़ा था।
बसु ने लेनदेन के तरीके को डिजिटल करने की कोशिशों को भी सही नहीं माना है। उनका कहना है: “यहां तक कि बड़े और धनी देश भी इस दिशा में अभी पूरी तरह नहीं बढ़ रहे हैं। वहीं भारत जैसे देश में जहां अभी आधी आबादी के पास बैंक खाता तक नहीं है, लेनदेन में डिजिटल तरीका अपना समझ से परे है। ये एक गरीब विरोधी नीति है, क्योंकि इससे गरीबों को सबसे बड़ा नुकसान होगा।”
बसु के मुताबिक विकास दर में सुस्ती और लोगों का जीवन बेहतर करने के लिए सरकार को सिस्टम में नकद पैसे की लिक्विडिटी यानी उसका चलन बढ़ाना होगा, क्योंकि नोटबंदी के चलते लोगों ने खरीदारी काफी कम कर दी है। देश में तेज़ी से बढ़ी मॉब लिंचिंग आदि की घटनाओ के संदर्भ में कौशिक बसु ने चेतावनी दी कि भारत के कई हिस्सों में लोगों के सामाजिक व्यवहार में आ रहे बदलावों को नहीं रोका गया तो ये देश के सामाजिक ताने-बाने को तो छिन्न-भिन्न करेगा ही, अर्थव्यवस्था को भी काफी नुकसान पहुंचाएगा।
Published: 01 Sep 2017, 5:45 PM IST
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Published: 01 Sep 2017, 5:45 PM IST