फरवरी का महीना अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम पर गुजर गया। ट्रंप के यशोगान में न्यूज चैनलों ने चारण परंपरा को भी पीछे छोड़ दिया। इसमें अमेरिका-भारत के व्यापार संबंधी मुद्दे दब गए जिनके बिना दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत होने की बात बेमानी है और कंप्रिहेंसिव ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप कोई शक्ल पा पाएगी, कहना मुश्किल है, जिसकी जोर-शोर से चर्चा साझा बयान में की गई है।
ट्रंप ने भारत आने से पहले ही बड़ी चतुराई से भारतीय चिंताओं को दरकिनार कर दिया और ट्रेड डील को भविष्य के लिए छोड़ दिया गया। फरवरी की शुरुआत में जब ट्रंप का भारत दौरा तय हुआ, तब उम्मीद जगी थी कि भारत-अमेरिका के व्यापारिक संबंधों का तनाव कम होगा जो पिछले तीन सालों में पनपा है। पर जैसे-जैसे उनके दौरे के दिन नजदीक आए, उन्होंने अपने वक्तव्यों से सारा ध्यान इसमें अटका दिया कि उनके स्वागत में कितने लाख लोग आएंगे और उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि कोई बड़ी व्यापारिक डील नहीं होगी।
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ट्रंप ने 36 घंटे के इस दौरे का ज्यादा समय सैर-सपाटे में बिताया और जुबानी प्रशंसा करने में दोनों देशों के मुखियाओं ने नए कीर्तिमान बनाए। तमाम कूटनीतिक और रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस यात्रा के दूरगामी लाभ होंगे, पर इनमें से अधिकांश यह नहीं बताते कि भारत-अमेरिका के व्यापारिक समझौते में क्या अड़चनें आ रही हैं, जिनकी वजह से व्यापारिक समझौता होते-होते रह जाता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को व्यापारिक डील को लेकर काफी उम्मीद थी जो उनके वक्तव्यों में साफ देखी जा सकती है।
ट्रंप के कार्यकाल में भारत-व्यापारिक संबंधों में काफी तनाव आया है। इस तनाव के जनक कोई और नहीं, खुद ट्रंप हैं। पदभार संभालते ही ट्रंप ने ऐसे निर्णय लिए जिनसे दुनिया भर में तनाव बढ़ा है। उन्होंने क्लाइमेट चेंज पर वैश्विक पेरिस समझौते को नकार दिया, जिससे पर्यावरण को खतरा बढ़ गया है। ट्रंप ने अमेरिका के भारी व्यापारिक घाटे को लेकर नाकेबंदी शुरू कर दी, जिससे चीन के साथ अमेरिकी संबंधों में भारी तनाव आया। उन्होंने अपने खास दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी नहीं बख्शा और भारत के साथ व्यापारिक घाटे को एक बड़ा मुद्दा बना दिया।
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ट्रंप सरकार ने भारत के साथ व्यापारिक घाटा कम करने के लिए भारत से आयातित स्टील और एल्युमिनियम पर भारी शुल्क लगा दिया। 2018 की शुरुआत में बढ़े शुल्कों से तकरीबन 14 फीसदी भारतीय निर्यात प्रभावित हुए हैं। नतीजा यह हुआ कि 12 महीनों के अंदर भारत से स्टील का निर्यात 46 फीसदी घट गया। भारत ने भी देश में अमेरिकी आयात पर शुल्क बढ़ा दिए, जिनसे भारत को होने वाले 6 फीसदी अमेरिकी निर्यात प्रभावित हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को टैरिफ किंग तक कह डाला और खुले तौर पर कहा कि भारत आयातित उत्पादों पर बहुत ज्यादा शु्ल्क वसूलता है।
दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता में भी उन्होंने इस आरोप को दोहराया। हार्ली डेविडसन मोटर साइकिल पर बढ़े शुल्क को ट्रंप ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना रखा है। भारत ने 28 उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया है, जिसकी शिकायत अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन (डब्लयूटीओ) से की है। ई-कॉमर्स में अमेरिका विरोधी नीतियों का हवाला देकर भारतीयों का एच1 वीजा का कोटा 15 फीसदी कम कर दिया और भारत पर आरोप लगाया कि नीतियों के नाम पर बाधाएं खड़ी की जा रही हैं।
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ट्रंप प्रशासन ने भारत को कई अन्य देशों के साथ जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस (जीएसपी) से बाहर कर दिया। इस व्यवस्था से भारत को अमेरिका में तकरीबन दो हजार उत्पादों को बिना शुल्क के निर्यात करने की सुविधा प्राप्त थी। 2017 में इस व्यवस्था के चलते भारत को 5.8 अरब डाॅलर के उत्पादों पर शुल्क में छूट मिली थी। इस व्यवस्था का लाभ भारत को 1975 से मिल रहा था। ट्रंप सरकार का यह कदम अमेरिका के डेयरी और चिकित्सा उपकरण उद्योग के दबाव में उठाया गया था, जिनकी शिकायत है कि भारतीय नीतियां अमेरिकी निर्यात में बाधक बनी हुई है।
एक और निर्णय से अमेरिका के ट्रेड एक्ट, 1974 की धारा 201 के तहत सोलर पैनल और वाशिंग मशीन को मिलने वाली राहत भी खत्म हो गई है। भारत को जीएसपी सूची से बाहर निकालने का सबसे ज्यादा प्रभाव मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल उपकरणों, रसायन, स्टील, ऑटो पार्टस, प्लास्टिक, रबर, कृषि उत्पाद, एल्युमिनियम, स्टोन, सेरेमिक, टेक्सटाइल और वस्त्र, ज्वेलरी, जेम्स, हीरा और दवा निर्यात पर पड़ा है। इन उत्पादों पर जनवरी, 2018 के स्तर पर औसत 3 फीसदी शुल्क से बढ़कर 3.9 फीसदी हो गया है। इनमें सबसे ज्यादा शुल्क स्टील (25 फीसदी) और एल्युमिनियम (10 फीसदी) पर बढ़ा है।
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ट्रंप की यात्रा से महज 10 दिनों पहले अमेरिका ने भारत को विकासशील देशों की सूची से निकाल दिया है। इसका मतलब है कि अब भारत के जीएसपी सूची में शामिल होने की संभावना शून्य हो गई है। अमेरिका ने यह तर्क देते हुए भारत को इस सूची से बाहर कर दिया है कि भारत जी-20 देशों का सदस्य है और वैश्विक व्यापार में उसकी हिस्सेदारी 0.5 फीसदी ज्यादा है। गौरतलब है कि विश्व बैंक ने भारत को मध्य आय वर्ग सूची से निकाल कर निम्न मध्य आय वर्ग सूची में डाल दिया है।
इस साल फरवरी में पेश बजट के कुछ प्रावधानों से अमेरिका की नाराजगी और बढ़ गई है। इस बजट में मोदी सरकार ने कुछ आयातित मेडिकल डिवाइसों पर शुल्क बढ़ा दिया है। इन दोनों देश के बीच व्यापारिक तनाव का यह पहले से ही प्रमुख कारण रहा है। ट्रंप ने साफ कर दिया है कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव तक कोई बड़ा व्यापारिक समझौता होने की उम्मीद कम ही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत का व्यवहार अमेरिका के प्रति अच्छा नहीं है, पर प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करता हूं।
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वैसे जून, 2019 में भारत ने जो नए शुल्क लगाए हैं, उनसे केवल 5.5 फीसदी अमेरिकी निर्यात प्रभावित होंगे। इनका ज्यादा असर बादाम, रसायन, स्टील, सेब, चना, मसूर की दाल और अखरोट के भारतीय आयात पर पड़ेगा। यह बात बताना जरूरी है कि पिछले कई सालों में भारत-अमेरिकी व्यापार कई गुना बढ़ा है और दोनों के बीच व्यापारिक घाटा भी तेजी से घटा है, क्योंकि पिछले दो-तीन सालों से अमेरिका से भारत में पेट्रोलियम पदार्थो का आयात तेजी से बढ़ा है।
ट्रंप का मोदी को पसंद करना अकारण नहीं है। उनकी धारणा है कि प्रवासी अमेरिकी-भारतीयों पर मोदी का गहरा असर है। मोदी ने परंपराओं को दरकिनार करते हुए आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के पक्ष में अमेरिकी-भारतीयों को लामबंद करने का बड़ा जुआ खेला है। पर हकीकत यह है कि अमेरिकी-भारतीयों का झुकाव ट्रंप के विरोधी राजनीतिक दल डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ रहा है। अमेरिकी ‘टाइम’ पत्रिका के अनुसार, पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में 87 फीसदी भारतीयों ने ट्रंप को वोट नहीं दिया था। पिछले साल अमेरिका में हाउडी मोदी और अब नमस्ते ट्रंप के मेगा शो का मकसद ट्रंप के पक्ष में अमेरिकी-भारतीय वोटरों को लुभाना ही है।
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इस यात्रा में ट्रंप ज्यादा जरूरतमंद थे, जिसका इस्तेमाल भारत बड़ी व्यापारिक डील के लिए एक सशक्त पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए कर सकता था, क्योंकि ट्रंप के टैरिफ संबंधी आरोप काफी कमजोर हैं। पर यह मौका प्रधानमंत्री मोदी ने खो दिया। मोदी-ट्रंप के संबंधों की मजबूत केमेस्ट्री की दुहाई पिछले दो-तीन सालों से दी जा रही है पर उसका कोई लाभ भारत को नहीं हुआ है और कोई बड़ी ऐतिहासिक डील करने में मोदी अब तक विफल ही रहे हैं।
इसके विपरीत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अमेरिका से न्यूक्लियर डील करने में कामयाब रहे थे जिससे पिछले तीन दशकों से भारत पर लगे कई प्रतिबंध समाप्त हो गए। विश्व व्यापार संगठन का पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर ट्रेड फेसिलिटेशन एग्रीमेंट करने के लिए चौतरफा दबाव था, फिर भी उनके कार्यकाल में किसानों के हितों को देखते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए। पर 2017 में मोदी सरकार के कार्यकाल में इस समझौता पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए गए।
अपनी प्रेस वार्ता में ट्रंप ने दोहराया है कि भारत में शुल्क ज्यादा है। पर दोनों तरफ से उम्मीद जताई गई है कि आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के पहले या बाद में बड़ी व्यापारिक डील होगी। पर फिलवक्त सच यह है कि 3 बिलियन डॉलर (तकरीबन 22 हजार करोड़ रुपये) का सैन्य डील होने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने व्यापारिक डील के लिए अमेरिका पर दबाव डालने का मौका गंवा दिया है।
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