केंद्र की मोदी सरकार ने एक और नोटबंदी की तैयारी कर ली है। और यह नोटबंदी इस बार आपके पास रखे नकद पैसे पर नहीं, बल्कि बैंक में रखे आपके पैसे पर होगी। इसे यूं समझ लीजिए कि अगर आपने अपनी जीवन भर की जमा पूंजी बैंक में रखी है, और जरूरत पड़ने पर जब इसे निकालने जाते हैं, तो बैंक आपको एक कागज़ थमा देगा कि आपकी पूंजी के बदले नकद पैसा नहीं बल्कि बैंक का शेयर मिलेगा। आप पर क्या गुजरेगी?
जी हां, मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इसी किस्म का एक कानून पास करने की फिराक में है। इस कानून को एफ आर डी आई यानी फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन एंड डिपॉज़िट इंश्योरेंस बिल का नाम दिया गया है। सरकार ने इसे इसी साल अगस्त में संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया था, जिसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया है। अगर समिति इस बिल पर अपनी सिफारिशें दे देती है तो हो सकता है कि शीतकालीन सत्र में इस बिल को पास कराके सरकार कानून बना दे।
इस बिल को लेकर जो चर्चा शुरु हुई है, उसमें इसे दूसरी और परमानेंट नोटबंदी का नाम दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस बिल के पास होने के बाद बैंकों को यह अधिकार मिल जाएगा कि अगर बैंकों को नुकसान होता है और वे दिवालिया होने के कगार पर पहुंचते हैं तो जमाकर्ताओं की बैंक में जमा रकम को लेकर बैंक उससे खुद को उबार सकते हैं। इस तरह आपका सारा पैसा बैंक रख लेगा, और मुनासिब समझेगा तो आपको बैंक के शेयर दे देगा। आइए सबसे पहले समझते हैं कि आखिर है क्या एफ आर डी आई बिल। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2016-17 का बजट पेश करते हुए पहली बार अपने भाषण में इस बिल का जिक्र किया था। वित्त मंत्रालय का कहना है कि ये बिल किसी भी वित्तीय संकट होने पर ग्राहकों और बैंकों के हितों की रक्षा के लिए होगा। इस बिल के मुख्य बिंदु इस तरह हैं:
Published: 15 Dec 2017, 7:58 AM IST
लेकिन, एफआरडीआई बिल पास होने के साथ ही ये नियम स्वत: समाप्त हो जाएगा, और कम से कम एक लाख रुपए का भुगतान करने की गारंटी भी खत्म हो जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बिल पास होने के बाद लोगों का बैंकों पर से भरोसा खत्म हो जाएगा। यह एक तरह की परमानेंट नोटबंदी होगी, जिसमें आप बैंक में जमा अपने ही पैसे से वंचित हो जाएंगे।
Published: 15 Dec 2017, 7:58 AM IST
विशेषज्ञों के इस निष्कर्ष का बड़ा कारण इस बिल का एक प्रावधान है, जिसे ‘बेल-इन’ प्रावधान कहा गया है। इस प्रावधान को आसान शब्दों में ऐसे समझा जा सकता है कि, अगर किसी बैंक का घाटा, यानी उसकी आमदनी और खर्च का अंतर, ज़्यादा बढ़ जाता है, तो बैंक को आम लोगों की जमा पूंजी से अपने नुकसान की भरपाई करने का अधिकार मिल जाएगा और बैंक इस पैसे से खुद को दिवालिया होने से बचाने की कोशिश करेगा। इसके अलावा इस ‘बेल-इन’ प्रावधान की एक व्याख्या यह भी है कि इससे जमाकर्ता का पैसा सरकार ही कुछ वक्त के लिए सरकार रोक सकती है। यानी जिस तरह पिछले साल की नोटबंदी में आपकी जेब में रखा पैसा बेकार हुआ था और बैंक में जमा पैसा निकालने की सीमा तय हो गई थी, उससे भयंकर स्थिति इस प्रावधान से होगी, क्योंकि बैंक और सरकार के पास इस बिल के जरिए यह अधिकार आ जाएगा कि वह आपको आपका ही पैसा देने से इनकार कर दे।
इस बिल के ‘बेल-इन’ प्रावधान को लेकर पैदा असमंजस और डर के चलते ही पिछले सप्ताह सरकार ने स्थिति साफ करने की कोशिश भी की। वित्त मंत्रालय की तरफ से पिछले गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा गया कि, “बेल इन को लेकर मीडिया में कुछ संदेह जताए जा रहे हैं। बिल में जमाकर्ताओं की रकम को लेकर जो प्रावधान हैं, उसमें सुरक्षा के लिहाज़ से अतिरिक्त सुरक्षा और पारदर्शिता मुहैया कराई गई है।”
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी एक ट्वीट कर कहा कि, “एफ़आरडीआई इंश्योरेंस बिल 2017 को लेकर सरकार का मक़सद वित्तीय संस्थानों और जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना है। सरकार इस मक़सद को लेकर प्रतिबद्ध है।”
Published: 15 Dec 2017, 7:58 AM IST
लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि एफ आर डी आई कानून बनने के बाद एक मौजूदा कानून, डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन खत्म कर दिया जाएगा। इसी कानून के तहत मौजूदा समय में अलग-अलग बैंकों में जमा आपके पैसे की गारंटी मिलती है। इसी कानून के कारण ही देश की मौजूदा बैंकिंग व्यवस्था सबसे सुरक्षित और विश्वसनीय मानी जाती है।
तो फिर सरकार ऐसा कानून क्यों ला रही है, जिससे देश की बैंकिंग व्यवस्था से ही लोगों का भरोसा उठ जाए। इस बारे में सरकार का तर्क यह है कि इस नए कानून से सरकारी और प्राइवेट बैंक, इंश्योरेंस कंपनियां और दूसरी वित्तीय संस्थाओं में दिवालियापन की समस्या से निपटने के लिए एक नया ढांचा तैयार किया जाएगा। केंद्र सरकार का यह भी दावा है कि यह कानून देश में बैंकिंग और इन्सॉल्वैंसी कोड, सरकारी बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन प्लान यानी बैंकों को पुनर्जीविकरण और इंश्योरेंस सैक्टर में विदेशी निवेश की मंजूरी के बाद वित्तीय क्षेत्र का ऐतिहासिक सुधार यानी रिफॉर्म होगा।
सरकार के इस तर्क से शक पैदा होता है। इसका कारण है कि अगर बैंक दिवालिया होने या संकटग्रस्त होने की स्थिति में आपके पैसे को लौटाने के बजाए आपको शेयर देगा, तो आपकी जरूरत वह शेयर तो पूरी नहीं कर पाएगा। और, वैसे भी जो बैंक दिवालिया हो गया है या संकटग्रस्त है, उसके शेयर की बाजार में कीमत ही क्या होगी? ऐसे में आपके सामने विकल्प क्या होगा? दरअसल सारा खेल संभवत: इसी विकल्प में छिपा है।
Published: 15 Dec 2017, 7:58 AM IST
आप बैंक से तभी पैसे निकालते हैं जब आपको जरूरत होती है। जब आपके पास नकद पैसे के बदले शेयर होंगे, तो आप अपनी जरूरत पूरी करने के लिए उसे बाजार में बेचेंगे। उस समय बड़े कार्पोरेट या निजी क्षेत्र के दूसरे खिलाड़ी आपके शेयर नकदी के बदले खरीदेंगे। इस तरह बैंकों का स्वामित्व बिना किसी कानूनी रोकटोक के निजी क्षेत्र के हाथों में जाने की आशंका है। और, बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पूरी बैंकिंग व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने का जो उपाय किया गया था, उसका मकसद ही खत्म हो जाएगा।
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार एफआरडीआई बिल को लेकर लोगों के मन में पैदा संशय को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आम लोगों की बेचैनी लगातार बढ़ रही है। इतना ही नहीं अब तो कार्पोरेट जगत ने भी इस बिल के बेल-इन प्रावधान को लेकर चिंता जताते हुए, इसे बदलने की मांग की है। एजेंसियों की खबरों के मुताबिक इंडस्ट्री चैम्बर एसोचैम ने एक बयान जारी कर इस प्रावधान को खत्म करने की मांग की है।
एसौचैम ने कहा है कि, “प्रस्तावित कानून के सेक्शन 52 का सब सेक्शन 7 साफ कहता है कि ये प्रावधान सिर्फ उस रमक तक ही सीमित नहीं होगा, जितने की गारंटी बैंक या सरकार की तरफ से दी गई है।” एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डी एस रावत का कहना है कि बेल-इन प्रावधान को हर हाल में हटाकर जमाकर्ताओं के बैंक में जमा पैसे की रक्षा होनी चाहिए।
Published: 15 Dec 2017, 7:58 AM IST
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Published: 15 Dec 2017, 7:58 AM IST