रिज़र्व बैंक ने बुधवार को अचानक ब्याज दरें बढ़ाने का ऐलान कर दिया। वैसे आरबीआई को इस मुद्दे पर फैसला करीब एक महीने बाद यानी 8 जून को होने वाली बैंक की मुद्रा नीति समिति की बैठक में लेना था। आरबीआई ने जो संकेत दिया वह यह कि महंगाई को काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाना जरूरी है। तो इस फैसले का अर्थ तो यही निकलता है कि पानी सिर से ऊपर जा चुका था। आरबीआई ने खुद कहा कि महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है और 7 फीसदी के आसपास है। आरबीआई ने रेपो रेट यानी जिस दर पर बैंक को कर्ज मिलता है उसमें 40 बेसिस प्वाइंट यानी 0.4 फीसदी का इजाफा किया। वहीं सीआरआर में 50 बेसिस प्वाइंट का इजाफा किया। सीआरआर वह दर होती है जो बैंकों को अपने कैश रिजर्व के औसत में रिजर्व बैंक के पास रखनी होती है। यानी बैंकों को पास कम पैसा होगा और उसे आरबीआई से कर्ज लेने के लिए ज्यादा ब्याज देना होगा।
क्या ये आने वाले बुरे दिनों के संकेत है?
यूं तो पूरी दुनिया में रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से महंगाई बढ़ चुकी है। भारत में भी पिछले कई महीनों से बुरे हालात है। ईंधन से लेकर खाने-पीने की हर चीज महंगी हो चुकी है। तो सवाल है कि ब्याज दरें बढ़ाने से महंगाई कैसे काबू में आएगी? दरअसल आरबीआई बाजार में या कहें कि सिस्टम में नकदी को कम करना चाहती है, ताकि लोगों के हाथ में पैसा कम आए और वो कम खर्च करें। अर्थव्यवस्था के हिसाब से तर्क यही है कि लोग कम खर्च करेंगे तो मांग कम होगी। मांग कम होगी तो कीमतें कम होंगी यानी चीजें सस्ती होंगी। चीजें सस्ती होंगी तो महंगाई काबू में आ जाएगी।
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लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि इसका हमारी जीडीपी पर क्या असर होगा। अगर यह व्यवस्था लंबे अर्से तक रही तो जीडीपी यानी विकास की रफ्तार धीमी हो जाएगी और मंदी का खतरा गहरा जाएगा। इसलिए व्यवस्था ऐसी बनानी होगी कि बाजार में मांग के मुताबिक चीजों की सप्लाई होती रहे, ताकि महंगाई काबू में रहे और अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत असर न पड़े।
लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में तेल की सप्लाई पर गहरा असर पड़ा है। इससे भारत के साथ ही अन्य कई देशों में भी तेल इम्पोर्ट महंगा हो गया। तेल महंगा होगा तो इसका असर ट्रांसपोर्ट पर पड़ता ही है और माल को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में ज्यादा खर्च होता है। इससे लागत बढ़ती ही है।
इसका असर चौतरफा होता है। ट्रांसपोर्ट महंगा होने का अर्थ है कि ज्यादातर कंज्यूमर गुड्स यानी आम उपभोक्ता की जरूरत का सारा सामान महंगा होगा ही , साथ ही कारखानों में कच्चा माल पहुंचाने की लागत भी बढ़ेगी। यही कारण है कि बाजार में बिकने वाले हर सामान की कीमत आसमान पर है। इसका एक और अर्थ है कि कीमतें बढ़ने से हर व्यक्ति की असली आमदनी यानी रियल इनकम कम हो जाएगी। रियल इनकम कम होने का मतलब कि अगर पहले कोई चीज 100 रुपए प्रति किलो मिलती थी और अब 150 रुपए प्रति किलो मिल रही है तो उसका खर्च बढ़ रहा है। ऐसा होने पर व्यक्ति को दूसरे खर्च में कटौती करना होगी। दूसरे खर्च में कटौती का मतलब है कि जीने के तौर तरीकों यानी लाइफस्टाइल में बदलवा करना होगा।
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अब अगर आप अपने लाइफस्टाइल में होने वाले खर्च में कटौती नहीं करेंगे तो आपको कर्ज लेना पड़ेगा। और कर्ज तो आरबीआई ने महंगा कर दिया है, जिसके जवाब में बैंकों ने भी अपनी ब्याज दरें बढ़ाना शुरु कर दी हैं। ऐसे में आम आदमी पर दोहरी मार पड़ेगी।
इससे निपटने के लिए आपको अपनी आमदनी को बढ़ाना पड़ेगा। अगर आप नौकरीपेशा हैं तो आपको हर साल मिलने वाले इंक्रीमेंट यानी वेतन वृद्धि की औसत महंगाई दर से ज्यादा होना चाहिए, तभी कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन जब बुरे दिनों की आहट हो तो कंपनियां वेतन वृद्धि क्यों देंगी।
इसके अलावा अगर आप कारोबारी हैं तो उसे बढ़ाने और चलाए रखने के लिए भी आपको और पैसों की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए आप बैंक से लोन लेना चाहेंगे, जोकि महंगा हो चुका है। ऐसे में आपके उत्पाद की प्रोडक्शन कॉस्ट यानी उसे तैयार होने में लगने वाली लागत बढ़ जाएगी और सामान महंगा होगा। महंगाई तो पहसे ही बढ़ रही है, तो इसीलिए सामान की मांग कम करने की कोशिश की जा रही है।
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यहां सवाल उठता है कि अगर मांग कम करने की कोशिश की जा रही है तो फिर आपका सामान बिकेगा कैसे? इस आशंका में आप बाजार में मांग कम होने की आशंका में प्रोडक्शन कम करेंगे। ऐसा करने से माल कम बिकेगा। माल कम बिकेगा तो जाहिर है आपकी कमाई पहले से कम हो जाएगी। कमाई कम होने पर घाटा होने का ख़तरा बढ़ जाएगा। आप घाटा कम करने के लिए लोगों को नौकरी से निकालने पर मज़बूर होंगे। आपकी तरह बाक़ी लोग भी ऐसा करेंगे तो बेरोज़गारी बढ़ेगी।
इसका क्या नतीजा होगा। बेरोज़गारी बढ़ने पर लोगों में निराशा और हताशा बढ़ेगी। युवाओं में ग़ुस्सा बढ़ेगा। क़ानून-व्यवस्था पर ख़तरा आ सकता है। अपराध बढ़ सकता है। सरकारों के लिए स्थिति संभालना मुश्किल भी हो सकता है।
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इन हालात को काबू में करने के लिए सरकारों को रोजगार देना होगा, नौकरियां देनी होंगी। लोगों के हाथ में पैसा पहुंचाना होगा। लेकिन लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा होना और चीजों की कम सप्लाई होना ही तो महंगाई की जड़ है। इसी को नियंत्रित करने की कोशिश आरबीआई ने ब्याज दरें बढ़ाने से की है।
यह तो एक तरह का भयानक कुचक्र है। और इसी से बचने की, या फिर बचने का दिखावा करने की कोशिशें सरकारें कर रही हैं।
फौरी हल तो यही समझ आता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त हो ताकि पूरी दुनिया में तेल और बाकी सामान की सप्लाई पटरी पर आए। मांग और आपूर्ति में संतुलन बनेगा तो महंगाई काबू में आ जाएगी। लेकिन क्या ऐसा निकट भविष्य में होगा, इसके कोई संकेत फिलहाल तो नहीं दिख रहे।
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