अर्थतंत्र

कोचर को 64 करोड़ रुपए भुगतान करने में धूत की मिलीभगत, वीडियोकॉन के साथ मिलकर कोचर परिवार ने रचा खेल 

वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज (वीआईएल) ने अग्रिम के तौर पर सुप्रीम को आठ सितंबर 2009 को 64 करोड़ रुपये का भुगतान किया। वीआईएल ने उसके बाद यह अग्रिम रकम सुप्रीम से अपने कंपनी समूह आईआरसीएल को पांच जुलाई 2011 को सौंपी।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

चंदा कोचर-वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज मामले की जांच कई एजेंसियों द्वारा की जा रही है। जांच के इस क्रम में अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत ने दो बार स्वीकार किया है कि इस गंदे सौदे में वह भागीदार रहे हैं।धूत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को 25 अप्रैल 2018 को लिखे पत्र में कहा, "मैं एतदद्वारा बतौर वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष और प्रबंधक निदेशक के तौर पर स्वीकार करता हूं कि निवेश करने/कर्ज का विस्तार करने और अग्रिम प्रदान करने इत्यादि समेत प्रबंधन संबंधी अन्य सभी विषयों में मेरे पास पर्याप्त शक्ति रही है। इस प्रकार कंपनी द्वारा सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को दी गई 64 करोड़ रुपए की राशि मेरी शक्ति के अधीन है।"

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धूत ने यह खुलासा वीडियोकॉन की जांच के दौरान अपने हलफनामे और 15 नवंबर 2018 को लिखे गए पत्र में किया है। वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड (वीआईएल) द्वारा 12 जून, 2018 को सेबी (भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड) को भेजे गए संदेश में कहा गया है कि यह फैसला अधकार की शर्तो के अधीन था, क्योंकि मसला काफी पुराना था, हम जांच कर रहे हैं कि क्या इस प्रभाव का कोई करार हुआ था।

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अगले अनुच्छेद में कहा गया कि अग्रिम की तिथि तक लेखा परीक्षण समिति की कोई मंजूरी नहीं ली गई, क्योंकि वेणुगोपाल धूत की तरफ से कंपनी हित के बारे में जिक्र नहीं था। तिकड़म और बचाव के इस मामले में जांचकर्ताओं के पास वीडियोकॉन के धूत और कोचर परिवार के बीच संभावित व स्पष्ट सांठगांठ को उजागर करने के कारण हैं। जांच एजेंसियों ने धन के प्रवाह का तरीकों और वीडियोकॉन समूह में उसकी स्थिति के तारों को जोड़ा है।

सांठगांठ से की गई धोखाधड़ी के तार कुछ इस प्रकार हैं :

वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज (वीआईएल) ने अग्रिम के तौर पर सुप्रीम को आठ सितंबर 2009 को 64 करोड़ रुपये का भुगतान किया। वीआईएल ने उसके बाद यह अग्रिम रकम सुप्रीम से अपने कंपनी समूह आईआरसीएल को पांच जुलाई 2011 को सौंपी। इंडियन रेफ्रिजरेटर कंपनी लिमिटेड (आईआरसीएल) ने इसके बाद यह रकम दूसरी कंपनी रियल क्लीनटेक प्राइवेट लिमिटेड (आरसीएलपी) को पांच अगस्त 2011 को सुपुर्द कर दी।

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आरसीपीएल वर्तमान में आरओसी के रिकॉर्ड में बंद हो चुकी है, क्योंकि 2014 के बाद एआर और बीएस जुर्माने में चूक पाए जाने पर धारा 248 के तहतआरओसी ने इस कंपनी को बंद कर दिया, फिर भी रकम सुप्रीम द्वारा वीआईएल समूह को भुगतान योग्य है। इस अग्रिम राशि के बदले में सुप्रीम एनर्जी ने 64 करोड़ रुपए का ओसीडी (ऐच्छिक परिवर्तनीय ऋणपत्र) आरसीपीएल को पांच अक्टूबर 2011 को जारी किया। आरसीपीएल ने ओसीडी का शून्य फीसदी आईआरसीएल को 31 मार्च, 2012 को प्रदान किया।

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आरसीपीएल और आईआरसीएल दोनों वीआईएल कंपनी समूह में हैं और अभी तक बनी हुई हैं, हालांकि सच्चाई यह है कि आरसीएलपी अब बंद हो चुकी है। अब आरसीएलपी के बंद होने के बावजूद सुप्रीम (कोचर कंपनी समूह) से आरसीपीएल/वीआईएल द्वारा यह रकम प्राप्त किया जाना काफी संदेह उत्पन्न करता है। जाहिर है कि वीडियोकॉन समूह की इस धन की वसूली की कोई गंभीर इच्छा नहीं थी।

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अब यह 64 करोड़ रुपए की रकम वीआईएल से सुप्रीम के पास जाती है और फिर कोचर समूह के पास आती है। यह लेन-देन कुछ इस प्रकार हुआ है :

सुप्रीम ने वीआईएल से आठ अगस्त, 2009 को असुरक्षित कर्ज के रूप में 64 करोड़ रुपए प्राप्त किया और उसी दिन सुप्रीम ने यह शून्य कूपन पूर्ण परिवर्तनीय ऋणपत्र खरीदने के आशय से न्यूपावर रिन्यूएबल्स को हस्तांतरित कर दिया। न्यूपावर ने ये ऋणपत्र सुप्रीम को 25 मार्च, 2010 को हस्तांतरित कर दिए। इन ऋणपत्रों को 19 मार्च 2016 को 1,156.50 रुपये प्रति शेयर के अधिमूल्य पर सुप्रीम को परिवर्तित कर दिया गया और कुल 64 करोड़ रुपये के 5,48,650 शेयर प्रदान किए गए। यह अधिमूल्य पीडब्यूसी की रिपोर्ट में दर्ज मूल्य के आधार पर था। न्यूपावर की जांच के सिलसिले में पीडल्यूसी पहले ही आयकर विभाग की जांच के घेरे में आ चुकी है।

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न्यूपावर का विंड पावर का कारोबार है, जिसमें बैंकों से मिले कर्ज और दूसरी कंपनियों से प्राप्त धन के साथ इस रकम का कंपनी इस्तेमाल कर रही है। न्यूपावर की विंड पावर परिसंपत्ति बाद में तीन एकमुश्त बिक्री के जरिए तीन भागों में बंट गई। ये तीन कंपनियां थीं-न्यूपावार विंड फार्म्स लिमिडेड (जो जांच के घेरे में है) और ईचंदा ऊर्जा प्राइवेट लिमिटेड (जांच के घेरे में) और तीसरा हिस्सा न्यूपावर के पास रहा।

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कैसे बदली कंपनियां :

सुप्रीम वी.एन. धूत की कंपनी थी, क्योंकि वीआईएल द्वारा सुप्रीम को 64 करोड़ रुपए की अग्रिम राशि जब दी गई थी तो कंपनी के सभी शेयर धूत और उनके सहयोगियों के पास थे। धूत ने सुप्रीम के अपने सारे शेयरों का हस्तांतरण दो नवंबर, 2010 को महेश पुंगलिया (उनका परामर्शदाता सीएस) को सममूल्य पर (10 रुपये प्रति शेयर के 9,999 इक्विटी शेयर) को कर दिया, जबकि 64 करोड़ रुपए की राशि फिर भी वीआईएल द्वारा सुप्रीम से प्राप्त करने योग्य थी। वर्तमान यह यह रकम आरसीपीएल द्वारा प्राप्त करने योग्य है।

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इस बीच धूत ने पेसिफिक प्राइवेट लिमिटेड (दीपक कोचर के रिश्तेदारों के स्वामित्व वाली कंपनी) के साथ एक संयुक्त रूप से एक और कंपनी न्यूपावर बनाई जो समान हिस्सेदारी वाली संयुक्त उपक्रम कंपनी थी। न्यूपावर अब सुप्रीम की अनुषंगी कंपनी बन गई, जिसमें धूत ने अपनी सभी 50 फीसदी शेयरों की बिक्री सममूल्य पर (10 रुपए प्रति शेयर की दर से 24,996 शेयर 2,49,960 रुपए में) की और पेसिफिक ने सुप्रीम को अपने 22,500 शेयर सममूल्य पर 2,25,000 रुपए बेचे।पेसिफिके के बाकी शेयर दीपक कोचर को सममूल्य पर बेचे गए।

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बाद में 12 मार्च, 2012 को न्यूपावर ने 10 रुपए प्रति शेयर मूल्य के 18,97,000 शेयर दीपक कोचर को पिनाकल ट्रस्ट के के प्रबंधन ट्रस्टी के तौर पर प्रदान किया और 10 रुपए प्रति शेयर मूल्य के 1,00,000 शेयर सुनील भूटा को कन्वर्जन वारंट के तौर पर दिया गया। इस प्रकार न्यूपावर सुप्रीम की अनुषंगी कंपनी नहीं रह गई और 97.66 फीसदी शेयर दीपक कोचर और उनके सहयोगियों के पास चले गए और सुप्रीम के पास सिर्फ 2.32 फीसदी रह गए।

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पुंगलिया ने धूत से प्राप्त सुप्रीम में 10 रुपए प्रति शेयर मूल्य के 9,990 शेयर की अपनी संपूर्ण हिस्सेदारी सममूल्य पर कोचर को 29 सितंबर 2012 को बेच दिया। उसी दिन वसंत ककाडे (धूत के सहयोगी) ने बाकी 10 शेयर प्रेम रजनी (कोचर के सहयोगी) को हस्तांतरित कर दिया। इस प्रकार दीपक कोचर का सुप्रीम और न्यूपावर दोनों कंपनियों पर स्वामित्व और नियंत्रण हो गया, फिर भी 64 करोड़ रुपए की राशि सुप्रीम पर आरसीएलपी का बकाया बनी रही।

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