भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये का हस्तांतरण करने का फैसला लिया है। सोमवार को आरबीआई की केंद्रीय बोर्ड की बैठक में सरकार को किए जाने वाले हस्तांतरण की रकम पर फैसला लिया गया। आरबीआई बोर्ड ने यह फैसला आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में गठित समिति की उस रिपोर्ट पर किया जिसमें सरकार को केंद्रीय बैंक की आरक्षित निधि और इसके लाभांश का हस्तांतरण करने के संबंध में सिफारिश की गई है।
जालान समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद आरबीआई बोर्ड की बैठक में आरबीआई के 1,76,051 करोड़ रुपये भारत सरकार को हस्तांतरित करने का फैसला लिया गया, जिसमें 1,23,414 करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2018-19 का अधिशेष और 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान शामिल है। इसकी सिफारिश संशोधित आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क में की गई है जिसे केंद्रीय बोर्ड की बैठक में सोमवार को स्वीकार किया गया।
आरबीआई ने सरकार की सलाह से केंद्रीय बैंक के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिए विमल जालान की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास को शुक्रवार को ही सौंप दी थी। समिति ने केंद्रीय बैंक के वित्तीय लचीलेपन, दूसरे देशों की परंपराओं, वैधानिक प्रावधानों और आरबीआई की सावर्जनिक नीति की अनिवार्यता के साथ-साथ इसके तुलन पत्र पर प्रभाव और इसमें शामिल जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अपनी सिफारिशें दी हैं।
बता दें कि लंबे विवाद और दबाव के बाद इसी साल फरवरी में आरबीआई ने अंतरिम लाभांश के तौर पर केंद्र सरकार को 28,000 करोड़ रुपये दिया था। इससे पहले भी इसी वित्त वर्ष में आरबीआई ने सरकार को 40,000 करोड़ रुपये का अंतरिम लाभांश हस्तांतरित किया था। अंतरिम लाभांश में से सरकार को यह रकम दिए जाने के बाद चालू वित्त वर्ष में सरकार को आरबीआई से कुल 68,000 करोड़ रुपये मिल चुके हैं।
गौरतलब है कि सरप्लस राशि को लेकर मोदी सरकार द्वारा लगातार आरबीआई पर दबाव बनाए जाने की खबरें आती रही हैं। इस मुद्दे को लेकर आरबीआई के कई वरिष्ठ अधिकारियों की नाराजगी की खबरें भी सामने आ चुकी हैं। आरबीआई गवर्नर रहे रघुराम राजन और उनके बाद उर्जित पटेल और अभी हाल ही में डिप्टी गवर्नर विमल आचार्या के कार्यकाल खत्म होने से पहले पद से इस्तीफा देने के पीछे के कारणों में ये भी एक वजह बताई जाती रही है।
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