अर्थतंत्र

और महंगे होंगे खाद्य तेल, लेकिन उतना ही अडाणी-रामदेव को होगा फायदा

जैसे ही मलेशिया ने अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध किया, सरकार ने तेल आयात पर अंकुश लगाने की कमर कसते हुए कहा कि इसके दो फायदे हैंः एक, घरेलू उद्योग को इससे लाभ होगा और दो, किसानों को फायदा होगा। किसान को तिलहन के अच्छे दाम मिलेंगे। लेकिन क्या सच में ऐसा होगा?

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

पिछले 3 माह के दौरान खाद्य तेल की कीमतों में भारी उछाल आया है। 68 रुपये प्रतिकिलो के दाम से बिकने वाला खाद्य तेल इन दिनों 95 रुपये में बिक रहा है। खाद्य तेल के दाम और बढ़ सकते हैं। इसकी वजह यह है कि भारत सरकार ने मलेशिया से आने वाले रिफाइंड तेल पर रोक लगा दी है, क्योंकि मलेशिया ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और बाद में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) का विरोध किया है। नरेंद्र मोदी सरकार ने इसे आंतरिक मामला बता कर मलेशियायी सरकार को सबक सिखाने की धमकी दी थी।

इसके तहत तेल आयात करने वाले व्यापारियों से कहा गया कि अगर किन्हीं वजहों से मलेशिया का तैयार पामोलिन (पाम ऑयल) जिसे रिफाइंड भी कहा जाता है, की शिपमेंट फंसती है तो भारत सरकार उनका सहयोग नहीं कर पाएगी। इस पर व्यापारियों ने मलेशिया से रिफाइंड ऑयल नहीं खरीदने की घोषणा की। फिर, सरकार ने 8 जनवरी, 2020 को नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि अब तक जो रिफाइंड ऑयल मुक्त व्यापार की श्रेणी में आता है, उसे प्रतिबंधित किया जाता है। इसका आशय यह है कि अब मलेशिया से आयात करने वाले व्यापारियों को लाइसेंस लेना होगा जो इतना आसान नहीं होगा और भारत के व्यापारी चाहकर भी मलेशिया से रिफाइंड ऑयल नहीं खरीद पाएंगे।

Published: 18 Jan 2020, 8:12 PM IST

दरअसल, भारत में खाद्य तेल की कुल खपत लगभग 2.35 करोड़ टन है, जबकि भारत का घरेलू उत्पादन 85 लाख टन है और लगभग 1.5 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात किया जाता है। मलेशिया से सबसे अधिक तेल आयात किया जाता है क्योंकि वह सस्ता पड़ता है। इसके अलावा इंडोनेशिया से भारत के व्यापारी रिफाइंड तेल मंगाते हैं। भारत की तेल रिफाइनरियों की क्षमता 3 करोड़ टन रिफाइनिंग करने की है लेकिन ये रिफाइनरियां अपनी क्षमता के मुताबिक उत्पादन नहीं कर पातीं। खाद्य तेल उद्योगों के बारे में जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ये रिफाइनरी केवल 40 से 45 फीसदी ही उत्पादन कर पाती हैं और इस वजह से इनका कारोबार प्रभावित भी हो रहा है।

यही वजह है कि ऑयल रिफाइनरीज के संगठन- सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ऑफ इंडिया सरकार से लगातार मांग करती रही है कि सरकार रिफाइंड तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दे ताकि स्थानीय रिफाइनरी अपनी क्षमता के मुताबिक तेल उत्पादन कर सकें। ऐसे में, अब जैसे ही मलेशिया ने अनुच्छेद 370 का विरोध किया, सरकार ने एसईए की मांग का हवाला देते हुए तेल आयात पर अंकुश लगाने की कमर कस ली। सरकार कह रही है कि इसके दो फायदे होंगेः एक, घरेलू उद्योग को इस प्रतिबंध से फायदा होगा और दो, किसानों को फायदा होगा। किसान तिलहन की खेती बढ़ाएगा और उसे अच्छे दाम मिलेंगे। लेकिन क्या सच में ऐसा होगा?

Published: 18 Jan 2020, 8:12 PM IST

सरकार के ताजा नियम से रिफाइंड ऑयल का आयात तो बंद हो गया है लेकिन सरकार ने क्रूड ऑयल यानी कच्चे पाम ऑयल पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है। इंडस्ट्री भी यही चाहती है कि विदेशों से सस्ता कच्चा तेल आयात किया जाए और उसे अपनी रिफाइनरी में रिफाइंड तेल बनाकर बाजार में बेचा जाए। यह कच्चा तेल इतना सस्ता होता है कि किसान किसी भी हालात में इससे मुकाबला नहीं कर सकते, यानी सरकार के इस कदम से किसानों को कोई फायदा नहीं होने वाला। दिलचस्प यह है कि मलेशिया से बड़ी मात्रा में क्रूड एडिबल ऑयल आयात होता है जिस पर कोई रोक नहीं लगी है। हालांकि कुछ व्यापारिक संगठनों ने यह जरूर कहा है कि वे मलेशिया से क्रूड ऑयल भी आयात नहीं करेंगे लेकिन बड़े उद्योगों ने इससे हाथ नहीं खींचे हैं।

अंततः इसका फायदा देश के दो बड़े ब्रांड को होगा। इनमें एक है अडानी विल्मर और दूसरी है रुचि सोया। गौतम अडानी समूह की कंपनी- अडानी विल्मर, फॉर्च्यून नाम से खाद्य तेल बनाती है। पिछले साल 5 अगस्त को कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा, 1 अक्टूबर को मलेशिया के प्रधानमंत्री ने इसका विरोध किया और 16 अक्टूबर को अडानी विल्मर ने अगले पांच साल में अपनी इस कंपनी में 36 हजार करोड़ रुपये के निवेश की रणनीति की घोषणा की।

Published: 18 Jan 2020, 8:12 PM IST

अब बात रुचि सोया की। यह खाद्य तेल बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी है। यह पिछले कुछ समय से कर्जदाताओं का कर्ज नहीं दे पा रही थी इसलिए मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में पहुंच गया। इसके अधिग्रहण को लेकर अडानी समेत कई समूहों ने हाथ-पैर मारे लेकिन बाजी मारी बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ने। इसने रुचि सोया को 4350 करोड़ रुपये में खरीदा है। भारत के कुल खाद्य तेल बाजार में अडानी विल्मर की हिस्सेदारी 19 फीसदी है जबकि रुचि सोया की हिस्सेदारी 14 फीसदी है, यानी नरेंद्र मोदी सरकार के दोनों नजदीकी उद्योग समूहों की खाद्य तेल बाजार में 33 फीसदी की हिस्सेदारी है।

रुचि सोया सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है। इतनी बड़ी कंपनी कर्ज में कैसे डूब गई? इसकी कहानी अलग है। लेकिन सामने यह है कि मलेशिया से तेल आयात बंद होने की वजह का सीधा फायदा इन दो कंपनियों के बीच पहुंच जाएगा। वैसे, अडानी समूह की कंपनी केवल भारतीय कंपनी नहीं है। अडानी विल्मर में सिंगापुर की कंपनी विल्मर इंटरनेशनल लिमिटेड की आधी हिस्सेदारी है, यानी मुनाफे का आधा हिस्सा विल्मर को मिलेगा।

Published: 18 Jan 2020, 8:12 PM IST

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Published: 18 Jan 2020, 8:12 PM IST