मोदी सरकार के करीब साढ़े तीन साल हो चुके हैं और अच्छे दिनों की झलक दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही, लेकिन बुरे दिनों की छाया देश पर जरूर मंडराने लगी है। हालात यह है कि अब आर्थिक सेहत पर नजर रखने वाली एजेंसियों ने भी खुलकर कहना शुरु कर दिया है कि बहुत घने कोहरे में लिपटा है देश का विकास। वित्तीय क्षेत्र में सेवा देने वाली एजेंसी क्रेडिट सुइस ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था पर इस समय “घना कुहासा” छाया हुआ है और तरक्की की रफ्तार, वित्तीय सेहत, महंगाई, रुपये की कीमत और पूरे बैंकिंग सिस्टम पर अनिशचितता के बादल मंडरा रहे हैं। क्रेडिट सुइस ने कहा कि ये सब कुछ जीएसटी और दूसरे संरचनात्मक कदमों की वजह से हो रहा है जो मोदी सरकार ने पिछले दिनों आर्थिक मोर्चे पर उठाए हैं।
Published: 14 Sep 2017, 5:08 PM IST
एजेंसी ने कहा है कि अगर पूरी तस्वीर देखें तो भारत की अर्थव्यवस्था घने कोहरे से होकर गुजर रही है और इसका नतीजा यह होगा कि निवेश पर असर पड़ेगा, विकास नीचे आएगा और जीडीपी भी घटेगी। इतना ही नहीं इस सबसे अगले वित्त वर्ष में होने वाली कमाई पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।
क्रेडिट सुइस के मुताबिक जन कल्याणकारी कामों में सरकारी खर्च में वृद्धि की जो रफ्तार थी, वह तेजी से कम हो रही है। इतना ही नहीं, अच्छा मॉनसून रहने और पिछले वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ने के बावजूद अनाज के दामों में नरमी से कृषि क्षेत्र की जीडीपी नीचे आयी है।
इस बीच देश में थोक महंगाई लगभग दो गुना हो गयी है। वाणिज्य मंत्रालय से जारी आंकड़ों के मुताबिक अगस्त महीने की थोक महंगाई दर 3.24 फीसदी रही है जो कि जुलाई के 1.88 फीसदी से लगभग दोगुना है। पिछले साल के मुकाबले देखें तो ये तीन गुना हो गयी है। 2016 अगस्त में थोक महंगाई दर 1.09 फीसदी थी। थोक महंगाई में इस बढ़ोत्तरी को गौर से देखें तो पिछले साल के मुकाबले सब्जियों के दाम पचास फीसदी ज्यादा बढ़े हैं। अगस्त 2016 में सब्जियों की थोक महंगाई दर निगेटिव यानी माइनस 7.75 फीसदी थी जो कि इस साल अगस्त में 44.91 फीसदी हो गयी है।
Published: 14 Sep 2017, 5:08 PM IST
इन सब तथ्यों के चलते आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कटौती के आसार भी कम ही नजर आ रहे हैं। क्रेडिट सुइस का कहना है कि अर्थव्यवस्था इतनी अनिश्चितता के दौर में है कि अगले कम से कम चार महीने तक ब्याज दरों में किसी कटौती की कोई संभावना नहीं है। उसका कहना है कि असली मायनों में ब्याज में कटौती के लिए कम से कम एक साल इंतजार करना
Published: 14 Sep 2017, 5:08 PM IST
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Published: 14 Sep 2017, 5:08 PM IST