आर्थिक मोर्चे पर चौतरफा हमले झेलती रही मोदी सरकार ने आखिरकार मान लिया है कि वित्त वर्ष 2016-17 में देश के विकास की रफ्तार धीमी रही। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह बात खुद शुक्रवार को संसद में कही।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को संसद में माना कि देश के विकास की रफ्तार इस साल धीमी रही है। उन्होंने कहा कि, “2015-16 में जीडीपी 8 फीसदी थी, जो इस साल करीब एक फीसदी घटकर 7.1 फीसदी पर आ गई।” उन्होंने बताया कि देश की आर्थिक वृद्धि संरचनात्मक यानी स्ट्रक्चरल, बाहरी वित्तीय और मौद्रिक जैसे तमाम कारकों पर आधारित होती है। विकास की रफ्तार कम होने से उद्योगों और सेवा क्षेत्र पर भी असर पड़ा है और इन क्षेत्रों में सुस्ती छाई रही।
लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान वित्त मंत्री ने कहा कि 2016 में दुनिया भर की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार धीमी रहने के साथ-साथ जीडीपी के मुकाबले कम फिक्सड निवेश, कॉर्पोरेट सेक्टर की दबाव वाली बैलेंस शीट, इंडस्ट्री सेक्टर के क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट और कई वित्तीय कारणों से आर्थिक रफ्तार धीमी रही।
गौरतलब है कि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन यानी सीएसओ के हाल आंकड़ों के अनुसार, जीडीपी की दर 2014-15 में 7.5 प्रतिशत, 2015-16 में 8 प्रतिशत और 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2017-18 की पहली और दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत रही।
लेकिन फिर भी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया कि, “अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक मंदी के बावजूज भारत 2016 में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का देश रहा।”
जेटली ने दावा कियाकि अर्थव्यवस्था को तेजी देने के लिए सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा दिया, ट्रांसपोर्ट और पावर सेक्टर में सुधार किए। उन्होंने और भी कई क्षेत्रों के लिए उठाए गए कदमों का जिक्र किया।
संसद में सरकार की इस स्वीकारोक्ति के बीच ही यह खबर भी सामने आई कि मौजूदा वित्त वर्ष 2017-18 के पहले आठ महीनों में ही राजकोषीय घाटा देश के सालाना बजटीय लक्ष्य का 112 फीसदी हो चुका है, जो कि 6.12 लाख करोड़ रुपये है। जबकि पूरे साल का लक्ष्य 5.46 लाख करोड़ रुपये रखा गया था। महालेखा नियंत्रक यानी सीजीए द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-नवंबर की अवधि में राजकोषीय घाटा बजटीय लक्ष्य का 85.8 फीसदी था।
सीजीए के आंकड़ों के मुताबिक, इन आठ महीनों में टैक्स से होने वाला राजस्व कुल 6.99 लाख करोड़ रुपये रहा, जो चालू वित्त वर्ष के बजटीय लक्ष्य का 54.2 फीसदी ही है।
आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-नवंबर के दौरान कुल सरकारी खर्च 14.78 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो कि पूरे वित्त वर्ष के अनुमान का 68.9 फीसदी है।
वित्त वर्ष 2017-18 में राजकोषीय घाटा (राजस्व और सरकारी खर्च का अंतर) का 5.46 लाख करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 5.34 लाख करोड़ रुपये था।
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