विदेशी निवेशकों ने अप्रैल-जून तिमाही में भारतीय कंपनियों में अधिक दिलचस्पी दिखाई है, जिससे पांच कंपनियों में इन संस्थाओं की हिस्सेदारी में तेजी से वृद्धि हुई है। यह वृद्धि इस साल जुलाई के अंत से खरीदार बनने से पहले पिछले 9 महीनों में इक्विटी के शुद्ध विक्रेता बने रहने के बाद भी है।
प्रभुदास लीलाधर द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने 31 मार्च को 0.64 प्रतिशत की तुलना में आरएचआई मैग्नेसिटा इंडिया लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 2.2 प्रतिशत कर दी।
जबकि, एसाब इंडिया लिमिटेड में हिस्सेदारी 0.21 प्रतिशत से बढ़कर 0.64 प्रतिशत हो गई, टाटा कॉफी लिमिटेड में यह 0.71 प्रतिशत से बढ़कर 1.78 प्रतिशत हो गई, हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड में यह 0.67 प्रतिशत बढ़कर 0.31 प्रतिशत हो गई और मैंगलोर में आंकड़ों से पता चलता है कि रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड में यह 0.77 प्रतिशत से बढ़कर 1.6 प्रतिशत हो गया।
इसके अलावा, कुछ अन्य राज्य के स्वामित्व वाली संस्थाएं जैसे- इंडिया बैंक, राष्ट्रीय केमिकल एंड फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, आदि हैं जहां एफपीआई की हिस्सेदारी बढ़ी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि होल्डिंग में बढ़ोतरी वैल्यू शेयरों में इंटरेस्ट के शिफ्ट होने की वजह से हुई है।
भारतीय इक्विटी में विदेशी निवेशकों की आमद 28 जुलाई से अब तक 21,000 करोड़ रुपये से अधिक है। लगभग 9 महीने तक इक्विटी में बिकवाली करने के बाद विदेशी निवेशक जुलाई के अंत से खरीदार बन गए।
विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में लौट आए हैं क्योंकि भारत पसंदीदा गंतव्य है क्योंकि देश में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच विकास की सबसे अच्छी संभावनाएं हैं। एफपीआई ऑटो, कैपिटल गुड्स, एफएमसीजी और टेलीकॉम में शुद्ध खरीदार बन गए हैं।
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क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने बुधवार को कहा कि उसने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को दी गई बीएए3 रेटिंग और (पी) बीएए3 वरिष्ठ असुरक्षित मध्यम अवधि के नोट प्रोग्राम रेटिंग को वापस ले लिया है। मूडीज के मुताबिक, उसने अपने व्यावसायिक कारणों से रेटिंग वापस लेने का फैसला किया है।
एनएचएआई का गठन संसद के एक अधिनियम, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 द्वारा किया गया था।
केंद्र के स्वामित्व में होने के नाते, एनएचएआई सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के तहत काम करता है और इसे सौंपे गए राष्ट्रीय राजमार्गो के विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिए यह जिम्मेदार है।
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उबर ने 2021 में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए 44,600 करोड़ रुपये का मूल्य अर्जित किया, जिससे ड्राइवरों को उच्च आय में अतिरिक्त 1,700 करोड़ रुपये कमाने में मदद मिली। बुधवार को राइड-हेलिंग प्लेटफॉर्म ने यह खुलासा किया।
उबर के साथ सवारी ने 2021 में भारतीय सवारों के लिए उपभोक्ता अधिशेष में 1.5 लाख करोड़ ट्रिलियन (सकल घरेलू उत्पाद के 0.8 प्रतिशत के बराबर) का उत्पादन किया।
उबर इंडिया और दक्षिण एशिया के अध्यक्ष प्रभजीत सिंह ने कहा, "भारत में 2021 में एक चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, जिसे एक क्रूर दूसरी कोविड लहर द्वारा चिह्न्ति किया गया था, उबर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनुमानित रूप से 44,600 करोड़ रुपये का आर्थिक मूल्य अनलॉक किया।"
पब्लिक फस्र्ट द्वारा संकलित कंपनी की 2021 इंडिया इकोनॉमिक इम्पैक्ट रिपोर्ट के अनुसार, उबर साल में 16.8 करोड़ घंटे से अधिक सवारियों की बचत करता है।
जहां 96 फीसदी सवारों का कहना है कि उबर का उपयोग करने के लिए सुविधा एक महत्वपूर्ण कारण है, वहीं 97 फीसदी महिला सवारों का कहना है कि राइड-हेलिंग ऐप का उपयोग करने के लिए उनकी पसंद में सुरक्षा एक महत्वपूर्ण कारक है।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, "कुल मिलाकर, 2021 में, हम अनुमान लगाते हैं कि ड्राइवर-पार्टनर उबर के माध्यम से उच्च आय में एक वर्ष में अतिरिक्त 1,700 करोड़ रुपये कमाते हैं, या अपने अगले सर्वोत्तम वैकल्पिक प्रकार के काम से औसतन 49 प्रतिशत अधिक कमाते हैं।"
लगभग 84 प्रतिशत सवारियों के पास कार तक पहुंच नहीं है, उन्होंने कहा कि उबर जैसी राइडशेयरिंग सेवाओं की उपलब्धता वाहन नहीं रखने के उनके विकल्प के लिए महत्वपूर्ण है।
कंपनी ने कहा, "कुल मिलाकर, हम अनुमान लगाते हैं कि चार में से एक उबर यात्रा सार्वजनिक परिवहन से जुड़ती है।"
सिंह ने कहा कि कंपनी यह देखकर प्रसन्न है कि 'भारत में पिछले नौ वर्षो में हमारी यात्रा ने हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।'
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आयुष मंत्रालय के सचिव, पद्मश्री वैद्य डॉ राजेश कोटेजा ने कहा कि 2014 के बाद भारत सरकार द्वारा आयुष को महत्व दिए जाने से इस पर आधारित मेडिसिन इंडस्ट्री छह गुना रफ्तार से आगे बढ़ी है। 2014 में किए गए एक उच्च स्तरीय अध्ययन में निष्कर्ष निकला था कि देश में आयुष इंडस्ट्री का आकार 3 बिलियन डॉलर का था। 2020 में दोबारा हुए अध्ययन में यह आंकड़ा 18.1 बिलियन डॉलर पहुंच चुका था। छह साल में छह गुना विकास दशार्ने वाला यह आंकड़ा देश में आयुष को बढ़ावा देने के कदमों की झलक दिखा जाता है। केंद्रीय आयुष मंत्रालय के सचिव, पद्मश्री वैद्य डॉ राजेश कोटेजा ने बुधवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम बालापार गोरखपुर के प्रथम स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में 2014 के पूर्व एवं इसके बाद' विषय पर विचार व्यक्त कर रहे थे। डॉ कोटेजा ने कहा कि कोरोना संकटकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी दूरदर्शी सोच से आयुष विभाग को इस संकट को अवसर के रूप में लेने की नसीहत दी थी। इसके बाद टास्क फोर्स बनाकर लोगों को कोरोना से मुक्त कराने का अभियान शुरू कर दिया गया। आयुष को लेकर तब काफी दुष्प्रचार भी हुआ लेकिन लोगों ने भ्रामक प्रचार को दरकिनार करते हुए इस पर पूरा भरोसा रखा। कोरोना के दौर में लोगों को रोग मुक्त व निरोग रखने में गिलोय, अश्वगंधा आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आयुष पर लोगों के भरोसे को इससे समझा जा सकता है कि करीब दो हजार करोड़ रुपये का कारोबार सिर्फ आयुष काढ़ा का हुआ। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के समय हुए एक सर्वे में 89.9 प्रतिशत लोग आयुष दवाओं का प्रयोग करते पाए गए।
वैद्य डॉ कोटेजा ने कोरोना के दौर में आयुष विभाग की तरफ से किए गए कई अध्ययनों के निष्कर्ष को साझा करते हुए बताया कि आयुष की सफलता पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) भी मुरीद हो गया। डब्लूएचओ गुजरात के जामनगर में अपना सेंटर स्थापित कर रहा है तो इसमें आयुष की महत्वपूर्ण भूमिका है। आयुष मंत्रालय के सचिव डॉ कोटेजा ने कहा कि हाल के दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी रिफॉर्म हुए हैं। इससे आने वाले समय में आयुर्वेद व आयुष के क्षेत्र में सुपर स्पेशलिटी कोर्सेज की भी शुरूआत होगी। उन्होंने बीएएमएस के छात्रों का आह्वान किया कि वे सोच ऊंची रखें, बड़ा स्वप्न देखें और पढ़ाई पूर्ण करने के बाद खुद को डॉक्टर की बजाय वैद्य कहलाना अधिक पसंद करें। साथ ही यह उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले कुछ सालों में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय देश के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक होगा।
केजीएमयू लखनऊ के पूर्व कुलपति प्रो एल.एम. बी. भट्ट ने कहा कि आयुर्वेद का प्रादुर्भाव वैदिक काल में अथर्ववेद में हुआ। आयुर्वेद बीमारियों से रोकथाम एवं बचाव के साथ ही उनके उपचार की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है। यह आयुर्वेद की महत्ता ही है कि इसे हमारी ज्ञान परम्परा और संस्कृति में पंचम वेद के रूप में मान्यता दी गई। प्रो भट्ट ने कहा कि देश की आजादी के बाद से वर्ष 2014 तक समय-समय पर आयुर्वेद के विकास के लिए कुछ कदम उठाए गए। लेकिन, अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ तुलनात्मक रूप से देखें तो कहीं न कहीं आयुर्वेद नीति नियंताओं के सौतेले व्यवहार का शिकार रहा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में तथा 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में आयुर्वेद एवं आयुष के विकास व नवाचार की एक आंधी देखने को मिली। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि 2014 में पीएम मोदी ने केंद्र में अलग आयुष मंत्रालय बनाया तो उत्तर प्रदेश में 2017 में योगी जी के सीएम बनने पर यहां अलग आयुष मंत्रालय देखने को मिला। देश में आयुर्वेद के विकास के लिए 2014 में नेशनल आयुष मिशन की स्थापना की गई। इसके तहत 31 मार्च 2020 तक जिला अस्पताल स्तर पर 497 पीएचसी स्तर पर 7779 तथा सब सेंटर स्तर पर 3922 आयुष केंद्रों की स्थापना की गई।
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