मोदी सरकार में देश की विकास की रफ्तार धीमी है। इसका असर नौकरियों पर भी पड़ रहा है। देश में बेरोजगारों की संख्या रिकार्ड स्तर पर है। सरकार के सारे दावे फेल होते जा रहे हैं। मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल भी शुरू हो चुका है और इस बार भी नौकरियों की किल्लत बरकरार रहने की ही उम्मीद है। इतना ही नहीं, जिस रास्ते अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है उसमें नौकरियों का हाल और भी बुरा होने वाला है।
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अंग्रेजी अखबार द टेलिग्राफ के अनुसार जीएफसीएफ (कुल निश्चित पूंजी निर्माण) में लगातार गिरावट देखी जा रही है। वहीं जीएसटी से उम्मीद के मुताबिक टैक्स कलेक्शन नहीं हो पा रहा है। जबकि कैपिटल एक्सपेंडिचर में भी कमी आई है। इसका असर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। हालांकि मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल से ही किसानों की आय दोगुनी करने और नौजवानों को रोजगार देने का वादा करती आई है। 2019 में पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करते हुए एक बार फिर यह दावा किया था कि 2022 तक हम न्यू इंडिया बनाएंगे और इस दौरान किसानों की आयो दोगुनी होगी तथा नौजवानों को बेहतर अवसर मिलेंगे। लेकिन आंकड़ों की मानें तो ऐसा संभव होता दिख नहीं रहा। जीएफसीएफ में गिरावट के चलते जीड़ीपी की जो वर्तमान हालत है उसकी वजह से निवेश में कमी आई है। निवेश में कमी की वजह से युवाओं के लिए नौकरियों के असवर भी कम हुए हैं।
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मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए टैक्स कलेक्शन को बढ़ाने के लिए कई उपाए किए। लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। सरकार ने जितना टैक्स कलेक्शन का अनुमान लगाया था, आपूर्ति उससे कम हुई। 2018-19 में 14,84,406 करोड़ रुपए तय हुआ था। लेकिन, वास्तिक रूप में यह 13,16,951 रहा। इसका मतलब है कि 1,67,455 करोड़ की टैक्स कलेक्शन में कमी रह गई। इसका मतलब साफ था कि जीएसटी से जिस मद में टैक्स कलेक्शन की अंदाजा लगाया जा रहा था वह नहीं हो पाया। जबकि, 2019 में अंतरिम बजट पेश करते हुए गोयल ने कहा था कि जीएसटी के लागू होने से टैक्स कलेक्शन दायरा बढ़ेगा और इसमें इजाफा भी होगा।
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इतना ही नहीं मोदी सरकार ने खर्चों में भी कमी की है। सरकार ने अपने तय लक्ष्य से 145,813 करोड़ रुपए कम खर्च किए, जिसकी वजह से भी रोजगार के अवसर नहीं बने। जबकि अंतरिम बजट पेश करने के दौरान पीयूष गोयल ने इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर जोर देने की बात कही थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
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