इजरायल पर ईरान के मिसाइल हमलों के बाद मध्यपूर्व में तनाव बढ़ गया है। इस कारण से महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग पर भारतीय कंपनियों को व्यापार में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि ईरान-इजरायल के बीच संघर्ष के चलते कंपनियों को उच्च माल ढुलाई लागत का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि लेबनान में मौजूद ईरान समर्थित हिजबुल्लाह मिलिशिया के यमन में मौजूदा हूती विद्रोहियों के साथ गहरे संबंध हैं, जो कि लाल सागर में ज्यादातर जहाजों पर हमला करने के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने आगे कहा कि इजरायल और ईरान के बीच सीधा संघर्ष भारतीय निर्यातकों के लिए महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग लाल सागर को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है।
लाल सागर क्राइसिस पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुई थी, जब ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों की ओर से इलाके में व्यापार को बाधित करना शुरू किया गया था। इसका भारत के पेट्रोलियम निर्यात पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अगस्त 2024 में पेट्रोलियम निर्यात सालाना आधार पर 37.56 प्रतिशत गिरकर 5.96 अरब डॉलर रहा, जो कि पिछले साल समान अवधि में 9.54 अरब डॉलर था। क्रिसिल रेटिंग्स की हाल में जारी रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में स्वेज नहर के जरिए यूरोप, उत्तर अमेरिका, उत्तर अफ्रीका और मध्य-पूर्व के अन्य देशों के साथ निर्यात करने के लिए कंपनियां लाल सागर का उपयोग करती हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 23 में इस रीजन के जरिए भारत ने अपने 50 प्रतिशत निर्यात किए थे, जिसकी वैल्यू करीब 18 लाख करोड़ रुपये थी। इस रीजन के जरिए होने वाले व्यापार की आयात में हिस्सेदारी 30 प्रतिशत थी, जिसकी वैल्यू 17 लाख करोड़ रुपये थी। वित्त वर्ष 23 में भारत की वस्तुओं के आयात और निर्यात की संयुक्त वैल्यू 94 लाख करोड़ रुपये थी। इस वैल्यू में 68 प्रतिशत और वॉल्यूम में 95 प्रतिशत उत्पादों की शिपिंग समुद्री मांर्गों से ही की गई थी। संघर्ष के चलते कंपनियां पिछले साल नवंबर से लाल सागर के अलावा वैकल्पिक मार्गों से व्यापार कर रही हैं। इससे कंपनियों को सामान पहुंचाने में 15 से 20 दिन का समय अधिक लग रहा है।
Published: undefined
वैश्विक उतार-चढ़ाव के बीच भारत के प्राथमिक बाजार में तेजी का दौर जारी है। सितंबर के आखिरी दिन रिकॉर्ड 15 कंपनियों ने भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) लाने के लिए ड्राफ्ट पेपर जमा कराए हैं। बीते महीने 41 कंपनियों ने आईपीओ लाने के लिए ड्राफ्ट पेपर जमा कराए हैं। यह किसी एक महीने में बाजार नियामक के पास ड्राफ्ट पेपर जमा करने का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
बाजार के जानकारों के मुताबिक, कंपनियों द्वारा बड़ी संख्या में ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) जमा करने की वजह 31 मार्च तक के ऑडिटेड फाइनेंसियल का 30 सितंबर को एक्सपायर होना था। पैंटोमैथ कैपिटल एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक महावीर लुनावत ने कहा, "हमारा अनुमान है कि इस साल 1.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की पूंजी आईपीओ के द्वारा जुटाई जाएगी, क्योंकि आने वाले समय में कई मल्टीनेशनल कंपनियों के पब्लिक इश्यू बाजार में आने वाले हैं।"
जानकारों का कहना है कि भारतीय शेयर बाजार ऑल-टाइम हाई के करीब बने हुए हैं। इसकी वजह अमेरिकी फेड द्वारा सितंबर के मध्य में ब्याज दरों में 50 आधार अंक की कटौती करना है, जिसके कारण बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ा है। घरेलू निवेशकों की ओर से लगातार खरीदारी भी शेयर बाजार में तेजी की बड़ी वजह है। इसके अतिरिक्त जून में जेपी मॉर्गन की ओर से बॉन्ड इंडेक्स में भारत को शामिल किया गया था, जिससे पिछले एक साल में देश में 18 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया है। अब अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती के बाद इसके और अधिक बढ़ने की संभावना है। एनालिस्ट का मानना है कि बॉन्ड यील्ड का कम होना और कर्ज की लागत में कमी के कारण भारत का डेट मार्केट विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक होता जा रहा है। ऐसे में हर महीने 2 से 3 अरब डॉलर का विदेशी निवेश भारत आ सकता है।
Published: undefined
ओला इलेक्ट्रिक के मार्केट शेयर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है और सितंबर में यह गिरकर 27 प्रतिशत हो गया है। इसकी वजह दोपहिया ईवी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का बढ़ना और कंपनी के ईवी स्कूटर में लगातार ग्राहकों को समस्या का सामना करना है। सरकारी पोर्टल वाहन से मिली जानकारी के अनुसार, कंपनी द्वारा पिछले महीने 24,665 इलेक्ट्रिक स्कूटर की बिक्री की गई है। अगस्त में यह आंकड़ा 27,587 यूनिट्स का था। इस दौरान कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 31 प्रतिशत थी। ओला इलेक्ट्रिक का मार्केट शेयर गिरने की वजह बाजार में प्रतिस्पर्धा का बढ़ना है। बड़ी ऑटो कंपनियां जैसे टीवीएस मोटर्स और बजाज ऑटो भी इलेक्ट्रिक दोपहिया सेक्टर में अपने पांव जमाने की कोशिश कर रही है। आंकड़ों के मुताबिक, बजाज ऑटो के इलेक्ट्रिक स्कूटर की बिक्री सितंबर में बढ़कर 19,103 यूनिट्स हो गई है, जो अगस्त में 16,789 यूनिट्स थी।
टीवीएस मोटर्स की ओर से बीते महीने 18,084 यूनिट्स इलेक्ट्रिक स्कूटर बेचे गए थे। अगस्त में यह आंकड़ा 17,649 यूनिट्स पर था। एक अन्य इलेक्ट्रिक दोपहिया कंपनी एथर एनर्जी की बिक्री भी सितंबर में बढ़कर 12,676 यूनिट्स हो गई है। अगस्त में कंपनी द्वारा 10,980 यूनिट्स बेचे गए थे। ओला इलेक्ट्रिक की कम होती बिक्री का असर उसके शेयर पर भी देखने को मिल रहा है। शेयर अपने ऑल-टाइम हाई लेवल 157.40 रुपये से करीब 38 प्रतिशत फिसल चुका है। ओला इलेक्ट्रिक का शेयर 100 रुपये के आसपास है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ओला इलेक्ट्रिक के ईवी में ग्राहकों को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और सर्विस सेंटर से जुड़ी समस्याएं हैं।
Published: undefined
भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) की ओर से फ्यूचर्स और ऑप्शन (एफएंडओ) ट्रेडिंग के नियमों को सख्त कर दिया गया है। अब इस सेगमेंट में कारोबार करने के लिए ट्रेडर्स को पहले के मुकाबले अधिक पैसे खर्च करने होंगे। बाजार नियामक द्वारा अब इंडेक्स डेरिवेटिव में कॉन्ट्रैक्ट साइज की न्यूनतम वैल्यू को 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये कर दिया गया है। साथ ही साप्ताहिक एक्सपायरी को प्रति एक्सचेंज एक इंडेक्स तक सीमित कर दिया है। ऐसे में अब एक एक्सचेंज की ओर से सप्ताह में एक ही एक्सपायरी देखने को मिलेगी। सेबी की ओर से जारी सर्कुलर में कहा गया कि डेरिवेटिव्स में उच्च जोखिम को देखते हुए और मार्केट की वृद्धि के अनुरूप कॉन्ट्रैक्ट के साइज में पुनर्संयोजन यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिभागियों के लिए अपेक्षित मानदंड बने रहें।
बाजार नियामक की ओर से यह कदम रिटेल निवेशकों द्वारा एफएंडओ सेगमेंट लगातार किए जा रहे बड़े नुकसान के कारण उठाया गया है। हाल ही में सेबी की ओर से एक स्टडी जारी की गई थी। इसमें बताया गया था कि बीते तीन वर्षों में 1.10 करोड़ ट्रेडर्स की ओर से संयुक्त रूप से 1.81 लाख करोड़ रुपये का नुकसान किया गया है। इसमें से केवल 7 प्रतिशत ट्रेडर्स ही पैसा कमाने में सफल हुए हैं। इसके कारण बाजार से जुड़े कई लोगों ने एफएंडओ नियमों को सख्त बनाने की बात कही थी। सेबी के इस आदेश के बाद निफ्टी और सेंसेक्स जैसे मुख्य सूचकांकों में डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स का साइज 5 लाख से 10 लाख रुपये से बढ़कर 15 लाख से 20 लाख रुपये हो जाएगा।
नए नियम 20 नवंबर, 2024 से सभी डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स पर लागू हो जाएंगे। भारत में बीते कुछ वर्षों में डेरिवेटिव बाजार तेजी से बढ़ा है। जुलाई में सेबी के नोट में कहा गया था कि भारत के डेरिवेटिव मार्केट ने कैश मार्केट को भी पछाड़ दिया है। मौजूदा समय में कुल वैश्विक डेरिवेटिव ट्रेडिंग में से 30 से 50 प्रतिशत भारत में होती है। आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 20 से लेकर वित्त वर्ष 24 में भारत में कैश मार्केट का टर्नओवर दोगुना हुआ है, जबकि इंडेक्स ऑप्शन का टर्नओवर 12 गुना बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 138 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो कि वित्त वर्ष 20 में 11 लाख करोड़ रुपये था।
Published: undefined
सार्वजनिक क्षेत्र का भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) चालू वित्त वर्ष (2024-25) में 600 नई शाखाएं खोलने की तैयारी कर रहा है। बैंक के चेयरमैन सी एस शेट्टी ने कहा है कि एसबीआई आवासीय टाउनशिप सहित उभरते क्षेत्रों में कारोबार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए देशभर में 600 नई शाखाएं खोलेगा। शेट्टी ने कहा, “हमारे पास शाखा विस्तार की मजबूत योजनाएं हैं...यह मुख्य रूप से उभरते क्षेत्रों पर केंद्रित होगी। बहुत सी आवासीय कॉलोनियां हमारे दायरे में नहीं हैं। चालू वित्त वर्ष में हम लगभग 600 शाखाएं खोलने की योजना बना रहे हैं।”
एसबीआई ने पिछले वित्त वर्ष (2023-24) में 137 नई शाखाएं खोली थीं। इनमें से 59 शाखाएं ग्रामीण क्षेत्र में थीं। एसबीआई की देशभर में मार्च, 2024 तक 22,542 शाखाएं थीं। एसबीआई के देशभर में 65,000 एटीएम और 85,000 बैंकिंग प्रतिनिधि भी हैं। उन्होंने कहा, “हम लगभग 50 करोड़ ग्राहकों को सेवा प्रदान करते हैं और हमें यह कहते हुए गर्व होता है कि हम प्रत्येक भारतीय, और उससे भी महत्वपूर्ण बात, प्रत्येक भारतीय परिवार के बैंकर हैं।” जमाकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक आवर्ती जमा और एसआईपी के संयुक्त उत्पाद सहित नवीन उत्पाद लाने पर विचार कर रहा है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined