अर्थतंत्र

अर्थजगतः स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 4 साल के निचले स्तर पर पहुंचा और सेंसेक्स-निफ्टी ने नया रिकॉर्ड बनाया

इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन विनिर्माता ओला इलेक्ट्रिक और दवा कंपनी एमक्योर फार्मास्युटिकल्स को वित्त जुटाने के लिए बाजार नियामक सेबी से आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने की मंजूरी मिल गई है।

स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 4 साल के निचले स्तर पर पहुंचा
स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 4 साल के निचले स्तर पर पहुंचा फोटोः सोशल मीडिया

स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 4 साल के निचले स्तर पर पहुंचा

स्थानीय शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से स्विस बैंकों में भारतीय व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा जमा धन, 2023 में 70 प्रतिशत की तेज गिरावट के साथ चार साल के निचले स्तर 1.04 अरब स्विस फ्रैंक (9,771 करोड़ रुपये) पर आ गया है। स्विट्जलैंड के केंद्रीय बैंक की ओर से गुरुवार को जारी वार्षिक आंकड़ों के अनुसार, स्विस बैंकों में भारतीय ग्राहकों के कुल धन में लगातार दूसरे वर्ष गिरावट आई है। यह 2021 में 14 साल के उच्चतम स्तर 3.83 अरब स्विस फ्रैंक पर पहुंच गया था। गिरावट का मुख्य कारण बॉन्ड, प्रतिभूतियों और विभिन्न अन्य वित्तीय साधनों के माध्यम से रखे गए धन में तेज गिरावट है।

आंकड़ों के अनुसार, इसके अलावा, ग्राहक जमा खातों में जमा राशि और भारत में अन्य बैंक शाखाओं के माध्यम से रखे गए धन में भी उल्लेखनीय गिरावट आई है। ये स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) को बैंकों द्वारा बताए गए आधिकारिक आंकड़े हैं और ये स्विटजरलैंड में भारतीयों द्वारा रखे गए बहुचर्चित कथित काले धन की मात्रा का संकेत नहीं देते हैं। इन आंकड़ों में वह धन नहीं शामिल है जो भारतीयों, एनआरआई या अन्य लोगों ने तीसरे देश की संस्थाओं के नाम पर स्विस बैंकों में रखा हो सकता है।

एसएनबी द्वारा 2023 के अंत में स्विस बैंकों की ‘कुल देनदारियों’ या उनके भारतीय ग्राहकों को ‘बकाया राशियों’ के रूप में 103.98 करोड़ स्विस फ्रैंक बताए गए हैं। इनमें ग्राहक जमा में 31 करोड़ स्विस फ्रैंक (2022 के अंत में 39.4 करोड़ स्विस फ्रैंक से कम), अन्य बैंकों के माध्यम से रखे गए 42.7 करोड़ स्विस फ्रैंक (111 करोड़ स्विस फ्रैंक से कम), न्यासों या ट्रस्टों के माध्यम से एक करोड़ स्विस फ्रैंक (2.4 करोड़ स्विस फ्रैंक से कम) और बॉन्ड, प्रतिभूतियों और विभिन्न अन्य वित्तीय साधनों के रूप में ग्राहकों को देय अन्य राशियों के रूप में 30.2 करोड़ स्विस फ्रैंक (189.6 करोड़ स्विस फ्रैंक से कम) शामिल हैं। एसएनबी के आंकड़ों के अनुसार, 2006 में कुल राशि लगभग 6.5 अरब स्विस फ्रैंक के रिकॉर्ड उच्चस्तर पर थी। इसके बाद 2011, 2013, 2017, 2020 और 2021 सहित कुछ वर्षों को छोड़कर यह ज्यादातर नीचे की ओर ही रही है।

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सेंसेक्स नए शिखर पर और निफ्टी का भी नया रिकॉर्ड

भारतीय शेयर बाजारों में गुरुवार को तेजी रही और बीएसई सेंसेक्स 141 अंक चढ़कर नये शिखर पर पहुंच गया। एनएसई निफ्टी भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर रहा। रिलायंस इंडस्ट्रीज, आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक जैसी बड़ी कंपनियों के शेयरों में लिवाली से बाजार बढ़त में रहा। कारोबारियों के अनुसार, इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम में स्थिरता ने भी पूंजी बाजार को समर्थन दिया। तीस शेयरों पर आधारित सेंसेक्स में लगातार छठे कारोबारी सत्र में तेजी रही और यह 141.34 अंक यानी 0.18 प्रतिशत की बढ़त के साथ नई ऊंचाई 77,478.93 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान एक समय यह 305.5 अंक चढ़कर 77,643.09 अंक तक चला गया था।

बीएसई सेंसेक्स पिछले छह दिन में 1,022.34 अंक यानी 1.33 प्रतिशत के लाभ में रहा है।नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी भी 51 अंक यानी 0.22 प्रतिशत की बढ़त के साथ रिकॉर्ड 23,567 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान एक समय यह 108 अंक उछलकर 23,624 अंक तक चला गया था। सेंसेक्स बुधवार को 36.45 अंक की बढ़त के साथ 77,337.5 अंक पर बंद हुआ था। जबकि निफ्टी 41.90 अंक की गिरावट के साथ 23,516 अंक पर रहा था।

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सेबी ने ओला इलेक्ट्रिक, एमक्योर फार्मा को आईपीओ लाने की मंजूरी दी

इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन विनिर्माता ओला इलेक्ट्रिक और दवा कंपनी एमक्योर फार्मास्युटिकल्स को वित्त जुटाने के लिए बाजार नियामक सेबी से आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने की मंजूरी मिल गई है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के मुताबिक, इन दोनों ही कंपनियों के आईपीओ संबंधी दस्तावेजों के मसौदे को 10 जून को स्वीकृति मिल गई है। इसका मतलब है कि अब दोनों ही कंपनियां अपने-अपने आईपीओ लाने की दिशा में आगे बढ़ सकती हैं।

ओला इलेक्ट्रिक के प्रस्तावित आईपीओ में 5,500 करोड़ रुपये के नए शेयर जारी करने के अलावा प्रवर्तकों एवं निवेशकों के पास मौजूद 9.52 करोड़ इक्विटी शेयरों की बिक्री पेशकश की जाएगी। बेंगलुरु स्थित ओला इलेक्ट्रिक ने अगस्त, 2021 में अपना पहला ईवी दोपहिया मॉडल पेश किया था। यह इलेक्ट्रिक दोपहिया बनाने के अलावा इनके लिए बैटरी पैक एवं मोटर भी बनाती है। दवा क्षेत्र की कंपनी एमक्योर फार्मास्युटिकल्स के आईपीओ में 800 करोड़ रुपये के नए शेयर जारी करने के साथ प्रवर्तकों के पास मौजूद 1.36 करोड़ इक्विटी शेयरों की भी बिक्री पेशकश की जाएगी। आईपीओ से से जुटाई जाने वाली राशि का इस्तेमाल कर्ज के भुगतान और सामान्य कंपनी कामकाज के लिए किया जाएगा।

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भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू एयरलाइन मार्केट बना

एविएशन सेक्टर में पिछले एक दशक में हुई मजबूत ग्रोथ के कारण अब भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू एयरलाइन बाजार बन गया है। भारत 10 साल पहले 80 लाख सीट के साथ दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा घरेलू एयरलाइन बाजार था। अमेरिका, चीन, ब्राजील और इंडोनेशिया क्रमश: पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर थे। मौजूदा समय में पहले और दूसरे स्थान के साथ अमेरिका एवं चीन के घरेलू एयरलाइन बाजार ही भारत से आगे हैं। ओएजी डेटा के मुताबिक, अप्रैल 2024 में भारत 1.56 करोड़ सीटों की क्षमता के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू एयरलाइन बाजार था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में पिछले 10 साल में सीटों की संख्या 6.9 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ी है। इस दौरान चीन में घरेलू एयरलाइन सीट की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही है। अमेरिका और इंडोनेशिया के घरेलू एयरलाइन बाजार की भी लगभग यही स्थिति रही। ओएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि बड़े घरेलू एयरलाइन बाजार में लो-कॉस्ट कैरियर (एलसीसी) कैपेसिटी शेयर की काफी अहम भूमिका होती है। अप्रैल 2024 में भारतीय घरेलू एयरलाइन बाजार में एलसीसी की हिस्सेदारी 78.4 प्रतिशत रही है, जो पांचों बड़े बाजारों में सबसे अधिक है। पिछले 10 साल में इंडिगो ने 13.9 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ अपना मार्केट शेयर बढ़ाकर 62 प्रतिशत कर लिया है।

वर्ष 2014 में उसकी बाजार हिस्सेदारी 32 प्रतिशत थी। हालांकि, अन्य किसी एयरलाइन की बाजार हिस्सेदारी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। बता दें, नरेंद्र मोदी सरकार का एविएशन सेक्टर पर खास फोकस रहा है। पिछले 10 वर्षों में देश में एयरपोर्ट्स की संख्या 74 से बढ़कर 157 हो गई है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल 19 नवंबर को देश में रिकॉर्ड 4,56,910 यात्रियों ने घरेलू विमान यात्रा की थी, जो कोरोना काल से पहले के औसत से 7.4 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2023 में 91 लाख से ज्यादा विमान यात्रियों ने डिजी यात्रा का लाभ उठाया। इस दौरान 35 लाख से ज्यादा बार डिजी यात्रा ऐप डाउनलोड किया गया।

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देश की सबसे पुरानी सुरदा तांबा खदान में फिर शुरू होगा उत्पादन

देश में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) की सबसे पुरानी तांबा खदानों में से एक झारखंड के मुसाबनी स्थित सुरदा माइंस की चमक एक बार फिर लौटने वाली है। भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि के लीज के लिए क्लीयरेंस दे दी है। माइंस की लीज खत्म होने की वजह से यह एक अप्रैल 2020 से पूरी तरह बंद हो गयी थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गए थे। खदान को पुनः चालू करने के लिए भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पास लंबे समय से आवेदन लंबित था। वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की पहल पर इसे हरी झंडी दे दी गई है। इसके लीज को रिन्यू करने का प्रस्ताव झारखंड सरकार के कैबिनेट ने पहले ही पारित कर दिया था। उम्मीद की जा रही है अगले एक महीने के भीतर इस खदान में उत्पादन फिर से शुरू हो जायेगा।

एक अप्रैल 2020 को मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में ताला लग गया था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गयी थी। इससे न सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेकार हो गये थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गये। बेकारी और फाकाकशी के चलते कई कामगारों और उनके परिजनों ने दम तोड़ दिया। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद के लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह पैसा रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक भी खत्म हो गयी।

इस खदान को दोबारा चालू कराने के लिए लड़ाई लड़ने वाले स्थानीय जेएमएमझा विधायक रामदास सोरेन का कहना है कि इस बंदी की वजह से पूरे इलाके में हजारों लोगों की रोजी-रोटी छिन गयी थी। बता दें कि पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप ऑफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। तब इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आइसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था। मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। ब्रिटिश कालीन दस्तावेजों के मुताबिक मुसाबनी की खदानों की कमाई से ही एचसीएल की 4 नई इकाइयां राजस्थान के खेतड़ी, गुजरात के झगरिया, मध्यप्रदेश के मलाजखंड और महाराष्ट्र के तलोजा में खोली गयी थीं।

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