“मेरे जैसे डेढ़ सौ लोगों की नौकरी पर तलवार लटक रही है। हमें मेन प्रोजेक्ट से हटाकर ऐसे प्रोजेक्ट्स में डाला गया है, जो पहले से बुरी स्थिति में है। कुछ दिनों पहले इन प्रोजेक्ट्स में डालते समय चेतावनी दी गई थी कि अगर दो महीने में प्रोजेक्ट का काम पटरी पर नहीं आया तो आप अपने लिए कहीं और नौकरी तलाश सकते हैं।”
गुरुग्राम में गूगल इंडिया के जीमेल एकाउंट का ट्रांजेक्शन देखने वाली कंपनी एक्सेंचर सर्विस इंडिया के एक कर्मी ने बहुत कुरेदने पर ये बातें बताईं। गूगल के इस प्रोजेक्ट में वह और उसके साथ 270 लोग काम कर रहे थे। मंदी बताकर अब एक्सेंचर ने 150 लोगों को गूगल के एडवड्र्स, एमेजॉन सहित कुछ ऐसे प्रोजेक्ट्स में डाल दिया है जो एक तरह से ठप पड़ा है। यानी, यहां काम करने वालों की नौकरी बस जाने ही वाली है।
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यह सूचना ऐसे समय बाहर आई है जब केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर निरंतर दावा कर रहे हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर मंदी का कोई असर नहीं है। सीआईटी यू के प्रदेश अध्यक्षसतबीर सिंह कहते हैं कि यह शुरुआत भर है। कुछ दिनों बाद सभी क्षेत्रों से ऐसी खबरें आने लगेंगी।’ उनका कहना है कि श्रमिकों को ऐसी कठिन परिस्थितियों से निकालने के लिए श्रमिक संगठनों ने आंदोलन चलाकर सरकार पर दबाव बनाया हुआ है।
इस मंदी ने हरियाणा के तीन औद्योगिक शहरों- फरीदाबाद, गुरुग्राम और पानीपत की चमक बिल्कुल फीकी कर दी है। निचले स्तर के कर्मचारी धड़ा-धड़ यह कहकर घर भेजे जा रहे हैं कि स्थिति बेहतर होते ही उन्हें वापस बुला लिया जाएगा। अलग बात है कि नोटबंदी और जीएसटी की मार से प्रभावित होकर घर भेजे गए कपड़ा मिलों में काम करने वाले तकरीबन एक लाख मजदूर अब तक वापस नहीं बुलाए गए हैं।
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इन तीन शहरों- गुरूग्राम, फरीदाबाद एवं पानीपत के ऑटो, गारमेंट-टेक्सटाइल, रियल एस्टेट और आईटी सेक्टर में लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। गुरुग्राम में मारुति सुजुकी, हीरो होंडा और हीरो मोटोकॉप के सात मदर प्लांट हैं। इसके अलावा करीब साढ़े तीन सौ वेंडर कंपनियां इनके लिए पार्ट-पुर्जे बनाती हैं। साथ ही इन वेंडर के नीचे भी कई छोटी वेंडर कंपनियां काम करती हैं। मदर प्लांट से उत्पादित वाहनों को लाने-ले जाने के लिए दो सौ के करीब ट्रांसपोर्टर कंपनियां भी इनसे जुड़ी हैं।
फरीदाबाद में एसकॉट्र्स, जेसीबी और एशियन कंस्ट्रक्शन की मदर कंपनियां हैं, जहां ट्रैक्टर, अर्थमूवर और क्रेन का निर्माण होता है। इनके लिए भी कई वेंडर और ट्रांसपोर्ट कंपनियां काम करती हैं। मगर मंदी की मार ने ऑटो सेक्टर को ही अधमरा कर दिया है। एस्कॉट्र्स में ट्रैक्टर के उत्पादन में 35 प्रतिशत की गिरावट आई है। इतनी ही गिरावट का आंकड़ा मारुति और इसके आसपास हीरो होंडा का है। पिछले साल जुलाई में एसकॉट्र्स ने 7409 ट्रैक्टरों का निर्माण किया था जबकि इस वर्ष इस महीने में मात्र 4899 ट्रैक्टर बने हैं।
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महिंद्रा ट्रैक्टर की बिक्री करने वाले देव ट्रैक्टर्स के देवेंद्र चौहान कहते हैं कि जब बिक्री में गिरावट आएगी तो उत्पादन कम होगा ही। इसके चलते इन कंपनियों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े तकरीबन 40 हजार लोग बेरोजगार हो गए। ऑटो पार्ट्स बनना भी कम हो गया। कई छोटी कंपनियों के यहां ताला लग गया है। कलपुर्जे बनाने वाली कंपनी फ्रेंड्स ऑटो के अमरजीत चावला कहते हैं कि जब हमारे पास काम नहीं होगा तो आगे किसी को काम कैसे देंगे।
मारुति कामगार संघ के अध्यक्ष कुलदीप जांघु का कहना है कि ऑटो सेक्टर में मंदी आने से स्थायी कर्मियों को भले खास फर्क नहीं पड़ा है, पर कांट्रैक्ट लेबर की नौकरियां सर्वाधिक छिन रही हैं। उनके मुताबिक, “मारुति हर साल सात महीने के लिए आईटीआई और दूसरे संस्थानों से 8,000 हुनरमंद कर्मियों की भर्ती करती थी। उत्पादन में गिरावट आने से यह संख्या घटकर 5,000 रह गई है। उत्पादन में गिरवट के चलते इस सितंबर में दो दिन प्लांट में छुट्टी रखी गई, जबकि अमूमन ऐसा होता नहीं है। त्योहारी सीजन करीब होने के बावजूद प्लांट में छुट्टी रखी जाए, इसका मतलब है कि समस्या गंभीर है।”
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इन तीनों औद्योगिक शहरों में गारमेंट-टेक्सटाइल की भी स्थिति बेहतर नहीं है। केवल गुरुग्राम में 3,000 के करीब गारमेंट-टेक्सटाइल कंपनियां हैं जिनमें से 900 गारमेंट निर्यात का काम करती हैं। इस सेक्टर में मंदी से शहर के लक्ष्मण विहार, बसई, राजीव नगर आदि छोटी कॉलोनियों में किराये पर रहने वाले अधिकांश लोग अपने घरों को लौट गए हैं। ऐसे घरों के दरवाजे पर मकान मालिकों ने ‘टु-लेट’ के बोर्ड टांग दिए हैं। तीनों शहरों में गारेमेंट-टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज से करीब 10 लाख लोगों को डायरेक्ट-इनडायरेक्ट रोजगार मिला हुआ था। मंदी और अन्य वजहों से इनमें से तीन चौथाई लोग बेरोजगार हो गए हैं।
प्रदेश के औद्योगिक शहरों के कारोबार पर निगाहें रखने वाले पत्रकार यशलोक सिंह कहते हैं कि मंदी की मार सबसे अधिक प्रदेश के गारमेंट इंडस्ट्रीज पर पड़ी है। इस सेक्टर में काम करने वालों की संख्या दूसरे सेक्टरों से अधिक है और नौकरियां भी इनकी अधिक गई हैं। वह कहते हैं कि ऐसे लोग नौकरी जाने के बाद अन्य छोटे-मोटे धंधे में लग गए हैं, इसलिए इनको लेकर कहीं से विरोध के स्वर नहीं उठ रहे हैं।
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हालांकि, मंदी की मार से गुरुग्राम और फरीदबाद का रियल एस्टेट बाजार भी पस्त पड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंदी के चलते दिल्ली-एनसीआर में 527 प्रोजेक्ट लेट हो गए, जिससे 3,18,302 लोगों को समय पर फ्लैट नहीं मिल पाया है। गुरुग्राम में लेट होने वाले प्रोजेक्टस की संख्या 159 और फरीदाबाद में 12 है। कंस्ट्रक्शन कंपनी ‘तुलिप’ के प्रवीण शर्मा बड़ी साफगोई से कहते हैं कि जब हमारा माल ही नहीं बिकेगा तो हम किसी और को कैसे तनख्वाह देंगे। उनके मुताबिक, “रियल एस्टेट में मंदी के चलते पिछले एक साल में 50 फीसदी लोगों की नौकरियां गई हैं। तैयार फ्लैट बेचने में मुश्किल आ रही है, इसके कारण केवल उन लोगों को रोजगार मिला हुआ है जिससे कंपनी का काम चल सके।”
केंद्र और हरियाणा सरकार अब तक दावा करती रही है कि वैश्विक मंदी के चलते देश को आर्थिक संकट झेलना पड़ रहा है। मगर हरियाणा के ऑटो, गारमेंट, रियल एस्टेट सेक्टर के विशेषज्ञ और श्रमिक संगठनों के पदाधिकारी इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनकी मानें तो सारी मुसीबतों की जड़ खुद सरकार है। ऑटोमोटिव एवं जनरल ट्रेडर्स वेल्फेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष निरंजन पोद्दार कहते हैं कि ट्रैक्टर पर लगे 5.25 प्रतिशत वैट को बढ़ाकर 12 प्रतिशत जीएसटी और स्पेयर पार्ट्स पर लगे 13.25 प्रशित वैट को बढ़ाकर 28 प्रतिशत करने से मार्केट औंधे मुंह गिर गया। उत्पाद महंगे हो गए। सामान की खरीदारी कम हो गई है।
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ट्रैक्टर की बिक्री से जुड़े देवेंद्र चैहान कहते हैं कि सरकार किसानों की आमदनी दोगुना करने की बात कहती है जबकि हकीकत है कि सरकारी बैंकों से किसानों को आसानी से लोन तक नहीं मिल रहा है। ऐसे में ट्रैक्टर की बिक्री कैसी बढ़ेगी। यही हाल गारमेंट सेक्टर का है। सरकार ने अगस्त में गारमेंट इंडस्ट्री को मर्केंटाइल एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया स्कीम (एमईआईएस) के तहत मिलने वाली तमाम सुविधाएं वापस ले ली हैं। इसके अलावा बांग्लादेश से आने वाले गारमेंट को ड्यूटी फ्री कर दिया गया है। इसकी वजह से गारमेंट-टेक्सटाइल उद्योग की हालत पतली हो गई है।
उद्योग विहार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिमेष सक्सेना कहते हैं कि जीएसटी रिफंड में दिक्कत आने के साथ बैंकों ने आसान शर्तों पर कर्ज देना भी बंद कर दिया है। टेक्सटाइल मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन के अनिल जैन कहते हैं, “इस मामले में कपड़ा और वाणिज्य मंत्रालय को अवगत कराने का भी कोई असर नहीं है। दूसरी तरफ वियतनाम, बांग्लादेश, चीन और श्रीलंका से उन्हें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतर चुनौतियां मिल रही हैं। इन देशों में भारत के अनुपात में लेबर सस्ता है और सरकार की ओर से सहूलतें भी अधिक दी जा रही हैं।”
रियल एस्टेट कारोबारियों का कहना है कि केंद्र की ओर से सहयोग नहीं मिलने के चलते नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कॉरपोशन ने उन्हें लोन देने से हाथ खींच लिया है। इसके अलावा लेट होने वाले प्रोजेक्ट के पैसे ग्राहकों को लौटाने को लेकर चौतरफा दबाव बनाया जा रहा है। ऐसे यह सेक्टर धन की तंगी का शिकार हो गया है।
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