मोदी सरकार के लिए अपने दूसरे कार्यकाल के सिर्फ आठ महीनों के अंदर ही आर्थिक मामलों और महंगाई के मोर्चे पर अच्छी खबर नहीं है। आईएएनएस-सीवोटर बजट ट्रैकर के निष्कर्षो से पता चला है कि देश के अधिकतर लोग दुखी हैं, क्योंकि उनकी आय कम हो रही है और घरेलू खर्च लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण और केंद्रीय बजट की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लिए वर्ष 2020 के प्रमुख आर्थिक कार्यक्रम के लिए चिंता के कई कारण भी हैं।
आईएएनएस-सीवोटर बजट ट्रैकर में यह बात सामने आई है कि पिछले एक साल के दौरान और 2015 से मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद सभी मानकों पर लोगों का जीवन बदतर हुआ है। सभी आर्थिक मापदंड खराब स्थिति में रहे और सर्वेक्षण में शामिल अधिकतर उत्तरदाताओं में इनके प्रति निराशा देखने को मिली है।
यह निष्कर्ष ऐसे समय में आया है, जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट जारी है, निवेश में तेजी नहीं आ रही, जांच एजेंसियां नए घोटाले उजागर कर रही हैं और व्यापार में भी वृद्धि नहीं हो रही है, जिससे उपभोक्ता नाराज हैं। इसके साथ ही महंगाई के चलते लोगों को अपना घर चलाना मुश्किल हो रहा है। यह मामला और भी बदतर इसलिए है, क्योंकि 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार विकास, रोजगार और समृद्धि के वादों के साथ सत्ता में आई थी और दूसरे कार्यकाल में देश आर्थिक मुद्दों पर सबसे खराब स्थिति में पहुंच गया है।
यह सर्वेक्षण जनवरी 2020 के तीसरे और चौथे सप्ताह में आयोजित किया गया, जिसके लिए देशभर के कुल 4292 लोगों से बातचीत की गई। 2020 में 72.1 फीसदी या लगभग तीन चौथाई उत्तरदाताओं ने कहा कि महंगाई अनियंत्रित हो गई है और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कीमतें बढ़ गई हैं। इस मामले में 2019 में 48.3 फीसदी लोगों की यह राय थी, जबकि मोदी के प्रभार संभालने के एक साल बाद 2015 में महज 17.1 फीसदी लोगों की इस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली थी।
केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को नकारते हुए 48.4 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि आम आदमी के लिए जीवन की समग्र गुणवत्ता खराब हुई है। जबकि 2019 में 32 फीसदी और 2014 में 54.4 फीसदी लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी।
सर्वे के दौरान लोगों से सवाल पूछा गया कि क्या उनके जीवन की समग्र गुणवत्ता में कोई सुधार आएगा या नहीं। इस पर महज 37.4 फीसदी लोगों ने माना कि उनके जीवन में सुधार आएगा। इस मामले में 2019 के मुकाबले काफी गिरावट दर्ज की गई है, क्योंकि उस समय 56.6 फीसदी उत्तरदाताओं ने बेहतर जीवन की उम्मीद की थी। इसके अलावा कुल 43.7 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि उनकी आय बराबर रही, लेकिन खर्च बढ़ गए। पिछले वर्ष 25.6 फीसदी लोगों ने यही जवाब दिया था।
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आम आदमी अब महंगाई की मार और समग्र आर्थिक मंदी महसूस कर रहा है। आईएएनएस-सीवोटर सर्वेक्षण के अनुसार, कुल 65.8 फीसदी उत्तरदाता मानते हैं कि वे हाल के दिनों में अपने दैनिक खर्चो के प्रबंधन में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। आईएएनएस-सीवोटर सर्वेक्षण के अनुसार, बजट पूर्व किए गए इस सर्वेक्षण में आर्थिक पहलुओं पर मौजूदा समय की वास्तविकता और संकेत उभरकर सामने आए हैं। क्योंकि वेतन में वृद्धि नहीं हो रही, जबकि खाद्य पदार्थो सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले कुछ महीनों में बढ़ी हैं। गौरतलब है कि पिछले साल जारी हुई बेरोजगारी दर 45 सालों की ऊंचाई पर है।
दिलचस्प बात यह है कि 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय पर भी लगभग 65.9 फीसदी लोगों ने माना था कि वे अपने खर्चो का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं। हालांकि 2015 की अपेक्षा लोगों का मूड अभी नरम है। साल 2015 में लगभग 46.1 फीसदी लोगों ने महसूस किया था कि वे अपने दैनिक खर्चो का प्रबंध करने के लिए दबाव महसूस कर रहे हैं।
चिंताजनक बात यह है कि चालू वर्ष के लिए लोगों के नकारात्मक दृष्टिकोण में काफी वृद्धि देखी जा रही है। इससे पता चलता है कि लोग 2020 में अपने जीवन की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं देख रहे हैं, क्योंकि वे अर्थव्यवस्था के बेहतर होने की संभावना और हालात में सुधार को लेकर नकारात्मक बने हुए हैं।
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 30 फीसदी उत्तरदाताओं (लोगों) को लगता है कि खर्च बढ़ गया है, मगर फिर भी वे प्रबंधन कर पा रहे हैं। यह संख्या 2019 की तुलना में बड़ी गिरावट है, जब 45 फीसदी से अधिक लोगों ने महसूस किया था कि वे खर्च बढ़ने के बावजूद प्रबंधन करने में सक्षम हैं।
इसके अलावा 2.1 फीसदी लोगों ने माना कि उनके व्यय में गिरावट आई है। जबकि इतने ही लोगों ने इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, खाद्य कीमतों में बड़े पैमाने पर वृद्धि के कारण दिसंबर में खुदरा महंगाई दर 65 महीनों में 7.35 फीसदी के उच्च स्तर को छू गई।
सर्वे में शामिल 4,292 लोगों में से 43.7 फीसदी लोगों ने एक प्रश्न के जवाब में बताया कि उनकी आय एक समान रही और व्यय बढ़ गया, जबकि अन्य 28.7 फीसदी लोगों ने यहां तक कहा कि उनके व्यय तो बढ़े ही हैं, मगर साथ ही उनकी आय में भी गिरावट आई है।
यह सर्वेक्षण एक फरवरी को पेश होने वाले केंद्रीय बजट से पहले सरकार की आंखें खोलने का काम कर रहा है। सर्वेक्षण जनवरी 2020 के तीसरे और चौथे सप्ताह में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 11 राष्ट्रीय भाषाओं में किया गया है।
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बजट आने में सिर्फ दो दिन बाकी है ऐसे में सी वोटर के सर्वे में 48.4 फीसदी लोगों ने माना है कि आम आदमी के समग्र जीवन में बीते एक साल में 'गिरावट' आई है। ऐसे में भारी उम्मीद है कि मोदी सरकार जारी मंदी को मात देने के उपायों के साथ आ सकती है, जो अर्थव्यवस्था को पंगु बनाती प्रतीत हो रही है।
सी वोटर ट्रैकर सर्वे सभी वर्गो के 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के सीएटीआई साक्षात्कार पर आधारित है। ट्रैकिंग पोल का सैंपल साइज 4,292 है और ट्रैकिंग पोल फील्ड का काम जनवरी 2020 के तीसरे व चौथे हफ्ते में किया गया।
कुल उत्तरदाताओं में से 28.8 फीसदी ने जवाब दिया कि आम आदमी के जीवन की गुणवत्ता में एक साल में 'सुधार' आया है, जबकि 21.3 फीसदी ने कहा कि यह 'एक जैसी ही बनी रही' और 1.4 फीसदी ने कहा कि वे 'नहीं जानते/ कह नहीं सकते।'
जब सीवोटर ट्रैकर सर्वे 2019 से तुलना की गई तो 41.7 फीसदी लोगों ने कहा था कि आम आदमी की समग्र जीवन गुणवत्ता में बीते एक साल में 'सुधार' हुआ है, 32 फीसदी ने कहा कि इसमें 'गिरावट' आई, 25.2 फीसदी ने कहा कि यह 'एक जैसी रही' जबकि 1.1 फीसदी ने कहा कि वे 'नहीं जानते/कह नहीं सकते।'
इसी तरह के एक आंकड़े की तुलना सीवोटर ट्रैकर ने 2015 से की तो खुलासा हुआ कि कुल 39.3 फीसदी लोगों ने कहा कि एक साल में आम आदमी के जीवन की गुणवत्ता में 'सुधार' हुआ है। 33.9 फीसदी ने कहा कि यह 'एक जैसा रहा', जबकि 24.6 फीसदी ने कहा कि 'गिरावट' आई है और 2.2 फीसदी ने कहा कि वे 'नहीं जानते/कह नहीं सकते।'
कई विकल्पों में केंद्र आयकर स्लैब बढ़ाने पर विचार कर सकता है। यह मुद्दा आम आदमी को प्रभावित करता है। केंद्र कर बचत के विकल्प के तौर पर 'इंफ्रास्ट्रक्चर बांड' ला सकता है। इन पर ध्यान देकर वह कम खपत के मुद्दे पर विशेष ध्यान दे सकता है। केंद्रीय बजट 2020 एक फरवरी को पेश होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट 2020 संसद में सुबह 11 बजे एक फरवरी को पेश करेंगी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बजट में सुस्त होगी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने व खपत को बढ़ाने पर जोर होगा। गौरतलब है कि इस वर्ष का बजट शनिवार को आएगा। स्टाक एक्सचेंज व संसद जो आम तौर पर व्यवसाय व सप्ताहांत पर बंद रहते हैं, वे एक फरवरी (शनिवार) को बजट पेश होने की वजह से खुले रहेंगे।
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तेल विपणन कंपनियों ने एक दिन के विराम के बाद गुरुवार को फिर पेट्रोल और डीजल के दाम में बड़ी कटौती की है। पेट्रोल का दाम 23-25 पैसे प्रति लीटर घट गया है। डीजल के दाम में भी 22-24 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई है।
उधर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में भी नरमी का रुख बना हुआ था। इंडियन ऑयल की वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली, कोलकता, मुंबई और चेन्नई में पेट्रोल का दाम गुरुवार को घटकर क्रमश: 73.36 रुपये, 75.99 रुपये, 78.97 रुपये और 76.19 रुपये प्रति लीटर हो गया।
वहीं, चारों महानगरों में डीजल की कीमत भी घटकर क्रमश: 66.36 रुपये, 68.72 रुपये, 69.56 रुपये और 70.09 रुपये प्रति लीटर हो गई है। दिल्ली और मुंबई में पेट्रोल का दाम 24 पैसे जबकि कोलकाता में 23 पैसे और चेन्नई में 25 पैसे प्रति लीटर घट गया है। वहीं, डीजल दिल्ली और कोलकाता में 22 पैसे जबकि मुंबई में 23 पैसे और चेन्नई में 24 पैसे प्रति लीटर सस्ता हो गया है।
चीन में कोरोनावायरस का कहर गहराने और इसकी चपेट में आकर मरने वालों की संख्या बढ़कर 170 हो जाने के कारण कच्चे तेल में फिर गिरावट आई है। कच्चे तेल के दाम में गिरावट की एक और वजह यह है कि अमेरिका में बीते सप्ताह तेल के भंडार में इजाफा हुआ है। अमेरिकी एजेंसी एनर्जी इन्फोरमेशन एडमिनिस्ट्रेशन की बुधवार की रिपोर्ट के अनुसार, बीते सप्ताह अमेरिका में तेल के भंडार में 35 लाख बैरल का इजाफा हुआ।
अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर गुरुवार को ब्रेंट क्रूड के अप्रैल डिलीवरी अनुबंध में पिछले सत्र के मुकाबले 1.02 फीसदी की नरमी के साथ 58.31 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था। वहीं, अमेरिकी लाइट क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) का मार्च अनुबंध पिछले सत्र से 0.96 फीसदी की गिरावट के साथ 52.82 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा
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