अर्थतंत्र

नोटबंदी से फायदे के बाद भी बैंकों की हालत खराब क्यों है?

केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम से सबसे ज्यादा फायदा बैंकिंग क्षेत्र को हुआ है। बावजूद इसके देश के वित्त मंत्री को पिछले दिनों दो लाख करोड़ से ज्यादा की आर्थिक मदद बैंकों को देने की घोषणा करनी पड़ी।

फाइल फोटो: Getty Images
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केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम से सबसे ज्यादा फायदा बैंकिंग क्षेत्र को हुआ है। दिए हुए कर्ज वापस नहीं होने की वजह से संकट से जूझ रहे बैंकिंग क्षेत्र को नोटबंदी से बड़ी राहत मिली, लेकिन ग्राहकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके देश के वित्त मंत्री ने पिछले दिनों दो लाख करोड़ से ज्यादा की आर्थिक मदद बैंकों को देने की घोषणा की। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश के बैंकों की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि जनता को परेशानी में डाल कर की जाने वाली मदद के बावजूद वह उबर नहीं पा रही है?

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के वरिष्ठ प्रबंधक एस. श्रीनिवास राव ने बताया, "नोटबंदी हमारे लिए फायदेमंद रहा, नए खातों की संख्या में इस दौरान 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और 40 फीसदी ग्राहक इंटरनेट या मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करने लगे, जिससे उनका नकदी निकालने या अन्य लेन-देन करने के लिए बैंक की शाखाओं में आना कम हो गया।"

बैंकों ने इस दौरान क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड की मांग और ऑनलाइन लेनदेन में काफी तेजी दर्ज की। नोटबंदी के दौरान बैंकों के सामने नकदी की बाढ़ आ गई और कई संदिग्ध कर्जो का भुगतान भी इस दौरान आसानी से मिल गया।

हालांकि बैंकों को नोटबंदी से जो फायदा मिला था, वह 1 जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर लागू होने से गायब हो गया। क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई, बैंक के ग्राहकों का कारोबार घट गया, जिससे कर्जो की मांग भी घट गई।

वैसे नोटबंदी से बैंकों को भी एक खास तरह की परेशानी झेलनी पड़ी थी। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा की तो उसके बाद बैंक के आगे नोट जमा करने/बदलने के लिए हजारों ग्राहकों की लाइन लग गई थी, और बैंक कर्मचारियों और ग्राहकों के बीच युद्ध के मैदान जैसे हालात बन गए थे।

राव कहते हैं, "उन 50 दिनों के दौरान के दुखद समय को भूलना ही बेहतर है। नोट बदलने के लिए हमारे पास नए नोटों की आपूर्ति बहुत सीमित हो रही थी और ग्राहकों की लाइन लगी थी।"

कर्नाटक बैंक की औद्योगिक वित्त शाखा के प्रबंधक सदानंद कुमार ने को बताया, "हम दोहरे दबाव में थे, ग्राहकों की तरफ से भारी दबाव था, तो प्रबंधन की तरफ से सीमित संसाधनों में ग्राहकों को सेवा मुहैया कराने का दबाव था।"

नोटबंदी से बैंक खातों में जमा रकम में बढ़ोतरी हुई, जिससे बैंकों को बढ़ते जा रहे फंसे हुए कर्जो (एनपीए) के लिए छूट आदि देने में सहूलियत हुई।

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