केंद्र की मोदी सरकार ने 2014 से 2019 तक के बीच गरीबी और बेरोजगारी के आंकड़ों को छुपाने का इंतजाम कर लिया है। वर्ष 2019 यानी अगले लोकसभा चुनावों तक देश में गरीबी का आंकड़ा नहीं होगा। गरीबी और रोजगार की स्थिति पर परदा डाल दिया गया है, ताकि भ्रम बना रहे। ऐसा पहली बार किया जा रहा है।
2019 में जब मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों को हमारे ऊपर थोप रही होगी, तब उनकी सच्चाई को पता करने लिए हमारे पास कोई आंकड़ा नहीं होगा। सिर्फ गरीबी ही नहीं बेरोजगारी का भी कोई सरकारी आंकड़ा देश के पास नहीं होगा। यानी एक तरह से अर्थव्यवस्था को नापने के लिए जो थर्मामीटर जरूरी है, वही सरकार ने गायब कर दिया है।
Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST
विकास के भ्रम को बरकरार रखने और लोगों में बढ़ रहे असंतोष को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय सैंपल सर्वे को शुरू ही नहीं किया गया है। न रहेंगे आंकड़े और न ही मचेगा शोर, की तर्ज पर अर्थव्यवस्था के मूल्यांकन को भोतरा करने की बड़ी साजिश रची जा रही है।
Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST
हाल यह है कि देश के पास 2019 के बाद ही गरीबी और बेरोजगारी के आंकड़े होगे। इन आंकड़ों को जुटाने और उनकी अवधि में भी रद्दोबदल करने की तैयारी है। ऐसा करने से आपके पास पहले से वर्तमान और भविष्य की तुलना करने का कोई आधार ही नहीं रह जाएगा। जैसा सकल घरेलू उत्पाद के मूल्यांकन (जीडीपी) में किया जा रहा है।
Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST
गरीबी-रोजगार की स्थिति के बारे में सबसे प्रमाणिक सरकारी आंकड़ा मिलता है नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) से। इसी से अर्थव्यवस्था की स्थिति का जमीनी हिसाब मिलता है, और उसी के आधार पर आगे की सरकारी योजनाओं को बनाने की परंपरा रही है। यह सर्वे यह हर पांच साल में सरकार कराती है, जरूरत पड़ने पर कई बार बीच में भी हुआ है।
Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST
वर्ष 2016-2017 में एनएसएस का सर्वे होना था, जो नहीं कराया गया। चूंकि पिछला सर्वे 2011-12 में हुआ था, इसलिए 2016-17 में होना चाहिए था। वजह साफ है, अर्थव्यवस्था का हालत खराब है और वर्ष 2014 के बाद से गरीबी-बेरोजगारी में भीषण इजाफा हो रहा है, लिहाजा इस सर्वे की प्रक्रिया को ही सरकार ने शुरू नहीं किया।
श्रम मंत्रालय द्वारा कराए गए 1 मार्च 2014-15 जुलाई 2015 के बीच के सर्वे के मुताबिक करीब डेढ़ करोड़ नौकरियां कम हुई हैं। तिमाही उद्यमी सर्वे का विश्लेषण करके पता चलना है कि 2009-2014 में जहां हर वर्ष 6 लाख नौकरियां मिली थीं, वहीं 2014-16 में महज 1.3 लाख ही हुई हैं।
Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST
सिर्फ इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने गरीबी रेखा का पुर्निधारण नहीं किया। वर्ष 2014 में रंगराजन कमेटी ने गरीबी रेखा पर अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी थी। जिसे केंद्र सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस रिपोर्ट को न तो संसद में पेश किया और न ही नए आंकड़ों का संज्ञान दिया। इस समय एक तरह से देश के पास 2011-12 में तेंदुलकर समिति के ही गरीबी रेखा संबंधी आंकड़े हैं। रंगराजन समिति ने तेंदुलकर समिति से मतभेद जाहिर करते हुए कहा था कि इतने कम लोगों को शामिल किया गया है, जो सही नहीं है। 2017 में भी देश में गरीबी रेखा का कोई नया मूल्यांकन नहीं है।
मोदी सरकार की आंकड़ों की बाजीगरी करने और आंकड़ों को छुपाने से अर्थशास्त्रियों को गंभीर चिंता हो रही है। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के प्रो. हिमांशू ने बताया :
Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST
“अर्थव्यवस्था बुरी तरह से हांफ रही है, गंभीर संकट में है। ऐसे में सरकार गरीबी और बेरोजगारी संबंधी आंकड़ों को जानबूझ कर छिपाने की कोशिश कर रही है। जबकि करना इसका उलट चाहिए था, जैसा यूपीए सरकार-1 ने किया था।“
नेशनल स्टेटिस्टिकल कमीशन के पूर्व चेयरमैन अर्थशास्त्री प्रनब सेन ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई की आंकड़ों को छिपाकर या गलत ढंग से जुटाकर केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था को गंभीर संकट में डाल चुकी है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार उस डॉक्टर की तरह कर रही है, जिसे बीमारी दिखाई दे रही है, लेकिन वह अपनी छवि बचाने के लिए कह रहा है कि मरीज स्वस्थ है।
Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST
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Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST