देश दुनिया

एक्सक्लूसिव : 2019 से पहले मोदी सरकार नहीं बताएगी गरीबों और बेरोजगारों की संख्या 

मोदी सरकार ने 2014 से 2019 तक गरीबी और बरोजगारी के आंकड़ों को छिपाने का इंतजाम कर लिया है। वर्ष 2019 यानी अगले लोकसभा चुनावों तक पता नहीं लगेगा कि देश में गरीबी और बेरोजगारी का आंकड़ा क्या है?

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images मुंबई में एक जॉब फेयर के दौरान नौकरी के लिए लगी लोगों की लंबी लाइन

केंद्र की मोदी सरकार ने 2014 से 2019 तक के बीच गरीबी और बेरोजगारी के आंकड़ों को छुपाने का इंतजाम कर लिया है। वर्ष 2019 यानी अगले लोकसभा चुनावों तक देश में गरीबी का आंकड़ा नहीं होगा। गरीबी और रोजगार की स्थिति पर परदा डाल दिया गया है, ताकि भ्रम बना रहे। ऐसा पहली बार किया जा रहा है।

2019 में जब मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों को हमारे ऊपर थोप रही होगी, तब उनकी सच्चाई को पता करने लिए हमारे पास कोई आंकड़ा नहीं होगा। सिर्फ गरीबी ही नहीं बेरोजगारी का भी कोई सरकारी आंकड़ा देश के पास नहीं होगा। यानी एक तरह से अर्थव्यवस्था को नापने के लिए जो थर्मामीटर जरूरी है, वही सरकार ने गायब कर दिया है।

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

विकास के भ्रम को बरकरार रखने और लोगों में बढ़ रहे असंतोष को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय सैंपल सर्वे को शुरू ही नहीं किया गया है। न रहेंगे आंकड़े और न ही मचेगा शोर, की तर्ज पर अर्थव्यवस्था के मूल्यांकन को भोतरा करने की बड़ी साजिश रची जा रही है।

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

फोटो : Getty Images

हाल यह है कि देश के पास 2019 के बाद ही गरीबी और बेरोजगारी के आंकड़े होगे। इन आंकड़ों को जुटाने और उनकी अवधि में भी रद्दोबदल करने की तैयारी है। ऐसा करने से आपके पास पहले से वर्तमान और भविष्य की तुलना करने का कोई आधार ही नहीं रह जाएगा। जैसा सकल घरेलू उत्पाद के मूल्यांकन (जीडीपी) में किया जा रहा है।

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

फोटो : Getty Images

गरीबी-रोजगार की स्थिति के बारे में सबसे प्रमाणिक सरकारी आंकड़ा मिलता है नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) से। इसी से अर्थव्यवस्था की स्थिति का जमीनी हिसाब मिलता है, और उसी के आधार पर आगे की सरकारी योजनाओं को बनाने की परंपरा रही है। यह सर्वे यह हर पांच साल में सरकार कराती है, जरूरत पड़ने पर कई बार बीच में भी हुआ है।

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

वर्ष 2016-2017 में एनएसएस का सर्वे होना था, जो नहीं कराया गया। चूंकि पिछला सर्वे 2011-12 में हुआ था, इसलिए 2016-17 में होना चाहिए था। वजह साफ है, अर्थव्यवस्था का हालत खराब है और वर्ष 2014 के बाद से गरीबी-बेरोजगारी में भीषण इजाफा हो रहा है, लिहाजा इस सर्वे की प्रक्रिया को ही सरकार ने शुरू नहीं किया।

श्रम मंत्रालय द्वारा कराए गए 1 मार्च 2014-15 जुलाई 2015 के बीच के सर्वे के मुताबिक करीब डेढ़ करोड़ नौकरियां कम हुई हैं। तिमाही उद्यमी सर्वे का विश्लेषण करके पता चलना है कि 2009-2014 में जहां हर वर्ष 6 लाख नौकरियां मिली थीं, वहीं 2014-16 में महज 1.3 लाख ही हुई हैं।

  • बेरोजगारी और गरीबी में खौफनाक ढंग से इजाफा हुआ है। बाजार से मांग गायब है क्योंकि लोगों के पास खरीदने को पैसे नहीं है। बेरोजगारी, खासतौर से नोटबंदी के बाद बहुत तेजी से बढ़ी है।
  • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकलन के मुताबिक नोटबंदी के चलते इस साल (2017) के चार महीनों में करीब 15 लाख नौकरियों का नुकसान हुआ।
  • ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन स्मॉल एंड मीडियम (एआईएमए), फिक्की और सीआईआई सबने माना है कि नौकरियों में बहुत कमी आई है और लगभग मंदी का दौर है ।
  • 2015-16 में नेशनल सैंपल सर्वे ने रोजगार पर सर्वेक्षण किया था, जिसे सरकार ने जारी ही नहीं किया।

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

सिर्फ इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने गरीबी रेखा का पुर्निधारण नहीं किया। वर्ष 2014 में रंगराजन कमेटी ने गरीबी रेखा पर अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी थी। जिसे केंद्र सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस रिपोर्ट को न तो संसद में पेश किया और न ही नए आंकड़ों का संज्ञान दिया। इस समय एक तरह से देश के पास 2011-12 में तेंदुलकर समिति के ही गरीबी रेखा संबंधी आंकड़े हैं। रंगराजन समिति ने तेंदुलकर समिति से मतभेद जाहिर करते हुए कहा था कि इतने कम लोगों को शामिल किया गया है, जो सही नहीं है। 2017 में भी देश में गरीबी रेखा का कोई नया मूल्यांकन नहीं है।
फोटो : Getty Images

मोदी सरकार की आंकड़ों की बाजीगरी करने और आंकड़ों को छुपाने से अर्थशास्त्रियों को गंभीर चिंता हो रही है। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के प्रो. हिमांशू ने बताया :

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

“अर्थव्यवस्था बुरी तरह से हांफ रही है, गंभीर संकट में है। ऐसे में सरकार गरीबी और बेरोजगारी संबंधी आंकड़ों को जानबूझ कर छिपाने की कोशिश कर रही है। जबकि करना इसका उलट चाहिए था, जैसा यूपीए सरकार-1 ने किया था।“

नेशनल स्टेटिस्टिकल कमीशन के पूर्व चेयरमैन अर्थशास्त्री प्रनब सेन ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई की आंकड़ों को छिपाकर या गलत ढंग से जुटाकर केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था को गंभीर संकट में डाल चुकी है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार उस डॉक्टर की तरह कर रही है, जिसे बीमारी दिखाई दे रही है, लेकिन वह अपनी छवि बचाने के लिए कह रहा है कि मरीज स्वस्थ है।

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 28 Aug 2017, 10:06 AM IST

  • छत्तीसगढ़: मेहनत हमने की और पीठ ये थपथपा रहे हैं, पूर्व सीएम भूपेश बघेल का सरकार पर निशाना

  • ,
  • महाकुम्भ में टेंट में हीटर, ब्लोवर और इमर्सन रॉड के उपयोग पर लगा पूर्ण प्रतिबंध, सुरक्षित बनाने के लिए फैसला

  • ,
  • बड़ी खबर LIVE: राहुल गांधी ने मोदी-अडानी संबंध पर फिर हमला किया, कहा- यह भ्रष्टाचार का बेहद खतरनाक खेल

  • ,
  • विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड में नियुक्त किए पर्यवेक्षक, किसको मिली जिम्मेदारी?

  • ,
  • दुनियाः लेबनान में इजरायली हवाई हमलों में 47 की मौत, 22 घायल और ट्रंप ने पाम बॉन्डी को अटॉर्नी जनरल नामित किया