तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन हमें कुपोषण की तरफ ले जा रहा है। ‘एनवायर्नमेंटल हेल्थ परस्पेक्टिव्स’ नाम की पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार तापनाम वृद्धि से प्रमुख फसलों जैसे गेहूं, चावल और जौ में प्रोटीन की कमी हो रही है। वर्ष 2050 तक लगभग 15 करोड़ आबादी प्रोटीन की कमी से ग्रस्त होगी, इसमें अधिकतर आबादी अफ्रीका में सहारा के पास और दक्षिण एशिया की होगी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के अनुसार विश्व की लगभग 76 प्रतिशत आबादी पौधों से प्रोटीन प्राप्त करती है, पर अब मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के कारण इनमें प्रोटीन की कमी हो रही है। वैज्ञानिकों ने अपने इस आलेख के लिए लगभग 100 शोध पत्रों का अध्ययन किया जो फसलों पर वायुमंडल में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के प्रभावों पर आधारित थे। वर्ष 2050 तक भारत, तुर्की और इराक समेत 18 देशों की फसलों में प्रोटीन की उपलब्धता 5 प्रतिशत तक कम हो सकती है। आकलन के अनुसार जौ में 14.1 प्रतिशत, गेहूं में 7.8 प्रतिशत और चावल में 7.6 प्रतिशत प्रोटीन की उपलब्धता कम होगी। यह कमी चिंताजनक है क्योंकि विश्व की 71 प्रतिशत आबादी गेहूं और चावल पर निर्भर है।
2050 तक अगर कार्बन डाइऑक्साइड का वायुमंडल में जमाव आज के बराबर भी रहा, जिसकी संभावना बहुत कम है, तब भी विश्व की 15 प्रतिशत आबादी प्रोटीन की कमी से ग्रस्त होगी। अगर कार्बन डाइऑक्साइड का जमाव बढ़ता है तो लगभग 15 करोड़ और आबादी प्रोटीन की कमी का शिकार होगी, जिसमें 5 करोड़ भारतीय होंगे। हालांकि इस अध्ययन में केवल प्रोटीन की कमी का आकलन किया गया है, संभावना है कि अन्य पोषक पदार्थों में भी ऐसा ही परिवर्तन होगा।
हमारे देश के लिए यह खबर बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरी दुनिया में सबसे बड़ी कुपोषित आबादी हमारे देश में ही है और पोषण के नाम पर भले ही कई योजनाएं चल रही हो, पर असर कहीं नजर नहीं आता। दालों से सबसे ज्यादा प्रोटीन मिलता है, पर इनके बढ़ते दामों ने गरीबों की थाली से इसे लगभग गायब कर दिया है।
2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण के कारण देश में 38.7 प्रतिशत बच्चों की पूरी वृद्धि नहीं हो पाती, 29.4 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है और 15 प्रतिशत बच्चों का ही लंबाई के अनुसार वजन रहता है। वैज्ञानिक पत्रिका ‘लैंसेट’ में प्रकाशित एक लेख के अनुसार देश में पांच वर्ष से कम उम्र के 45 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण होती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2016 के मुताबिक 118 देशों में भूखमरी और कुपोषण को ध्यान में रखकर तैयार की जाने वाली इस सूची में भारत 97वें स्थान पर है। नेपाल, चीन, और बांग्लादेश इस सूची में भारत से बेहतर स्थिति में हैं।
2014 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल साईंसेज द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के अधिकतर हिस्सों की भूमि में पोषक तत्वों की कमी हो रही है। देश के 13 राज्यों के 174 जिलों की भूमि में जिंक, बोरोन, कॉपर, और मैंगनीज जैसे पोषक तत्वों की कमी है। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में औसतन जिंक में 40 प्रतिशत और सल्फर में 28 प्रतिशत की कमी देखी गई है। बोरोन, आयरन, मैंगनीज और कॉपर में क्रमश: 20, 13, 6, और 4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। ओडिशा, पश्चिम बंगाल, गुजरात और बिहार में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के बाद भी पैदावार का न बढ़ना बोरोन की कमी का परिणाम है।
हमें यदि सामाजिक स्तर पर सुधार लाना है, तो इस समस्या का विस्तृत अध्ययन कर इससे निपटने के उपाय जल्द से जल्द करने होंगे, नहीं तो 2022 तक हम सबसे बड़ी कुपोषित आबादी का बोझ झेल रहे होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ हैं। पिछले तीस वर्षों से वे पर्यावरण संबधी सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों में सक्रिय रहे हैं।)
Published: 22 Aug 2017, 2:06 PM IST
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Published: 22 Aug 2017, 2:06 PM IST