किसी ज्ञानी ने कहा है कि जो आदमी शराब पीकर या अपनी आत्मकथा में भी झूठ बोले, उससे बचना चाहिए। इस नियम को अगर सही मानें और फिल्म इंडस्ट्री पर लागू करके देखें तो हमें ज्यादातर उन फिल्मी हस्तियों से बचना होगा जिन्होंने आत्मकथाएं लिखी हैं या जो शराब पीते हैं। खैर, अब सीधे मुद्दे पर आते हैं। हाल में दिल्ली के प्रगति मैदान में संपन्न हुए पुस्तक मेले में भीड़ की कोई कमी नहीं थी। हर तरह के, हर उमर के लोग दिखाई दिए। किताबें कितनी बिकीं, यह तो बाद में पता चलेगा। कई नई पुस्तकें बाजार में आईं और कइयों का विमोचन हुआ। इनमें से कुछ किताबें सिनेमा से संबंधित थीं। उनमें से दो-चार फिल्मी हस्तियों की आत्मकथाएं भी थीं।
इनमें से एक किताब जिसका ध्यान आ रहा है, हिंदी सिनेमा के मशहूर खलनायक प्रेम चोपड़ा की आत्मकथा ‘प्रेम नाम है मेरा’ के हिंदी संस्करण का विमोचन हुआ। यश पब्लिकेशंस ने इसे प्रकाशित किया है। खुद प्रेम चोपड़ा सपरिवार आए थे। चोपड़ा साहब की बेटी रंकिता नंदा ने इसे लिखा है। अच्छी किताब है। कई मनोरंजक जानकारियां हैं। मनोरंजक तरीके से लिखी गई है। आमतौर पर, कई बार लेखक के पास अगर ज्यादा जानकारियां आ जाती हैं तो वह पुस्तक में जानकारियों का ओवरडोज कर देता है। इससे न केवल पुस्तक का ढांचा गड़बड़ा जाता है बल्कि उसकी पठनीयता खत्म हो जाती है। लेकिन ‘प्रेम नाम है मेरा’ शुरू से अंत तक मजेदार है और रस लेकर लिखी गई है। इसकी दो बड़ी वजहें शायद ये हैं कि एक तो रंकिता, प्रेम चोपड़ा की तीन बेटियों में से एक हैं। पिता के बारे में बहुत सारी जानकारियां उनके पास पहले से ही होंगी। दूसरी बात, रंकिता ने काफी दिनों तक पत्रकारिता भी की है।
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हिंदी सिनेमा के एक और मशहूर खलनायक प्राण की आत्मकथा ‘और प्राण’ कई साल पहले आई थी। नामी फिल्म प्रचारक बनी रूबेन (दिवंगत) ने यह किताब लिखी थी। यह भी बड़ी मनोरंजक किताब है जिसे आप एक या दो सिटिंग में पढ़कर खत्म करना चाहते हैं। इस आत्मकथा के टाइटल ‘और प्राण’ के बारे में लेखक ने बताया था कि प्राण का कद कई सितारों से भी बड़ा था और उनकी उपस्थिति किसी भी सफल फिल्म के लिए एक समय में अनिवार्य बन गई थी। तो अक्सर हिंदी सिनेमा में परदे पर जब क्रेडिट (उक्त फिल्म में काम करने वालों के नाम) आते थे, तो प्राण का नाम सबसे आखिर में इस तरह आता था, “एंड प्राण”!
ऊपर जिन दो कलाकारों का जिक्र हुआ है, उनकी खासियत यह है कि दोनों अपनी खलनायिकी की छवि से ऊपर नहीं उठ पाए, लेकिन निजी जीवन में दोनों बेहतरीन इंसान थे और हैं। प्राण साहब तो खैर चले गए लेकिन प्रेम चोपड़ा साहब आज भी यारों के यार हैं। असल में सिनेमा की हस्तियों पर दो किस्म की आत्मकथाएं छपी हैं या छप रही हैं। पहली अधिकृत और दूसरी गैर-अधिकृत। अधिकृत आत्मकथा वह हुई जो संबंधित व्यक्ति की अनुमति लेकर लिखी गई है या उनने खुद लिखी है। दूसरी किस्म की आत्मकथा वह है जो कोई भी किसी पर लिख सकता है। जैसे आजकल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छप रही हैं। दर्जनों के भाव से। हर प्रकाशक उन्हें छाप रहा है।
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उसी तरह, हिंदी सिनेमा का हाल है। लगभग हर बड़े सितारे पर बाजार में आपको दर्जनों पुस्तकें मिल जाएंगी। उनमें उपलब्ध जानकारियों के बारे में पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि वे सही हैं या गलत। उदाहरण के लिए, अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार और देव आनंद जैसे सितारों पर बाजार में न जाने कितनी पुस्तकें आत्मकथा के नाम से उपलब्ध हैं, लेकिन इनकी अधिकृत आत्मकथाएं भी लिखी गई हैं। अमिताभ बच्चन की अधिकृत आत्मकथा, नामी फिल्म पत्रकार खालिद मोहम्मद ने लिखी है। नाम है ‘टू बी ऑर नॉट टू बी’। उसी तरह, दिलीप कुमार की अधिकृत आत्मकथा लिखने वाली सायरा बानो की दोस्त और वरिष्ठ फिल्म पत्रकार उदय तारानायर हैं। कई लोग देव आनंद पर आत्मकथा लिखने के लिए उनके पीछे पड़े थे। लेकिन वह अपनी आत्मकथा खुद लिखना चाहते थे। सो उन्होंने लिखी।
ऊपर जिन तीन बड़े सितारों की अधिकृत आत्मकथाओं का जिक्र किया है, उनकी एक समस्या है। तीनों बहुत बड़े सितारे हैं। तीनों से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारियां उनके चाहने वालों को पहले से पता हैं। ऐसे में, लेखक और जिन पर लिखा जा रहा है, उन दोनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि पाठकों को ऐसा क्या दें जो उन्हें पहले से पता न हो। दिलीप कुमार पर किताब लिखने वाली उदय तारानायर, चूंकि ‘स्क्रीन’ नाम की फिल्म साप्ताहिक में मेरी संपादक रह चुकी हैं, सो उन्होंने मुझे इससे जुड़ी कई ऐसी जानकारियां दीं जो यहां तो नहीं लिखी जा सकतीं लेकिन लब्बोलुआब यह कि बड़े सितारों की आत्मकथाएं लिखना आसान काम नहीं है। कुछ ऐसा ही अनुभव, अमिताभ बच्चन की आत्मकथा लिखने वाले खालिद मोहम्मद साहब का भी रहा है। बहरहाल, जो सबसे बड़ी बात है, वो यह कि जो हमने लेख के शुरू में कही थी। यह गौर करने वाली बात है कि आत्मकथा में भी कौन कितना छुपा ले जाता है!
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अब, इन तीन बड़े सितारों (अमिताभ बच्चन, देव आनंद, दिलीप कुमार) के बारे में तो पक्के तौर पर कह सकता हूं कि इन्होंने अपनी ढेर सारी जानकारियां छुपाई हैं, खासकर अपने प्रेम संबंधों के बारे में। अमिताभ बच्चन-रेखा, दिलीप कुमार-मधुबाला, दिलीप कुमार-सुरैया, देव आनंद-सुरैया के संबंधों के बारे में इन आत्मकथाओं में एक किस्म की चुप्पी साध ली गई है। जिक्र है भी तो सतही तौर पर। उससे ज्यादा जानकारियां तो इनके चाहने वालों को हैं और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं।
जैसे, इस तथ्य के बावजूद कि देव आनंद, मुझे अच्छे से जानते थे, मेरे अनुरोध पर हिंदुस्तान टाइम्स स्थित हमारे दफ्तर भी आए थे, लेकिन मैं भी ठीक से दावा नहीं कर सकता कि मैं उनके बारे में बहुत कुछ जानता था। लेकिन एक हमारे जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार महोदय हैं। देव आनंद के भारी प्रशंसक हैं। गाजियाबाद में रहते हैं। उनका दावा है कि वह देव आनंद के बारे में देव आनंद से भी ज्यादा जानते रहे हैं। खैर, अब तो देव साहब नहीं रहे, वरना उक्त सज्जन को एक बार देव साहब के सामने बिठा देने की बड़ी तमन्ना थी।
हिंदी सिनेमा के एक और बड़े मशहूर खलनायक रहे हैं। एक हमारे जान-पहचान वाले उनकी आत्मकथा लिख रहे हैं। सारी बातचीत हो गई। किताब प्रिंट में जाने से पहले अचानक खलनायक महोदय को लगा कि उन्होंने अतिउत्साह में बहुत ऐसी जानकारियां दे दी हैं जिनके छपने से विवाद खड़ा हो सकता है। उन्होंने लेखक को फिर से बुलाया और उन चीजों को हटाने के लिए कहा है। हाल में, आशा पारीख की आत्मकथा आई है। इसके अलावा, कई और फिल्मी हस्तियां अपनी आत्मकथाएं छपवाने में रुचि ले रही हैं। कई ऐसे ही दुनिया से चले गए... बिना अपनी आत्मकथा लिखे या लिखवाए!
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