हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में यूं तो बहुत से गायक और गायिकाएं आईं और सब के गाने की अपनी एक अलग अलग स्टाइल थी। रफ़ी, किशोर और मुकेश जैसे गायक जिस दौर में बॉलीवुड में छाए हुए थे, उसी दौर में एक ऐसा गायक भी था जो अपनी एक अलग तरह की गायकी के साथ इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना रहा था। उनकी कांपती और थरथराती आवाज़ की वजह से उन्हें कई बार कई संगीतकारों ने रिजेक्ट कर दिया था, लेकिन उनकी जद्दोजहद जारी रही और आगे चलकर उनकी यही कांपती और थरथराती हुई आवाज़ ने उन्हें इंडस्ट्री का एक मशहूर गायक बना दिया। हम बात कर रहे हूं मशहूर गायक तलत महमूद की, आज उनकी 99वीं बर्थ एनिवर्सरी है।
तलत महमूद की पैदाइश अदब के शहर लखनऊ में 24 फरवरी 1924 को हुई थी। बचपन से ही उन्हें गाने का बड़ा शौक था, लेकिन इनके परिवार को उनका गाना बजाना बिल्कुल पसंद नही था। उनकी ज़िन्दगी में एक वक्त ऐसा भी आया जब इन्हें परिवार या फ़िल्मों में से किसी एक को चुनना था। इन्होंने गाने को चुना, जिस वजह से यह 10 सालों तक अपने परिवार से दूर रहे। बाद में जब वह एक मशहूर गायक बन गए तब इनके परिवार वालों ने उन्हें अपना लिया।
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महज़ 15 साल की उम्र से तलत महमूद की गायकी ने रफ़्तार पकड़ ली थी। यह बात शायद ही कुछ लोगों को पता है कि तलत महमूद ऑल इंडिया रेडियो लखनऊ में दाग़ देहलवी, जिगर मुरादाबादी और मीर तक़ी मीर की ग़ज़लें गाया करते थे। बहुत जल्द ही इनकी प्रतिभा को रिकॉर्ड कंपनी एच.एम.वी. ने परख लिया और 1941 में उसने उनकी आवाज़ में एक नॉन फ़िल्मी एलबम रिलीज़ किया। यह एलबम काफ़ी हिट हुआ और बतौर मेहनताना इसके लिए तलत महमूद को 6 रुपये की फ़ीस मिली थी।
तलत महमूद ने फिर कलकत्ता का रुख किया। वहां इन्होंने कई बांग्ला फ़िल्मों में तपन कुमार के नाम से गाने गाए। तलत महमूद दिखने में भी अच्छे लगते थे, इसलिए उन्हें वहां की फ़िल्मों में बतौर एक्टर काम करने का भी मौका मिला। उन्होंने तीन फ़िल्मों में काम किया और तीनों फ़िल्में काफ़ी चलीं। इसके बाद तलत महमूद ने बॉम्बे का रुख किया।
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बॉम्बे में अपनी गायकी के लिए उन्हें काफ़ी स्ट्रगल करना पड़ा। अपनी आवाज़ की कंपन और लरजिश की वजह से इन्हें कई म्युज़िक डॉयरेक्टर्स ने रिजेक्ट कर दिया था, लेकिन आगे चलकर इनकी आवाज़ की यही कंपन और लरजिश इनको हिट सिंगर बनाने में काफ़ी काम आई।
फिर संगीतकार अनिल बिस्वास की नज़र इन पर पड़ी और अपनी आवाज़ की जिस कंपन और लरजिश की वजह से इन्हें बार-बार रिजेक्ट किया जा रहा था, संगीतकार अनिल बिस्वास इनके इसी अंदाज पर फिदा हो गए। उस वक़्त वह दिलीप कुमार की फ़िल्म आरज़ू के लिए म्युज़िक बना रहे थे। उन्होंने फ़िल्म के डॉयरेक्टर से कहकर तलत की आवाज़ में फ़िल्म आरज़ू में एक गाना और एड करवाया, जिसे लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी ने, जो फ़िल्म में दिलीप कुमार के ऊपर फ़िल्माया गया था। गाना काफ़ी हिट भी हुआ। इसके बाद उन्होंने दिलीप कुमार के लिए और भी कई फ़िल्मों में प्लेबैक सिंगिंग की। यहीं से उनका हिंदी फ़िल्मों में प्लेबैक सिंगिंग का शानदार सफ़र शुरू हो गया।
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मख़मली आवाज़ के मालिक तलत महमूद ने 12 भारतीय ज़ुबानों में गाने गाए। उन्होंने अपने 40 साल के करियर में करीब 800 गाने गाए। इनमें से कई गाने आज भी बहुत सुने और गाये जातें हैं, "ए गमें दिल क्या करूँ", "रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिये", "हमसे आया न गया", "तेरी आंख के आंसू पी जाऊं", "शामें ग़म की कसम", "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा", "फिर वही शाम वो ही तनहाई", "मेरी याद में न तुम आंसू बहाना", "ऐ मेरे दिल", "तस्वीर बनाता हूं", "जाये तो जाये क्हां", " मिलते ही आंखे दिल हुआ दिवाना किसी का", "दिले नादान तुझे हुआ क्या है", "मैं दिल हूं एक अरमान भरा", जैसे उनके बेशुमार गीत आज भी बहुत पसंद किए जाते हैं।
तलत महमूद के बारे में एक क़िस्सा बहुत मशहूर हुआ था कि उन्होंने संगीतकार नौशाद के सामने सिगरेट पीकर कश उनके मुंह पर छोड़ दिया था। असल में बात यह थी कि संगीतकार नौशाद को यह बिल्कुल नही पसंद था की उनके साथ काम करने वाला कोई भी गायक स्टूडियो में सिगरेट पिए। उनकी इसी बात पर एक बार तलत महमूद ने उनको चिढ़ाने के लिए हंसी-हंसी में उनके सामने सिगरेट के कश लगाए, जिससे नाराज़ होकर उनके साथ कई गाने रिकॉर्ड करने वाले संगीतकार नौशाद ने फिर कभी उनसे कोई गाना नही गवाया।
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यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि गायकी के अलावा तलत महमूद ने फ़िल्मों में एक्टिंग भी की थी, उन्होंने नूतन, माला सिन्हा और सुरैया जैसी कई बड़ी अभिनेत्रियों के साथ करीब 15 फ़िल्मों में काम किया था, लेकिन अभिनय में बात बनती ना दिखने पर उन्होंने एक्टिंग छोड़ दी और पूरा ध्यान अपनी गायकी पर ही देने लगे। तलत महमूद हमेशा अच्छे बोलों वाले गानों को गाते थे। उल्टे सीधे बोलों वाले गानों से उन्हें बहुत चिढ़ थी। कई बार तो कई गीतकारों को यह शुबहा रहता था की तलत कहीं उनके गीत गाने से मना ना कर दें।
हिंदी फ़िल्मों में शामिल ग़ज़लों का जब कभी ज़िक्र होगा तो उसमें तलत का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। ग़ज़ल गायकी के दिग्गज जगजीत सिंह और पंकज उदास जैसे गायक उन्हें अपना आइडियल मानते आए हैं। यहां तक कि पाकिस्तानी सिंगर सज्जाद अली भी उन्हें अपना गुरु मानते हैं।
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तलत महमूद के साथ एक और दिलचस्प तथ्य यह भी जुड़ा है की वह पहले ऐसे भारतीय सिंगर हैं जिनका विदेशों में भी कॉन्सर्ट हुआ था। 1956 में ईस्ट अफ्रीका दौरे से शुरू हुआ ये सिलसिला अमेरिका, ब्रिटेन, वेस्टइंडीज जैसे मुल्कों तक फैला। तलत 1991 तक कॉन्सर्ट में गाते रहे। फ़िल्म टैक्सी ड्राइवर की ग़ज़ल जाएं तो जाएं कहां तो जैसे उनकी पहचान बन गई थी। फ़िल्म छाया का गीत इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा भी काफ़ी मक़बूल हुआ था। कौन भूल सकता है पियानों पर बैठकर फ़िल्म बाबुल में जो गीत दिलीप कुमार गा रहे है, कि ‘मिलते ही आंखे दिल हुआ दीवाना किसी का’ जिसे तलत महमूद ने गाया था, या फिर फ़िल्म बारादरी की ग़ज़ल ‘तस्वीर बनाता हूं तस्वीर नहीं बनती’ यह सब वह गीत और ग़ज़ल हैं, जिन्हें तलत महमूद की कांपती और थरथराती हुई आवाज़ ने हमेशा के लिए अमर कर दिया।
तलत महमूद की 99वीं बर्थ एनिवर्सरी पर लाइव कॉन्सर्ट में उनके द्वारा गाए एक गीत आपके लिए छोड़ जाते हैं, जिसमे वह अपने सुनने वालों को 1951 में आई फ़िल्म मदहोश में अपनी गाई एक ग़ज़ल सुना रहे हैं, जिसकी तर्ज़ बनाई थी मशहूर संगीतकार मदन मोहन ने और जिसे लिखा था मशहूर गीतकार और शायर राजा मेंहदी अली ख़ान ने।
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