सिनेमा

शमशाद बेगम: बांकपन और चुलबुलाहट भरी उस आवाज के सौ साल, जिसकी खनक के आगे फीके पड़ जाते थे साज़

शमशाद बेगम ने कहीं भी नियमित गाना नहीं सीखा, हांलाकि घर में रखा बड़ा सा ग्रामोफोन नन्ही शमशाद के लिये हैरत की चीज हुआ करता था। ग्रामोफोन बजने पर वे उसके पास आकर बैठ जातीं और फिर उसमें से जो आवाज आती उसे दोहराया करतीं।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

कम लोगों को याद होगा कि यह साल महान गायिका शमशाद बेगम का जन्मशती वर्ष हैं। वे अमृतसर में 14 अप्रैल, 1919 को पैदा हुई थीं। यह उनकी बदकिस्मती रही कि जिस सम्मान की वे हकदार थीं वो उन्हें नहीं मिला। उनकी आवाज की खासियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके साज से 70 साल पहले गाए गीत आज भी जिंदा हैं।

अमृतसर में जन्मी शमशाद बेगम का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। अपने करियर के उरूज पर पहुंचने के बाद करीब 40 साल तक वे लगभग गुमनाम सी रहीं। साल 2012 में जब उन्हें पद्म सम्मान मिला तो बहुत से संगीत प्रेमी यह जान कर चौंक गए कि ‘अरे शमशाद बेगम अभी ज़िंदा हैं।’

शमशाद बेगम ने कहीं भी नियमित गाना नहीं सीखा, हांलाकि घर में रखा बड़ा सा ग्रामोफोन नन्ही शमशाद के लिये हैरत की चीज हुआ करता था। ग्रामोफोन बजने पर वे उसके पास आकर बैठ जातीं और फिर उसमें से जो आवाज आती उसे दोहराया करतीं। उनके एक चाचा अक्सर शमशाद को गाना दोहराते हुए सुनते थे। एक दिन वे 13 साल की शमशाद को लेकर जीनोफोन रिकार्डिंग कंपनी गए, जहां शमशाद की आवाज बहुत पसंद की गई और उनकी आवाज में एक पंजाबी गाना रिकॉर्ड हुआ, जिसके बोल थे ‘हथ जोड़ परखियां दा’ यह एक गैर फिल्मी गाना था जो बेहद लोकप्रिय हुआ।

जल्द ही शमशाद बेगम के पास रेडियो से बुलावा आ गया। उन्होंने अपना पहला कार्यक्रम 16 दिसंबर, 1937 को लाहौर रेडियो पर पेश किया। फिर वे रेडियो पर नियमित गीत गाने लगीं। लेकिन तब तक बेहद लोकप्रिय हो चुकीं शमशाद बेगम ने कोई भी फिल्मी गाना नहीं गाया था। साल 1939 में 15 साल की उमर में शमशाद बेगम का बैरिस्टर गणपतलाल बट्‌टो के साथ विवाह हो गया था।

लाहौर की ‘पंचोली आर्ट फिल्म’ नाम की संस्था ने शमशाद बेगम को पहली बार अपनी पंजाबी फिल्म ‘यमला जट (1940)’ में गीत गाने का मौका दिया। आगे चल कर पंचोली आर्ट फिल्म ने हिंदी में ‘खजांची’ नाम की फिल्म बनाई, जिसमें शमशाद के गाए गीतों ने धूम मचा दी। शमशाद बेगम की आवाज की खनक पूरे देश में गूंजने लगी। फिर भला मुंबई की फिल्मी दुनिया इसे कैसे अनसुनी कर सकती थी। सबसे पहले महबूब ने अपनी फिल्म ‘तक़दीर’ (1943) में उनसे गवा कर उनके लिए मुम्बई फिल्मी दुनिया के दरवाजे खोल दिए।

फिर तो शमशाद बेगम की आवाज फिल्म संगीत का सुनहरा अध्याय बन गई। ‘तेरी महफिल में किस्मत आजमाकर हम भी देखेंगे’, ‘सइयां दिल में आना रे’, ‘बूझ मेरा क्या नाम रे’, ‘मेरे पिया गए रंगून किया है वहां टेलीफून’, ‘एक दो तीन आज मौसम है रंगीन’, ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’, ‘छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा’, ‘होली आयी रे कन्हाई होली आयी रे’, ‘पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली’, ‘रेश्मी शलवार कुर्ता जाली का’। ये शमशाद बेगम के गाए कुछ ऐसे लोकप्रिय गीत हैं, जिनकी बरसों बाद आज भी मांग बनी हुई है।

जो दौर शमशाद का स्वर्णयुग था, उस समय साजों से ज्यादा आवाज को महत्व दिया जाता था। इससे गायक को अपनी आवाज की खूबियां सामने लाने का भरपूर मौका मिलता था। शमशाद ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया। अपनी आवाज के बांकपन और चुलबुलाहट को शमशाद ने अपना हथियार बनाया। उनके गाए गीत सुनें तो उनकी आवाज हल्का सा तीखापन लिए हुए ऐसी मिठास में डूबी हुई मिलती है जो यौवन की उठती उमंगों का सटीक एहसास कराती है।

शमशाद बेगम के गायन का एक रोचक तथ्य यह भी है कि उन्होंने पुरूष अभिनेताओं के लिये भी पार्शव गायन किया। उन्होंने फिल्म ब्लफ मास्टर (1963) में शम्मी कपूर के ले गीत गाया, ‘ओ चली चली कैसी हवा ये चली’। फिर दारा सिंह के लिए फिल्म ‘लुटेरा’ (1965) में गीत गाया, ‘पतली कमर, नाज़ुक उमर, अरे, हट मुए मुझे लग जाएगी नज़र’। इसी तरह उन्होंने अपने समय के चॉकलेटी हीरो विश्वजीत के लिए 1968 की फिल्म ‘किस्मत’ में एक गीत गाया ‘कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला’।

सातवें दशक में जब शमशाद बेगम की मांग घटने लगी तो वो बिना किसी से शिकवा किए फिल्मी दुनिया से अलग हो गईं। साल 2012 में उन्हें 92 साल की उम्र में तब पदम अवॉर्ड दिया गया जब उनके लिए किसी भी अवॉर्ड की कोई अहमियत नहीं रह गई थी। 23 अप्रैल, 2013 को शमशाद बेगम का निधन हो गया।

Published: 14 Apr 2019, 2:10 PM IST

शमशाद बेगम ने अपने गायन काल के दौरान अपना फोटो कभी नहीं खिंचवाया। जब भी फोटो खिंचने का मौका आता वे बहुत सफाई से बच निकलतीं। दरअसल उन्हें हमेशा यह एहसास रहा कि वे सुंदर नहीं हैं इसलिए उन्होंने चित्र नहीं खिंचवाए। बरसों तक लोग उन्हें उनकी सुरीली आवाज के जरिए ही उन्हें पहचानते रहे।

Published: 14 Apr 2019, 2:10 PM IST

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Published: 14 Apr 2019, 2:10 PM IST