दर्द से कराहते मरीज़, लाइलाज मानिस रोगी, बूढ़े और अपाहिज लोग। इन सबके बीच एक औरत सेवा में जुटी है। वह अपने समय की ग्लैमरस अदाकारा थी। लाइट, कैमरा, एक्शन के बीच उम्र का लंबा पड़ाव गुजरा। दौलत , शोहरत और भरा पूरा परिवार था फिर किस्मत ने ऐसे झटके दिये कि मदर टेरेसा के आश्रम में ऐसे दुखियों और बेसहारा लोगों की सेवा में जुट गयी जिनकी घरवाले भी उनकी सुध नहीं लेते थे। कभी खुशी कभी ग़म के दौर को कदम कदम पर जीने वाली वो अदाकार थी शशिकला।
“शीशे से पी या पैमाने से पी – या मेरी आंखों के मैखान से पी’। फिल्म फूल और पत्थर का ये गीत तो याद ही होगा। इसे पर्दे पर बहुत बेबाकी से पेश किया था शशिकला ने। उस दौर में वे फिल्मों में वैम्प का रोल निभाने लगी थीं। साथ ही कभी कभी चरित्र अभिनेत्री के रूप में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करती रही। जबकी फिल्मों में उनकी इंट्री बचपन में एक एक्स्ट्रा के रूप में हुई थी। बेहद गरीब परिवार को रोज़ी रोटी का सहरा देने के लिए ढाई साल की उम्र से ही उन्हें लोक नृत्य में हिस्सा लेने के लिये मजबूर कर दिया गया। फिर कई फिल्मों में एक्स्ट्रा कलाकारों की भीड़ में खोए रहने के बाद पर्दे पर पहली बार कुछ देर के लिये जिस फिल्म में उनका चेहरा नज़र आया वह थी नूरजहां की चर्चित फिल्म ज़ीनत (1946)।
कुछ समय गुज़रा तो उन्हें नायिका बनने का मौका मिला। पहली फिल्म थी “रूपए की कहानी” जिसमें उनके नायक थे कृष्ण कांत इसके बाद भारत भूषण के साथ ‘ ठेस’, सुंदर के साथ ‘सबसे बड़ा रूपैया’ और आग़ा के साथ ‘नजारे’ में वे नायिका बनी। उनका सफर आगे बढ़ा तो प्रेम नाथ के साथ ‘आबे हयात’ और शम्मी कपूर के साथ ‘डाकू’ में नायिका बनीं। अब वे ग्लैमर की दुनिया की राजकुमारी बन चुकी थीं। उधर निम्नवर्गीय परंपराओं से बंधा उनका परिवार उन पर शादी करने के लिये दबाव बना रहा था। शशिकला तो परिवार चलाने के लिये ही नन्ही सी उम्र से मेहनत करने लगी थीं अब परिवार की बात कैसे टालतीं उन्होंने शादी कर ली। और अचानक शशिकला के लिये जैसे सब कुछ ठहर गया।
शादी शुदा अभिनेत्री को भला हिरोइन के रोल क्यों मिलते। कुछ समय बाद शशिकला को खलनायिका के रोल आफर किये गए तो उन्होंने फिल्मों में अपनी दूसरी पारी शुरू की। तब तक हिंदी फिल्मों की सबसे सुंदर खलनायिका कुल्दीप कौर का दौर खत्म हो चुका था। अब शशिकला का दौर शुरू हुआ। जो अपने समय की सबसे ग्लैमरस और सुंदर खलनायिका बन गयीं। लेकिन उनकी नयी शोहरत ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से नुकसान पहुंचाया। शशिकला के व्यक्तित्व के सामने उनके पति खुद को बहुत कुंठित महसूस करने लगे। उन्हें इससे उबारने के लिये शशिकला ने अपना पैसा लगा कर पति को फिल्म निर्माता बना दिया। जिन्होंने करोड़पती नाम से पहली फिल्म शुरू की। इसमें शशिकला नायिका और किशोर कुमार नायक थे। फिल्म को पूरा करने में पतिदेव ने छह साल लगा दिये। जू फिल्म रिलीज़ हुई तो बुरी तरह फ्लाप साबित हुई। घाटा इतना बड़ा ता कि शशिकला कंगाल हो गयीं।
निराश और हताश पति ने शशिकला से मार पीट शुरू कर दी। तब तक दो बेटियों की मां बन चुकी शशिकला ने कैरियर और परिवार में किसी तरह संतुलन साधना चाहा लेकिन आखिरकार पति से अलगाव हो गया। शशिकला जानती थीं कि अगर फिल्मों की ओर से ज़रा सी भी उदासीनता बरती तो उनकी बेटियों का भविष्य अंधकार में चला जाएगा। अपने दर्द और दुख की सीने में छिपाए होंठों पर मुस्कान सजाए वे काम करती रहीं। उनका कैरियर फिर से रूज पर पहुंच गया। फूल और पत्थर, देवर, प्यार मोहब्बत और तमन्ना जैसी फिल्मों में उन्होंने धर्मेंद्र, देवानन्द और बिस्वाजीत जैसे नायकों की सहनायिका के रूप में प्रशंसा बटोरी। हांलाकि उन्हें बढ़ती उम्र का एहसास हो चुका था।
तब तक बेटियां बड़ी हो गयीं तो उनका शादी कर दी। और ऐसे मौके पर उनके जीवन मे आस्ट्रेलिया में रहने वाले एक शख्स की इंट्री हुई। अपने जीवन के हालात को देखते हुए शशिकला ने उनसे शादी की और फिल्मों को अलविदा कह आस्ट्रेलिया चली गयीं। वहा एक नयी मुसीबत उनका इंतज़ार कर रही थी। वो थीं उनकी सास, जिन्होंने शशिकला को कबी सास के रूप में कुबूल नहीं किया। धीरे धीरे वे शशिकला से मार पीट पर उतर आयी। बिल्कुल अकेली और जीवन से निराश हो चुकी शशिकला लगभग विक्षिप्त हो गयीं। फिर भी एक दिन वह खाली हाथ भारत अपनी मां के पास लौट आयीं।
उनके मन की शांति के लिए मां ने उन्हें देश भर के तीर्थ स्थानों पर ले जाना शुरू किया। जब शशिकला की वापसी की खबर फिल्मी दुनिया को पहुंची तो उन्हें चरित्र अभिनेत्री के रोल के कुछ आफर मिले। शशिकला ने फिल्मों में तीसरी पारी शुरू की। इसी बीच एक परिचित के सुझाव पर वे मदर टेरेसा से मिलने गयीं। और उस एक मुलाकात ने शशिकला के जिंदगी भर की तकलीफों को मानो एक झटके में भुला दिया। मदर टेरेसा के सुझाव पर शशिकला ने उनक पुणे आश्रम में दुखियों की सेवा करनी शुरू कर दी। जीवन भर कमायी दौलत, शोहरत, ग्लैमर फिल्मों की चमक दमक सब भूल गयीं वे। दूसरों की सेवा में उन्हें आध्यात्मिक शांति मिलने लगी। इस बीच फिल्मी दुनिया के कुछ परिचितों के आग्रह पर उन्होंने इक्का दुक्का फिल्में और टीवी सीरियल किये। कभी खुशी कभी ग़म उनकी अंतिम उल्लेखनीय फिल्मों में से एक थी।
अपने जीवन के अंतिम पढ़ाव को बेसहारा और दुखियों की सेवा में लगा देने वाली इस अभिनेत्री का 88 साल की उम्र में रविवार 04 अप्रैल को मुंबई में निधन हो गया।
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