सिनेमा

वी. शांताराम: जिनके योगदान से तैयार हुई हिंदी सिनेमा की नींव

1920 में 20 साल की उम्र में वी. शांताराम ने एक मूक फिल्म से अभिनय शुरू किया था। अभिनय और निर्माण-निर्देशन के साथ-साथ उन्होंने पहले मराठी और बाद में हिंदी फिल्मों के पटकथा लेखन में अपनी छाप छोड़ी।

फोटो: गूगल
फोटो: गूगल V. Shantaram Motion Picture Scientific Research and Cultural Foundation

सर्च इंजन गूगल ने नवंबर को प्रसिद्ध फिल्मकार, अभिनेता और लेखक शांताराम राजाराम वानकुद्रे की 116वीं जयंती के मौके पर उनके सम्मान में एक डूडल बनाया। शांताराम को वी. शांताराम व अन्नासाहेब के नाम से जाना जाता रहा है।

डूडल में शांताराम की फिल्मों के लिए इस्तेमाल होने वाले कैमरे, उनकी एक मराठी फिल्म और दो अन्य चर्चित फिल्मों 'दो आंखे बारह हाथ' और 'झनक झनक पायल बाजे' के चित्रों की मदद से 'गूगल' शब्द बनाया गया है।

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शांताराम का जन्म 18 नवंबर, 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक मराठी जैन परिवार में हुआ था। भारतीय सिनेमा की शुरुआत करने वाले महान फिल्मकार धुंडिराज गोविंद फालके यानी दादासाहेब फालके द्वारा पहली भारतीय फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' (1913) बनाने के बमुश्किल 7 साल बाद 20 साल की उम्र में शांताराम ने एक मूक फिल्म से अभिनय शुरू किया था।

इसके बाद बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न शंताराम ने न केवल अभिनय जारी रखा, बल्कि फिल्म निर्माण भी किया। अभिनय और निर्माण-निर्देशन के साथ-साथ उन्होंने पहले मराठी और बाद में हिंदी फिल्मों के पटकथा लेखन में अपनी छाप छोड़ी।

दुनिया भर में प्रसिद्ध 'दो आंखें बारह हाथ' (1957) के अलावा 'सुरेखा हरण' (1921), 'सिंहगढ़' (1923), 'स्त्री' (1961) और 'डॉ. कोटिनिस की अमर कहानी' (1946) समेत कई फिल्में शांताराम के फिल्मी जीवन का हिस्सा हैं।

शांताराम को 1985 में दादा साहेब फाल्के और 1992 में मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 30 अक्टूबर 1990 को 88 वर्ष की उम्र में मुंबई में उनका निधन हो गया।

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