झूठ, निंदनीय झूठ! सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी को झूठ बोलने वाले लोगों के बारे में सच्चाई बताना पंसद था। फिल्म‘आनंद’ में राजेश खन्ना सड़क पर अजनबियों से उस तरह से दोस्ती करते हैं, मानो उनका उनके साथ काल्पनिक रूप से आमना-सामना हुआ हो। फिल्म‘खूबसूरत’ में रेखा दीना पाठक की अथॉरिटी को नाकाम करने के लिए परिवार के प्रताड़ित लोगों के साथ चुपचाप घर की छत पर हंसी-मजाक के आयोजनों को अंजाम देती हैं। ऋषिदा ने बाद में झूठ बोलने की कला पर एक पूरी फिल्म ही बना डाली थी। उनकी फिल्म‘झूठी’ में उनकी पसंदीदा अभिनेत्री रेखा मुख्य किरदार में थीं।
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फिल्म‘गोलमाल’ झूठ का लोकप्रिय चित्रण है। कुछ समय पहले खबरों में छाई रही रोहित शेट्टी की फिल्म‘बोल बच्चन’ में झूठ को मनमाने ढंग से उठाया गया है लेकिन इसके बावजूद इसमें दर्शाए गए हंसी- मजाक के दृश्यों में एक खास तरह की ताजगी है। इस रीमेक फिल्म में ऋषिदा के कनाथक से टुकड़े उठाए गए हैं, जैसे श्रीमती श्रीवास्तव के रूप में दीना पाठक का चरित्र जो एक सोशलाइट हैं और पार्ट टाइम अभिनेत्री हैं और नायक की मां का स्वांग करती हैं। रोहित शेट्टी की ‘बोल बच्चन’ में तीखी मुजरे वाली के किरदार में अर्चना पूरऩ सिंह हैं जिन्हें राम और लक्ष्मण प्रसाद की मां का अभिनय करने के लिए भाड़े पर लिया जाता है। लेकिन आत्मा से दोनों चरित्र एक ही हैं।
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‘गोलमाल’ उस वर्ष प्रदर्शित हुई थी जब राजकुमार कोहली की कमर्शियल रूप से हिट फिल्म‘जानी दुश्मन’ और वैवाहिक ड्रामा वाली अति यथार्थवादी फिल्म‘गृहप्रवेश’ रिलीज हुई थी। ‘गोलमाल’ उस समय आई जब अमिताभ बच्चन अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे। 1979 का यह वह वर्ष था जब अमिताभ की फिल्मों- ‘मिस्टर नटवरलाल’, ‘काला पत्थर’ और ‘सुहाग’ ने पूरे बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया हुआ था। और ‘गोलमाल’ ने फिर भी अपना मुकाम हासिल किया। आज के दिन तक यह फिल्म खुद को बार-बार देखे जाने के लिए आमंत्रित करती है। और हम केवल ‘बोल बच्चन’ की ही बात नहीं कर रहे। निर्माता-निर्देशक डेविड धवन ने मेरे साथ एक बातचीत में स्वीकार किया था कि गोविंदा के साथ उनकी दो हिट फिल्में ‘हीरो नंबर 1’ और ‘कुली नंबर 1’ ऋषिदा की फिल्म‘गोलमाल’ से प्रेरित थीं। डेविड यह स्वीकारते हुए कहते हैं, “जब भी मेरे पास आइडिया की कमी होती थी तो मैं ऋषिदा के सिनेमा की तरफ देखता था।”
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ऋषिदा की ‘गोलमाल’ एक कल्पित दोहरी पहचान की पड़ताल करती है। फिल्म में अमोल पालेकर हास्य की इस जटिलता को कम बोलकर संभालते हैं। इसमें उन्होंने राम प्रसाद का किरदार निभाया था जो अपने दोस्तों के बीच अच्छी आवाज के लिए जाना जाता है लेकिन मुंबई में 9 से 5 की एक नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। यहां अनुशासन प्रेमी भवानी शंकर (उत्पल दत्त) का प्रवेश होता है जिनके ऑफिस में एक नौकरी है लेकिन किसी भी मौज-मस्ती को लेकर उनका रवैया बहुत ही सख्त है। भवानी शंकर मानते हैं कि कोई भी नौजवान अगर अपनी मूंछ मुड़वा लेता है तो वह जीवन को लेकर बिल्कुल गंभीर नहीं होता। नौकरी की छटपटाहट में राम नकली मूंछ लगा लेता है और एक कुर्ता पहन लेता है जो कि उधार का होता है और ऐसे व्यवहार करता है जैसे एक शांत और भगवान से डरने वाला व्यक्ति करता है।
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भवानी शंकर को यह नौजवान बहुत अच्छा लगता है। ऋषिदा ने इस गोलमाल के खेल में जो हास्य डाला जो कि‘बोल बच्चन’ में और भी आगे बढ़ता है, वह अपने आप में बहुत मासूम है। कोई भी पात्र किसी भी रूप में दूसरे पात्र को किसी भी प्रकार की हानि पहुंचाने की मंशा नहीं रखता। यहां तक कि राम प्रसाद का काल्पनिक जुड़वा भाई लक्ष्मण उर्फ लकी जो भवानी शंकर की बेटी उर्मिला (बिंदिया गोस्वामी) का संगीत का शिक्षक बन कर घर आता है, उसकी भी कोई हानि पहुंचाने की मंशा नहीं होती। फिल्म‘बोल बच्चन’ में संगीत का यह शिक्षक बदलकर लड़कियों की नजाकत लिए हुए एक डांस टीचर होता है। रीमेक में हर चरित्र चीख-चिल्लाकर अपनी ओर ध्यान खींचने की पुरजोर कोशिश करता है। लेकिन ‘गोलमाल’ में जो हास्य उत्पन्न होता है, वह एक प्रकार से दबे-ढके गुस्से से निकलता है।
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ऋषिदा ने पूरी कॉमेडी को हास्य के एक तार में गूंथ दिया जो एक डुप्लीकेट की कल्पना से शुरू होता है और अपने विचारों में तानाशाही मिजाज रखने वाले बॉस को खुश करने तक जाता है। अपने ही काल्पनिक जुड़वा को पैदा करने का फायदा यह है कि इससे अंत हीन हास्य की संभावनाएं पैदा हो जाती हैं। चाहे ऋषिदा के किरदारों ने सारे नाके तोड़ दिए हों लेकिन फिर भी वे रौ में बहते नहीं हैं। ‘गोलमाल’ में राम प्रसाद के रिश्तेपूरी तरह से भवानी शंकर के साथ उनकी बातचीत से परिभाषित होते हैं। वे दोनों अपनी परस्पर संवादात्मक ऊर्जा में अभिभाज्य हैं। फिल्म में जिस प्रकार भवानी शंकर मासूम राम प्रसाद पर हुक्म चलाते हैं, आज के समय ऐसे दफ्तर की कल्पना को प्रताड़ना से परिभाषित किया जाएगा।
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आखिर मिस्टेकन आइडेंटिटी की इसकॉमेडी में जो एक अपील है, वह क्या है? हमारे हिसाब से तो यहां यह कुछ हद तक एक कार्बन कॉपी (काल्पनिक जुड़वा) के माध्यम से इच्छाओं के पूरे होने से संबंधित है। जब हम बच्चे होते हैं तो हम अक्सर अपने लिए एक काल्पनिक मित्र का निर्माण करते हैं और वह वे सारी चीजें करता है जिनके लिए हम पर पाबंदी होती है। ऋषिदा ने बचपन की इसी कल्पना का इस्तेमाल किया। उनके अंदर एक बच्चाथा जो एक अक्खड़ अनुशासक की नजर हटते ही मस्ती करने का इंतजार कर रहा था और अमोल पालेकर ने उसी बच्चे का किरदार निभाया है। इस फिल्म की सफलता में आरडी बर्मन के संगीत और गुलजार के गीतों का भी बहुत बड़ा हाथ है। किशोर कुमार का गया हुआ गीत ‘आने वाला पल ....’ तथा आरडी और सपन चक्रवर्ती के टाइटल गीत ने सारे मानक तोड़ दिए थे।
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‘गोलमाल’ फिल्म के बारे में अमोल पालेकर का कहना है कि आज भी लोग मुझे गोलमाल में मेरे अभिनय के लिए याद करते हैं। वह कहते हैं, “मैं गोलमाल को बहुत ऊंचा दर्जा देता हूं। यह मेरे पांच बेहतरीन अभिनय प्रदर्शनों में से एक है।... ‘गोलमाल’ मेरी बहुत बड़ी हिट फिल्म थी।” वह कहते हैं कि‘गोलमाल’ में अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था, हालांकि उन्हें इस बात का दुख है कि उन्हें इसके लिए नेशनल अवार्ड नहीं मिल सका क्योंकि उन लोगों का तर्क था कि मुझे लोकप्रिय अवार्ड मिल चुका है।
गोलमाल की छोटी-छोटी बातें
अमिताभ बच्चन इस फिल्म में मेहमान कलाकार के रूप में उस समय सामने आते हैं जब राम प्रसाद (अमोल पालेकर) अपने मित्र देवेन वर्मा से मिलने स्टूडियो जाता है। तब उसे अमिताभ बच्चन ऋषिदा की फिल्म‘जुर्माना’ की शूटिंग करते हुए दिखते हैं। वास्तव में ऋषिदा जो कि एक बहुत ही सफल निर्देशक थे, उन्होंने ‘गोलमाल’ और ‘जुर्माना’- दोनों ही फिल्मों की शूटिंग साथ-साथ की थी।
‘गोलमाल’ में गुलजार के लिखे गीत ‘सपने में देखा एक सपना…’ में ऋषिदा के दो बहुत ही पसंदीदा कलाकारों- लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन का भी जिक्र है।
ऋषिदा लता मंगेशकर को माता सरस्वती कहते थे और लता जी उनसे उनकी फिल्मों में गाना गाने के लिए पैसा नहीं लेती थीं। उन्होंने ‘गोलमाल’ में एक ही सोलो गाया था- ‘एक बात कहूं गर मानो तुम…’। हालांकि बाद में यह पाया गया कि उस गाने की रिकॉर्डिंग में गलतियां थीं। फिर भी ऋषिदा ने उसगाने को फिल्म में रखा। उन्होंने बहुत प्यार से कहा था कि, “लता मंगेशकर का दोष भरा गीत भी अन्य गायकों के गानों से लाखों गुना ज्यादा कीमती है।”
चरित्र अभिनेता डेविड ने इस फिल्म में एक दयालु डॉक्टर की भूमिका निभाई जो राम प्रसाद (अमोल पालेकर) को यह सुझाव देते हैं कि वह नौकरी पाने के लिए अपने एक काल्पनिक जुड़वा का आविष्कार करे। डेविड ने ऋषिदा की अधिकांश फिल्मों में काम किया था- 1966 की ‘अनुपमा’ से लेकर 1980 में ‘खूबसूरत’ तक। ‘गोलमाल’ में जो भूमिका उन्होंने की थी, उसे ‘बोल बच्चन’ में असरानी निभाते हैं।
ऋषिदा की फिल्मों में असरानी अक्सर ही दिखा करते थे, फिर चाहे वह गोलमाल में एक कुर्ते के लिए ही हों। फिल्म स्टूडियो के एक दृश्य में वह राम प्रसाद को उनके काल्पनिक जुड़वा के लिए एक कुर्ता देते हैं।
ऋषिदा के एक और पसंदीदा कलाकार ओम प्रकाश भी इस फिल्म के क्लाइमेक्स सीन में एक मेहमान कलाकार की भूमिका में सामने आते है।
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