शाहरुख खान की जब हैरी मेट सेजल लोगों को सिनेमा घरों तक नहीं खींच पाई। पहले पांच दिनों में फिल्म का कलेक्शन 65 करोड़ तक भी नहीं पहुंचा। चूंकि शाहरुख़ की फिल्म पहले हफ्ते में ही बहुत मुनाफा कमा लेती थी, इसके विपरीत जब हैरी... तो सलमान खान की ट्यूब लाइट की तरह एक बड़ी फ्लॉप ही साबित होती नजर आ रही है।
2010 का दशक लगता है शाहरुख़ के लिए उतना अच्छा नहीं रहा। हालांकि उनकी मार्केटिंग का हुनर इतना बढ़िया है कि वे बॉक्स ऑफिस पर मुनाफा कमा ही लेते हैं लेकिन हैप्पी न्यू इयर, दिलवाले और फैन के साथ उनकी फिल्मों का कलेक्शन धीरे धीरे कम होता जा रहा है। बेशक दुनिया भर में वे आज भी बहुत मशहूर हैं लेकिन उनके लिए बॉक्स ऑफिस का संदेश बहुत साफ़ होता जा रहा है- कमर्शियल सक्सेस के लिए अब इस सुपर स्टार को कुछ नयी कहानियों और किरदारों में खुद को ढालना होगा।
1989 में जब दूरदर्शन पर फौजी सीरियल आया था तो शाहरुख़ उसमें मुख्य किरदार नहीं थे, बल्कि मुख्य किरदार के छोटे भाई बने थे। शुरुआत में सीरियल में उनके किरदार पर कुछ ख़ास तवज्जो नहीं दी गयी थी। वे बस एक ऐसे मौज-मस्ती पसंद नौजवान की भूमिका में थे, जिसमें सेना में भरती होने के प्रति कोई गंभीरता नहीं थी।
उनके भाई का किरदार सीरियल का हीरो था, और उनके साथी सीरियल के मुख्य आकर्षण। मुझे याद है, मेरी दोस्त उनके साथी के किरदार (विक्रम चोपड़ा) पर पूरी तरह फ़िदा थीं। जिसका प्रिय जुमला था- आई से चैप्स! लेकिन शाहरुख़? ओह, वो किरदार तो एक आम नौजवान की तरह है- उसमें कोई ग्लैमर नहीं। लेकिन उनकी शरारत से चमकती आँखें और शानदार स्क्रीन प्रेजेंस के साथ वे जब भी स्क्रीन पर आते, छा जाते थे।
जब सभी लड़कियां विक्रम चोपड़ा के किरदार के लिए आहें भरती थीं तब उनमें से एक ने शाहरुख के लिए कहा था- ओह, इसके गालों में पड़ने वाले डिम्पल कितने क्यूट हैं! लेकिन अगली बार जब शाहरुख़ की चर्चा हुयी तब वे दीवाना (1992) फिल्म में अपने एक छोटे से रोल के लिए बहुत लोकप्रिय हो चुके थे।
तब से किंग खान ने कभी मुड़ कर नहीं देखा। हाँ, एक छोटा सा दौर ज़रूर आया था जब उनकी फ़िल्में एक-एक करके फ्लॉप हुयी थीं (याद है- गुड्डू चाहत, बादशाह, दिल से।..., अंजाम?) जब दर्शकों को ये विशवास हो चला कि वे उस बदकिस्मत सितारे की तरह ही हैं जो पल भर चमक कर गुमनामी के अँधेरे में डूब जाता है, तो दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995) ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। मधुर संगीत, कच्ची उम्र की प्रेम कहानी और विदेश में बसे भारतीयों की यादों को द्रवित करने वाली यह फिल्म ज़बरदस्त हिट हुयी। लोगों के दिलों में खुली बाहों से नायिका(और सफलता) का स्वागत करते मासूम, परम्परावादी लेकिन अपने इरादों में मज़बूत नायक के तौर पर शाहरुख़ की छवि अंकित हो गयी। “सेनोरिटा, बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं...” कहने वाला खिलंदड़ नौजवान अब भविष्य की उम्मीदों से भरा एक आशावादी मॉडर्न भारतीय युवक बन गया। और काजोल-शाहरुख़ रोमांटिक जोड़े का प्रतीक, ठीक वैसे ही जैसे श्री 420 के बाद राजकपूर और नर्गिस की छवि लोगों के दिलों में बस गयी थी।
उसके बाद आया शाहरुख़ का शानदार दौर – कुछ कुछ होता है, कल हो ना हो, कभी ख़ुशी कभी ग़म । और शाहरुख़ बॉलीवुड के बादशाह बन गए। स्वदेस, चक दे! और देवदास में अपनी सशक्त भूमिकाओं के लिए उन्हें फिल्म आलोचकों की सराहना भी मिली।
आज भी शाहरुख़ की मॉडर्न रोमांटिक हीरो की छवि दुनिया भर में हिंदी सिनेमा का शौक रखने वाले लोगों में बहुत प्रिय है। यहाँ तक कि जब उन्होंने बाज़ीगर डर, अंजाम और डॉन में नेगेटिव रोल्स किये तब भी उनके फैंस और जो दर्शक फैंस नहीं थे, उन्होंने भी उनके अभिनय को बहुत सराहा।
हैप्पी न्यू इयर, दिलवाले और फैन के बीच सरल लेकिन गहन संदेश लिए एक फिल्म आई डिअर ज़िन्दगी, और शाहरुख़ के किरदार ने एक बार फिर सभी का मन मोह लिया। गौरी शिंदे के निर्देशन में बनी यह ‘लो बजट’ फिल्म कमर्शियल सक्सेस साबित हुयी और ऐसा लगा कि आमिर खान की तरह अब शाहरुख़ भी अपने किरदारों को लेकर नए और रचनात्मक प्रयोग करेंगे।
लेकिन जब हैरी मेट... में एक कमज़ोर कहानी और उबाऊ यूरोप भ्रमण के साथ एक बार फिर (अब अधेड़) शाहरुख़ की रोमांटिक छवि को भुनाने की कोशिश की गयी तो ज़ाहिर है फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर लुढ़कना ही था।
Published: 10 Aug 2017, 3:59 PM IST
अब ज़ाहिर हो गया है कि बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख़ का जादू फीका पड़ने लगा है। टाइगर श्रॉफ, वरुण धवन, रणवीर सिंह और रणबीर कपूर जैसे नयी पीढ़ी के हीरोज़ अब इंडस्ट्री में ही नहीं लोगों के दिलों में भी अपने पाँव जमाने लगे हैं। ऐसे में शाहरुख़ को अपने किरदार और अपनी छवि को एक बार फिर गढ़ना होगा।
हॉलीवुड के विपरीत बॉलीवुड में यह एक दुखद चलन है कि यहाँ अभिनेता अपनी उसी छवि के जाल में फंसे रह जाते हैं जिसने उन्हें लोकप्रिय बनाया हो। आमिर खान के अलावा ऐसा कोई सुपरस्टार फिलहाल हिंदी सिनेमा में नहीं है जिसने विविध किरदारों की असीम संभावनाओं में खुद को ढालने की चुनौती स्वीकार की हो।
एक बार, हमारे एक वरिष्ठ सहकर्मी ने एक बिलकुल अलग सन्दर्भ में कहा था कि हमें यह एहसास होना चाहिए कि हमें पीछे कब हटना है। शाहरुख़ और सलमान के लिए भी अब वह दौर आ गया है कि वे पीछे हट कर देखें और अपने किरदार को, अपनी छवि को एक बार फिर से नयी रचनात्मक ऊर्जा के साथ गढ़ें, जैसा 90 के दशक में शाहरुख़ ने नकारात्मक भूमिकाओं की चुनौती स्वीकार करते हुए किया था।
Published: 10 Aug 2017, 3:59 PM IST
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 10 Aug 2017, 3:59 PM IST