सिनेमा

फिल्म समीक्षा: उग्र जज़्बातों के दौर में एक नाज़ुक और संवेदनशील फिल्म है ‘फोटोग्राफ’

‘फोटोग्राफ’ के कुछ शॉट्स और कैमरा एंगल्स हिंदी के दर्शकों के लिए नए हो सकते हैं लेकिन उनके जरिये किरदारों की तन्हाई रचनात्मक रूप से उभर कर आती है।यह फिल्म ओपन एंडेड है, एक तस्वीर की तरह जिसे दर्शक जैसे चाहे वैसे समझ सकता है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

हिंदी सिनेमा जगत में अमूमन आपको एक ऐसी फिल्म देखने को नहीं मिलती जिसमें कहानी को उसी तरह ‘अंडर टोंस’ में दर्शाया गया हो जैसे वास्तविकता में होता है। और इसके बावजूद भी उसके नाजुक एहसास और भावनाओं को सहेज कर रखा गया हो और उन्हें बगैर किसी लाउड संवाद, संगीत या शोर के परदे पर उतारा गया हो। ‘फोटोग्राफ’ ऐसी ही एक फिल्म है।

वैसे देखा जाए तो फिल्म का कथानक किसी भी मसाला हिंदी फिल्म का आदर्श प्लॉट हो सकता है- एक अमीर और शहरी लड़की है, एक गरीब और गांव कि पृष्ठभूमि से आया लड़का और उनके बीच हर संभव भिन्नता और फासले के बावजूद एक खूबसूरत रिश्ता। लेकिन निर्देशक रितेश बत्रा इस कहानी को खूबसूरत तरीके से कहते हैं, जो सरल है, संवेदनशील है और काव्यात्मक भी।

हर बार एक नई भूमिका के साथ प्रयोग करने के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी की सराहना होनी ही चाहिए और ये रोल तो वे बखूबी कर सकते हैं। एक सीधे-सादे मामूली से फोटोग्राफर का जो अधेड़ हो चला है, अकेला है और एक शहरी गुजराती लड़की के साथ एक खास किस्म का स्नेह भरा रिश्ता बनाता है जो उससे सालों छोटी है।

हालांकि सान्या मल्होत्रा भी अपने अभिनय से पहले ही प्रभावित कर चुकी हैं, लेकिन इस फिल्म में एक चुप रहने वाली, दब्बू और पढ़ाकू लड़की की भूमिका में वो हैरान कर जाती हैं। यह लड़की एक साधारण से फोटोग्राफर के प्रति महज इसलिए आकर्षित होती है कि उसके द्वारा ली गई फोटो में वह ज्यादा सुंदर और खुश नजर आ रही थी। कुछ शॉट्स में अकेले अपनी पढ़ाई की मेज पर बैठे हुए सोचते या गुमसुम बैठे हुए इस लड़की के विजुअल्स दिल पर एक छाप छोड़ जाते हैं।

फिल्म में कुछ छोटे-छोटे प्रकरण हैं जो उन दोनों के बीच के रिश्ते की खूबसूरती को जताते हैं। गांव की जिंदगी को लेकर इस लड़की के मन में उत्सुकता है (क्योंकि नायक की दादी उत्तर प्रदेश के एक गांव से आने वाली हैं जिनसे वह इस लड़की को मिलवाना चाहता है ताकि वो बार-बार उससे शादी की जिद करना बंद कर दें) और वह अपनी नौकरानी से पूछती है- ‘आप लोग गांव में क्या करते हो, अपना दिन कैसे बिताते हो?’

और जब वह शादी के लिए एक लड़के से मिलने जाती है तो पूछे जाने पर बहुत सरलता से कहती है- मैं गांव में रहना चाहती हूं।” लड़का जो अमेरिका जाने वाला है, हैरान होकर पूछता है- तुम गांव में क्या करोगी? एक बार फिर वो सरलता से जवाब देती है- “मैं खेती करूंगी और दोपहर में किसी पेड़ के नीचे सो जाया करूंगी।”

फिर फोटोग्राफर रफी जिस तन्मयता से कैम्पा कोला की तलाश करता है, उसका उस शख्स से ‘संवाद’ जिसने खुदकुशी कर ली थी- ये छोटी-छोटी बातें बहुत खूबसूरत तरीके से और सहजता से परदे पर उतारी गई हैं। इन प्रकरणों में हम अपनी उस भीतरी समानान्तर जिंदगी के शेड्स पहचान सकते हैं, जिसे हम अपनी बाहरी जिंदगी के साथ-साथ जीते रहते हैं (या जीना चाहते हैं)।

दादी की भूमिका में फारुख जफर बहुत प्रभावशाली हैं। ऐसा लगता है मानो हाड़-मांस की बस वे ही एकमात्र किरदार हैं जो इन दोनों को असलियत की नाजुक डोर से बांधे हुए हैं।

कुछ शॉट्स और कैमरा एंगल्स हिंदी के दर्शकों के लिए नए हो सकते हैं लेकिन उनके जरिये इन किरदारों की तन्हाई रचनात्मक रूप से उभर कर आती है। सान्या मल्होत्रा के क्लोज अप उस ज्यादातर मौन रहने वाली लड़की की शख्सियत को बखूबी उजागर करती है।

‘फोटोग्राफ’ ओपन एंडेड है, एक तस्वीर की तरह जिसे दर्शक जैसे चाहे वैसे समझ सकता है। लेकिन जिस कोमलता और संवेदनशीलता से ये कहानी बुनी गई है, वह फिल्म खत्म होने के काफी देर तक महसूस होती रहती है।

Published: 15 Mar 2019, 9:58 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 15 Mar 2019, 9:58 PM IST